Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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अह मंतिणा वियाले, पच्चइओ नियनरो समाइट्ठो । गंगाए पच्छण्णो, अच्छसु जं वररुई सलिले कि पि ह ठवेइ तं गिव्हि-ऊण मह भद्द ! उवणमेज्जासि । गंतूण नरेण तओ, आणीया दम्मपोलिया गोसम्मि गओ नंदो, मंती य पलोइओ थुणंतो सो। गंगं जलनिब्बुड्डो, थुइअवसाणे य तं जंतं । करचरणेहिं सुचिरं पि, घट्टियं जाव वियरइ न कि पि। अच्चंतविलक्खत्तण-मऽणुपत्तो वररुई ताव पायडिया सयडालेण, राइणो सा य दम्मपोट्टलिया। हसिओ य राइणा सो, कुविओ मंतिस्स उवरि तओ आरद्धो छिड्डाई, पलोइडं अण्णया य सयडालो। वीवाहं काउमणो, सिरियस्स नरिंदजोग्गाई विविहाई आउहाई, पच्छण्णं कारवेइ एयं च । उवयरियाए कहियं, वररुइणो मंतिदासीए पावियछिड्डेण तओ, तेणं डिभाई मोयगे दाउं। सिंघाडगतियचच्चर-ठाणेसुं पाढियाणि इमं "एउ लोओ नवि जाणइ, जं सगडालु करेस्सइ । नंदु राउ मारेविणु, सिरियउ रजिं ठवेस्सई" सुणियं च इमं रण्णा, चरेहि पेहावियं च मंतिगिहं । टुण कीरमाणं, पच्छण्णं आउहाऽऽइबहुं सिटुं रण्णो तेहि, कुविओ राया ठिओ पराहुत्तो। सेवाऽऽगयस्स चलणेसु, निवडमाणस्स मंतिस्स कुविय त्ति निवं नाउं, सयडालो मंदिरम्मि गंतूण । कहइ सिरियस्स पुत्तय !, राया मारेइ सव्वाई जइ न मरिस्सामि अहं, ता रण्णो पायनिवडियं वच्छ! । मं मारेज्जासि तुमं, ठइया सिरिएण तो सवणा सयडालेणं भणियं, तालउडे भक्खियम्मि मयपुव्वं । निवपायपडणकाले, मारेज्जसु तं गयाऽऽसंको सव्वविणासाऽऽसंकिय-मणेण पडिसुयमिमं च सिरिएण । तह चेव पायपडियस्स, सीसमेयस्स छिण्णं ति हा! हा! अहो ! अकज्जं ति, जंपिरो उट्ठिओ य नंदनिवो। भणिओ सिरिएण तओ, देव! अलं वाउलत्तेण जो तुम्हं पडिकूलो, तेणं पिउणा वि नत्थि मे कज्जं । तो सो रण्णा वुत्तो, पडिवज्जसु मंतिपयवि ति तेणं भणियं भाया, जेट्ठो मे थूलभद्दनामोऽस्थि। बारसमं से वरिसं, वेसाए गिहे वसंतस्स सद्दाविओस रण्णा, वुत्तो य भयाहि मंतिपयवि ति । तेणं भणियं चिंतेमि, राइणा पेसियो ताहे सण्णिहियअसोगवणे, तत्थ य सो चिंतिउं समारद्धो । परकज्जवावडाणं, के भोगा किं च सोक्खं ति सोक्खे वि हु गंतव्वं, नरए अवस्सं अलं तदेतेहिं । इय चितिऊण वेरग्ग-मुवगओ भवविरत्तमणो काऊण पंचमुट्ठिय-लोयं सयमेव गहियमुणिवेसो। गंतूणं भणइ निवं, इमं मए चिन्तियं राय ! उववूहिओ निवेणं, नीहरिओ मंदिराओ स महप्पा । गणियाए घरे जाहि त्ति, पेहिओ राइणा जंतो ट्ठण मयकलेवर-दुग्गंधपहेण वच्चमाणं तं । रण्णा नायं निविण्ण-कामभोगो धुवमिमो त्ति ठविओ पयम्मि सिरिओ, इयरो संभूयविजयपामूले। पव्वइओ अच्चुग्गं, करेइ विविहं तवच्चरणं एत्थाऽवसरे वररुइ-विणासणाऽऽइ सुयाउ वत्तव्वं । ता जाव भद्दबाहुस्स, थूलभद्दो गओ पासे पढियाई पुव्वाई, देसूणाई च तेण दस तत्तो। सुयगुरुणा सह पत्तो, पाडलिपुत्तम्मि विहरतो जक्खापामोक्खाओ, सत्त वि भइणीओ गहियदिक्खाओ। भाउयवंदणहेडं, समागयाओ तओ सूरि वंदित्ता पुच्छंति, जेट्ठज्जो कत्थ सूरिणा भणियं । सुत्तं परियत्तंतो, अच्छइ इह देवउलियाए तो पत्थियाउ तहियं, दटुं इंतीउ थूलभद्दमुणी। नियरिद्धिदसणत्थं, केसरिरूवं विउव्वेइ तं दृटुं नट्ठाओ, अज्जाओ सूरिणो निवेइंति । भयवं! कुरंगराएण, भक्खिओ नूण जेट्टज्जो उवउत्ता आयरिया, भणंति सीहो न थूलभद्दो सो । वच्चह इण्हेिं ताओ, गयाओ वंदंति तं तत्तो पुच्छिय विहारवत्तं, ठाऊण खणं गयाओ सट्ठाणं । बीयदिणे उद्देसण-कालम्मि उवढिओ संतो पडिसिद्धो सूरीहिं, तुम अजोगो त्ति थूलभद्दमुणी। सीहविउव्वणरूवं, तेण य मुणिऊण नियदोसं भणिओ सूरी भंते !, न पुणो काहामि खमह मह एयं । पडिवण्णं मुणिवइणा, कहं पि महया किलेसेण नवरं गुरुणा वुत्तो, अंतिमपुव्वाणि पढसु चत्तारि। अण्णेसि मा देज्जसु, वोच्छिण्णाई तओ ताई एवं विहियाऽणत्थो, न सम्मओ सुयमओ वरमुणीणं । ता खमग ! तं विवज्जिय, पत्थुयकज्जे समुज्जमसु इय पंचममऽक्खायं, सुयमयठाणं इओ पवक्खामि । तवविसयमयनिसेहण-परमं छटुं समासेण
॥६८१२॥ ॥६८१३॥ ॥६८१४॥ ॥६८१५॥ ॥६८१६॥ ॥ ६८१७॥ ॥ ६८१८॥ ॥६८१९॥ ॥६८२०॥ ॥६८२१ ॥ ॥६८२२॥ ॥६८२३॥ ॥ ६८२४॥ ॥ ६८२५ ॥ ॥६८२६ ॥ ॥ ६८२७॥ ॥६८२८॥ ॥६८२९ ॥ ॥ ६८३०॥ ॥ ६८३१ ॥ ॥ ६८३२॥ ॥६८३३॥ ॥ ६८३४॥ ॥ ६८३५ ॥ ॥ ६८३६॥ ॥६८३७॥ ॥६८३८॥ ॥६८३९॥ ॥६८४०॥ ॥ ६८४१॥ ॥६८४२॥ ॥६८४३ ॥ ॥ ६८४४॥ ॥६८४५॥ ॥६८४६॥ ॥६८४७॥ ॥ ६८४८॥ ॥ ६८४९॥
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