Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 222
________________ पडिभग्गं पडिवक्खं, पलायमाणं महेंदसीहो वि। अवलोइऊण चलिओ, करुणाए अकयतप्पहरो ॥ ७६०८॥ अह जायमाणभंगो, हिययऽब्भंतरफुरंतदढसोगो । अप्पाणं निहयं पिव, मण्णंतो कणगरहराया ॥ ७६०९॥ पेच्छइ विणियत्तंतो, तियसाऽहिवनिवहविहियपयसेवं । सिरिमुणिसुव्वयसामि, समोसढं सुसुमारपुरे ॥ ७६१०॥ ताहे दूरुज्झियराय-चिंधउवसंतधरियनेवत्थो। तिक्खुत्तो दाऊणं, पयाहिणं गाढभत्तीए ।। ७६११॥ जयनाहं वंदित्ता, गणधरमणिकेवलीहिं परियरियं । सुद्धमहीए निसण्णो, नरनाहो धम्मसवणत्थं ।। ७६१२॥ खणमेत्तं च निसामिय, सामिगिरं समरवइयरं सरिउं। परिचिंतिउं पयत्तो, धिरऽत्थु मह जीवियव्वस्स ॥ ७६१३॥ जस्स तह सत्तुपडिहय-परक्कमस्स पणट्ठसारस्स। अवहरियपुव्वसुकया, वित्थरिया धणियमऽपसिद्धी ॥७६१४ ॥ एवमऽणुचिंतयंतो, विच्छायमुहो महीवई सामि । नमिऊण निक्खमंतो, ओसरणाओ सकरुणेण ॥ ७६१५ ॥ विज्जुप्पभनामेणाऽ-सुरेंदसामाणिएण देवेण । भणिओ भद्द ! किमेवं, पहरिसठाणे वि तुममेत्थ । ॥ ७६१६॥ हिययऽब्भंतरनिक्खित्त-तिक्खसल्लो व वहसि संतावं । करमलियनलिणतुल्ले, गयसोहे धरसि नयणुल्ले ॥ ७६१७॥ सायरकयप्पणामेण, तयणु मिहिलाऽहिवेण पडिभणियं । सयमेव मुणह तुब्भे, जहट्ठियं किमिह साहेमि ॥ ७६१८॥ चिरकालवोलियाणि वि, अच्चंतं दूरकालभावीणि । जे किर मुणंति कज्जाणि, तेसिं नणु केत्तियं एवं ॥ ७६१९ ॥ एवं रण्णा भणिए, ओहिण्णाणेण नायपरमत्थो । विज्जुप्पभो सुरवरो, पयंपिउं एवमाऽऽढत्तो ॥ ७६२०॥ रिउपरिभवलक्खणतिक्ख-दुक्खमुव्वहसि तुममऽहो ! हियए। दुक्खविमोक्खणमूला य, गिज्जए जिणवरे भत्ती ॥ ७६२१ ॥ ता नरवर! जयगुरुपाय-पउमवंदणविहीए तुज्झ अहं । तुट्ठो अह सत्तुजयं, ममाऽणुभावेण कुणसु लहुं ॥७६२२ ।। इय तियसवयणमाऽऽयण्णिऊण, राया वियासिमुहकमलो। सेण्णाऽणुगओ सहसा, पडिपडिवक्खं पडिनियत्तो ॥७६२३ ॥ अह भूरिसमरसंपण्ण-विजयगव्वो पुणो वितं इंतं । सोच्चा महेंदसीहो, सज्जीहोउं ठिओऽभिमुहो • ॥७६२४॥ जुझं च समावडियं, नवरं विज्जुप्पभप्पभावेण । मिहिलाऽहिवेण विजिओ, महिंदसीहो पढममेव ॥७६२५॥ अवहरिय पुव्वपग्गहिय-हत्थितुरगाऽऽइविविहरज्जंगे। सेवं च गाहिऊणं, मुक्को तत्थेव रज्जम्मि ॥७६२६॥ अह निज्जियजेयव्वो, कणगरहो आगओ निययनयरिं। सरयनिसायरकरगोर-लद्धकित्ती जए जाओ ॥ ७६२७॥ अवरम्मि य पत्थावे, विसुद्धलेसाए वट्टमाणो सो। परिचितिउं पवत्तो, अहो जिणिदस्स माहप्पं ।। ७६२८॥ जमऽहं तइया वंदण-मेत्तेण वि वंछियऽत्थमऽच्चत्थं । पत्तो मणोरहाण वि, अगोयरं नूण लीलाए ॥७६२९ ॥ एवं च सो च्चिय परं, परमप्पा कप्पपायवप्पडिमो । इहपरभवभाविरभद्द-करणसीलो जएक्कपहू ॥७६३०॥ अणुसरणिज्जो भवइ त्ति, चितिउं सुव्वयस्स पामूले । पडिवण्णो पव्वज्जं, राया काउंच तं विहिणा ॥७६३१॥ गुणगणहरगणहरनाम-गोयकम्मं च बंधिऊणंऽते । मरिउं देवो जाओ, महिड्डिओ भासुरसरीरो ॥ ७६३२॥ तत्तो चुओ य सुकुले, माणुस्सं पाविऊण भोगे य। तित्थयरपायमूले निक्खमिउं गणहरो होउं ॥७६३३ ॥ निम्मूलुम्मूलियभव-महहुमो पत्तकेवलाऽऽभोगो । जरजम्ममरणरहियं, निव्वाणं पाविही परमं ॥ ७६३४ ॥ एवंविहोत्तरोत्तर-कल्लाणनिबंधणं मुणेऊणं । अरिहाऽऽईसुं भत्ति, खवग ! तुमं सम्ममाऽऽयरसु ॥ ७६३५ ॥ अरिहाऽऽइछक्कभत्ति त्ति, सत्तमं दारमिय मए वुत्तं । अट्ठममिओ भणिस्सं, पंचनमोक्कारपडिदारं ॥ ७६३६॥ हंभो खवगमहामुणि ! पारद्धविसुद्धधम्मअणुबंधं । बंधवभूयाण जिणाण-मिहि तह सव्वसिद्धाणं ॥७६३७॥ आयारपालयाणं, आयरियाणं च सुत्तदाईणं । उज्झायाणं सिवसाहगाण तह सव्वसाहूणं ॥७६३८॥ निच्चं भव उज्जुत्तो, समाहियऽप्पा पहीणकुवियप्पो। सिद्धिसुहसाहणम्मि, नूण नमोक्कारकरणम्मि ॥७६३९ ॥ जेणेस नमोक्कारो, सरणं संसारसमरपडियाण । कारणमऽसंखदुक्ख-क्खयस्स हेऊ सिवपयस्स ॥ ७६४०॥ कल्लाणकप्पतरुणो, अवंझबीयं पयंडमायंडो । भवहिमगिरिसिहराणं, पक्खिपहू पावभुयगाणं ॥ ७६४१ ॥ आमूलुक्खणणम्मि, वराहदाढा दरिद्दकंदस्स । रोहणधरणी पढमु-ब्भवंतसम्मत्तरयणस्स ॥ ७६४२॥ कुसुमोग्गमो य सोग्गइ-आउयबंध(मस्स निविग्घं । उवलंभचिंधमऽमलं, विसुद्धसद्धम्मसिद्धीए ॥७६४३॥ अण्णं च१. पक्खिपहू = पक्षिप्रभुः - गरुडः, ૨૧૫

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