Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ तत्थ सचित्तमऽचित्तं, मीसंच तिभेयमिह भवेदव्वं । दुपयं चउप्पयं अपय-मिय पुणो तं तिहेक्केकं ॥ ७५००॥ एवं च विसयभेया, तब्भेयण्णूहि समयकेऊहिं। संखेवेणऽक्खाओ, नवभेओ दव्वपरिबंधो ॥ ७५०१॥ पढमो पुरिसित्थिसुगाऽऽइएसु, बीओ य हयगयाऽऽईसु । तइओ पुष्फफलाऽऽइसु, इय ता सच्चित्तदव्वगओ ॥७५०२॥ सगडरहाऽऽइसु तुरिओ उ, पट्टखट्टाऽऽइएसु पंचमओ। कणगाऽऽइएसु छट्ठो, इमो उ अच्चित्तदव्वगओ ॥७५०३ ॥ सत्तऽट्ठमा उ कमसो, साऽऽहरणाऽऽवरणनरगयाऽऽईसु । नवमो य कुसुममालाऽऽ-इएसु इय मीसदव्वगओ ॥७५०४ ॥ अह गामनगरगेहाऽऽ-वणाऽऽइविसएसु खेत्तपडिबंधो। काले वसंतसरयाऽऽ-इएसुराओ दियाओ वा ॥ ७५०५॥ भावे पुण पडिबंधो, सुंदरसद्दाऽऽइगोयरा गिद्धी। अहवा उ कोहमाणाऽऽ-इयाण निच्चं अचाओ जो ॥ ७५०६॥ एसो य कीरमाणो, सव्वो वि दुरंतदीहदुहदाई । दिट्ठो विसिट्ठदिट्ठीहि, देसिए सासणे जइणे ॥ ७५०७॥ किंचजत्तियमेत्तो एसो, पडिबंधो तत्तिओ दुहो होइ । जायइ जीवाण जओ, ता वरमेसो परिच्चत्तो ॥७५०८॥ एयम्मि अपरिचत्ते, न होइ चत्ता अणत्थरिंछोली। अह सो परिचत्तो ता, सा वि ह दूरं परिच्चत्ता ॥ ७५०९॥ पडिबंधो वि हु कीरइ, जइ ता तव्विसयवत्थुजायम्मि। सारत्तं किं पि भवे, अह नो ता किं च एएण ॥७५१०॥ पयइखणभंगुरेसु वि, पयइअसारेसु पयइतुच्छेसु । का भल्लिमा भणिज्जइ, संसारसमुत्थवत्थूसु - ॥७५११॥ तहाहिकाओ करिकण्णचलो, रूवं पुण खणविणस्सरसरूवं । तारुण्णं पि परिमियं, लायण्णं दिण्णवेवण्णं ॥७५१२॥ सोहग्गं पि हु विहडइ, विगलत्तमुवेंति इंदियाई पि। सरिसवमेत्तं पि सुहं, सुरगिरिगुरुदुहभरऽक्तं ॥ ७५१३ ॥ चवलत्तमुवेइ बलं, जीयं पि य जलतरंगतरलमिणं । सुमिणसमाणं पेम्मं, छायसरिच्छाओ लच्छीओ ॥ ७५१४॥ भोगा सुरचावचवला, संजोगा सिहिसिहोवमा सव्वे । तं नऽस्थि सेसवत्थु पि, किं पि जं सासयसहावं ॥ ७५१५॥ एवं च समत्थेस वि. भवत्थवत्थस सोक्खकज्जेण । कीरंतो पडिबंधो, संदर! दक्खेण परिणमिही ॥७५१६॥ जाओ न समं बंधुहि, किर तुमं न य मओ वि सह तेहिं । ताऽलं तेहिं पि समं, सुंदर! पडिबंधकरणेणं ॥७५१७ ॥ जं भवजलहिम्मि जिया, कम्ममहालहरिवेगवुब्भंता । संघडणविहडणाओ, लहन्ति ता कस्स को बंधू ॥७५१८॥ पुणरुत्तजम्ममरणे, चिरं भमंतो भवम्मि न हु कोई । अत्थि स जीवो जाओ, जो न मिहोऽणेगहा बंधू ॥ ७५१९॥ जंचेच्चा गंतव्वं, तमऽप्पणिज्जं कहं भवे नाम । इय चितिउंचएज्जा, बुहो सरीरे वि पडिबंधं ॥ ७५२०॥ चिरमुवयरियं विविहो-वयारकरणेहिं जइ सरीरं पि। दरिसइ वियारमंऽते, ता सेसऽत्थेसु का आसा । ७५२१॥ पडिबंधो बुद्धिहरो, पडिबंधो बंधणं धणियमुग्गं । पडिबंधो भवसंघो, पडिबंधं धीर! ता चयसु ॥७५२२॥ जइ पुण तुमं महायस!, सक्को न हु सव्वहा इमं चइउं । पडिबंधं ता सुपसत्थ-वत्थुविसयं करेसु जओ ।। ७५२३ ॥ तित्थयरे पडिबंधो, पडिबंधो सुविहिए जइजणे य। एसो पसत्थगो च्चिय, सरागसंजमजईणऽज्ज ॥ ७५२४ ॥ अहवा सिवसुहसाहग-गुणसाहणहेउगम्मि दव्वे वि । तह सिवसाहगगुणसा-हणाऽणुकूलम्मि खेत्ते वि ॥ ७५२५ ॥ तह सिवसाहगगुणसा-हणाऽवसरलक्खणम्मि काले वि। सिवसाहगगुणरूवे, भावम्मि वि कुणसु पडिबंधं ॥७५२६॥ एयं पि पसत्थपयत्थ-विसयपडिबंधकरणमऽच्चंतं । केवलनाणदिवायर-पयासविक्खंभगं भणियं ॥ ७५२७॥ एत्तो च्चिय जयगुरुवीर-नाहविसए वि बद्धपडिबंधो । सुचरियचरणो वि चिरं, न गोयमो केवलं पत्तो ॥ ७५२८॥ हंभो देवाणुप्पियं!, इह जइ सुहवत्थुगोयरो वि इमो । एवंविहपरिणामो, पडिबंधो ता अलं तेण ॥ ७५२९ ॥ किं च सुहऽत्थी जीवो, सुहं च संजोगओ इहं पायं । ता संजोगं इच्छइ, सो दव्वाऽऽईहिं सुहहेडं ।। ७५३०॥ दव्वाण य निच्चवओ, खेत्ताणि वि निच्चमेव न रइकए। कालो वि परावत्तइ, एगसहावो न भावो वि ॥ ७५३१॥ संजोगो वि इमेहिं, जो होत्था अस्थि होहिइ कोवि । कस्स वि सो सव्वो वि हु, नियमेण वियोगपज्जंतो ॥ ७५३२॥ एवं च वियोगांते, नियमा दव्वाऽऽइएहि संजोगे। दव्वाऽऽइसु पडिबंधो, कीरन्तो कं गुणं लहइ ॥ ७५३३॥ अण्णं च जीवदव्वाऽऽइयाण-मऽवरोप्परेण अण्णत्तं । अण्णाऽऽयत्तं असुहं च, सुहं चिय परवसत्तेण ॥ ७५३४ ॥ जइ पढम पि न काहिसि, अण्णाऽऽयत्तम्मि चित्त ! पडिबंधं । ता तध्वियोगजणियं, दुक्खं पि हु नेव पाविहिसि ॥७५३५ ।। ૨૧૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378