Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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मुणिणा वुत्तं पुत्तय!, जइ एवं देमि ता अहं दव्वं । संलत्तमऽगलदत्तेण, सामि ! दढमऽणुगिहीओ हं एत्थंऽतरम्मि अत्थवण-मुवगयं चंडभाणुणो बिम्बं । तदऽकज्जकरणवंछ व्व, पसरिया सव्वओ संझा तीए य अइगयाए, समुच्छलतेसु तिमिरनियरेसु । आयड्डिऊण खग्गं, तिदंडमज्झाउ निसियऽग्गं आबद्धपरियरो सो, समगं चिय झत्ति अगलदत्तेण । नगरीए गओ खत्तं च, पाडियं धणवइगिहम्मि आयड्डियाउ तत्तो, पेडाउ भूरिभंडभरियाउ। मोत्तूण अगलदत्तं, तहिं च सुरभवणसुत्तनरा उट्ठविऊणं उवलोभिउंच, परिवायगेण आणीया। गिहावियाओ ताओ, तत्तो तेहिं सह पुरीओ सिग्घं चिय निक्खंतो, पत्तो एगम्मि जिण्णउज्जाणे । भणिया य तेण पुरिसा, सप्पणयं अगलदत्तो य रे पुत्ता! सुयह खणं, इहेव जा सव्वरी गलइ कि पि। पडिवण्णं सव्वेहि, सुत्ता य सुनिब्भरं सव्वे नवरं संकियचित्तो, निद्दाकवडेण ठाउं खणमेकं । तरुगहणम्मि निलुक्को, नीहरिऊणं अगलदत्तो निद्दावसगा य परे, पुरिसा णाउं तिदंडिणा निहया। सत्थरए हणणत्थं, निरिक्खिओ अगलदत्तो वि तं च अपेच्छंतो सो, वणगहणे पेहिउं समाऽऽरद्धो। अभिमुहमितो य हओ, खग्गेणं अगलदत्तेणं अह गाढघायवियणा-घुम्मिरदेहेण तेण संलत्तं । विगयप्पायं हे वच्छ!, जीवियव्वं मह इयाणि ता गिण्हसु मम खग्गं, वच्चसु य मसाणपच्छिमविभागे । तहियं च चंडियाऽऽययण-भित्तिपासम्मि ठाऊणं । सई करेज्ज जेणं, तब्भूमिहराउ नीइ मम भइणी । दंसेज्जसु तीए असिं, जेणं सा भवइ तुह भज्जा दंसइ य गेहसारं, एवं वुत्तम्मि अगलदत्तेण । तह चेव कयं ता जाव, भूमिभवणम्मि वि पइट्ठो दिट्ठा य तत्थ पायाल-कण्णगा विव मणोहरसरीरा । एगा जुवई पुट्ठो, तीए कत्तो तुमं सि त्ति आयड्डिऊण खग्गं, निदंसियं तीए अगलदत्तेण । मुणियं च णाए नियभाउ-मरणमऽह रंभिउं सोगं संभमभरियऽच्छीए, सुहय! तुहं सागयं ति भणिरीए। उवणीयमाऽऽसणं से, आसीणो सो य साऽऽसंको तीए य पुव्वविरइय-गरुयसिलाजंतसंगया सेज्जा। दिव्वोवहाणकलिया, पगुणा सव्वाऽऽयरेण कया भणिओ य अगलदत्तो, वीसमसु खणं इहं महाभाग ! । वीसंतो सो य तर्हि, नवरं एवं विचिंतेइ नूणं न सुंदरमिहाऽ-वत्थाणं मा भवेज्ज कूडमिमं । ता निदं अकुणंतो, ठामि इमा वच्चए जाव अह ठाऊण खणं सा, जंतनिवाडणकएण नीहरिया । इयरो वि पएसन्तर-मऽल्लीणो उज्झिउंसेज्जं तीए य कीलियं फेडिऊण सा पाडिया सिला सहसा । भग्गा य तीए सेज्जा, सव्वत्तो निवडमाणीए तो परमहरिसपसरिय-वियसियहिययाए तीए संलत्तं । हा! सुट्ट हओ दुट्ठो, मह भाउविणासकारित्ति तो धाविऊण धरिया, केसकलावम्मि अगलदत्तेण । हा! हा! दासीधीए!, को मं हणइ त्ति भणिरेण पाएसु निवडिऊण य, संलत्तं तीए रक्ख रक्ख त्ति । चत्ता तत्तो नीया य, राइणो पायमूलम्मि सयलो से वुत्तंतो, सिट्ठो तुडेण तो महीवइणा। दिण्णा महई भुत्ती, लोगेण य पूइओ बाढं सव्वत्थ जायकित्ती, गओ य कालक्कमेण नियनगरिं। दिण्णा पिउणो भुत्ती, रण्णा सक्कारिऊणं से निद्दाचागाऽचागे, एवं संपेहिऊण गुणदोसे । इहपरभवसुहकामी, को बहुमण्णेज्ज नि ति किंच- ... नरवइसेवापमुहे, ववसाए बहुविहे वि इहभविए। सज्झायज्झाणाऽऽई, परभविए वि हु हणइ निद्दा रिउणो लहंति छिड्डु, डसंति सप्पा पसुत्तमऽह कहवि । अग्गीए होइ गम्मो, सुविरो त्ति हसंति मित्ताऽऽई दोसकरोवरिसंठिय-जियमुत्ताऽऽई मुहेऽहवा पडइ। अह खुद्ददेवया वा, छलइ पसुत्तं पमत्तं ति तं दक्खत्तं सो बुद्धि-पयरिसो तं च किर सुविण्णाणं । पुरिसस्स अन्तरिज्जइ, एक्कपए चेव निदाए अण्णं चनिद्दातमस्स सरिसो, सव्वाऽऽवारी परं तमोणऽत्थि। ता निज्जिणेज्ज सम्मं, निदं झाणस्स विग्घकरि जओजागरिया धम्मीणं, आहम्मीणं तु सुत्तया सेया । वच्छाऽहिवभगिणीए, अकहिंसु जिणो जयंतीए
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