Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

View full book text
Previous | Next

Page 209
________________ ॥ ७१४२॥ ॥ ७१४३॥ ॥ ७१४४॥ ॥७१४५॥ ।। ७१४६॥ ॥ ७१४७॥ ॥ ७१४८॥ ॥७१४९॥ विक्किणगो धणलोभा, उवभोगविहाणओ य भक्खागो। बंधणवहेहिं हंता, तिण्ह वि मंसाउ वहगत्तं जो किर मंसं नाऽसइ, नासइ सो अप्पणो अजसवायं । जो पुण तयमाऽऽसेवइ, सेवइ सो नीयठाणाणि एवं अच्चंतदुरंत-दुक्खनरएक्ककारणं मंसं । अपवित्तमऽणुचियं सव्व-हा वि हेयं ति नाऽऽदेयं जंदुटुं ववहारे, लोए सत्थे य दूसियं जं च । तं मंसमऽभक्खं चिय, चक्खूहि वि नो निरिक्खेज्जा करगहियमंसपेसी, चंडालाऽऽई वि कहवि ग्रग्गम्मि। पुरओ आगच्छंतं, लज्जइ दटुं विसिट्ठजणं गोहेममहीदाणाणि, तेण दिण्णाणि लक्खसंखाणि । जो बहुदोससमुस्सय-मऽसेज्ज मंसं न मणसा वि तहाजह परमंसं तह जइ, समंसमेवाऽऽयरेज्ज तब्भोई। ता न तहा दोसं पिह, परपीडाऽभावओ मण्णे संभवइ न उण एयं, अट्ठारसकणयकोडिओ इहरा । मंसजवतिगकए कह, मिलिया सुव्वंति अभयस्स तथाहिरायग्गिहम्मि नयरे, अत्थाणीमंडवे निसण्णस्स। अभयकुमारप्पमुह-प्पहाणमंतीहिं सहियस्स सेणियरण्णो पुरओ, विविहकहासुं पयट्टमाणीसुं। पत्थाववसा भणियं, एक्केण पहाणपुरिसेणं देव! महग्घमऽसुलहं, धणधण्णाऽऽइ इह तुम्ह नयरम्मि। नवरमऽमहग्घमेकं, मंसं सुलभं च सव्वत्थ इय तव्वयणं सामंत-मंतिजुत्तेण राइणा सम्मं । पडिवण्णं केवलमऽमल-बुद्धिणा भणियमऽभएण ताय ! किमेवं मुज्झह, मंसाओ वि हु महग्घमिह नत्थि। जह तह सुलहाई कंस-दूसपमुहाणि वत्थूणि मंतीहिं जंपियं थेव-मुल्लदाणे वि भूरिलाभाओ। कहमऽच्चंतमहग्घत्त-मेवमुल्लवसि मंसस्स। पच्चक्खं चिय सेसाणि, पेच्छ वत्थूणि पउरदव्वेण । लब्भंति एव भणिए, मोणं काउंठिओ अभओ नवरमिममेव वयणं, पइट्ठिउं तेण सेणियनरेंदो। वुत्तो पंच दिणाई, ताय ! महं देहि रज्जं ति वाहरिठं सयलजणं, अभओ रज्जे पइट्ठिओ रण्णा । बाहइ सिरं ति सयमऽवि, वुत्थो अंतेउरस्संऽतो अभएण वि उस्सुको, अकरो लोगो को समत्थो वि। घोसाविया अमारी, नियरज्जे वट्टमाणम्मि पत्ते य पंचमदिणे, रयणीए विहियवेसपरियत्तो। सामंतमंतिगेहेसु, सो गतो सोगविहुरो व्व वुत्तो सामंताऽऽईहिं, नाह! कि एवमाऽऽगमणकज्जं । भणियमऽभएण राया, अइविहुरो सीसवियणाए विज्जेहि य कालेज्जय-मोसहमाऽऽइट्ठमुत्तमनराण । नियगस्स तस्स तुब्भे, ता सिग्घं जवतिगं देह खुद्दो एसो त्ति विचिंतिऊण, तेहिं पि अप्परक्खट्ठा । रयणीए दिण्णाओ, अट्ठारस कणयकोडीओ। जाए पभायसमए. पण्णो अवहि त्ति रज्जमवणीयं । अभएणं नियपिउणो, अह सो तं कणयगुरुरासि दुट्टण आउलमणो, विचिंतए निद्धणो धुवमऽणेण। लोगो कओ कहऽण्णह, एत्तियमेत्तऽत्थसंपत्ती अह नयरवासिलोय-प्पवायमुवलंभिउं नरिंदेण। गूढनरा तियचच्चर-चउप्पहाऽऽईसु आइट्ठा आचंदसूरियं रज्ज-लच्छिमऽणुहवउ निग्गयपयावो। सुचिरं अभयकुमारो, मणहारी अमयमुत्ति व्व इय पइगेहं चिय जण-मुहाउ सोउं पुरम्मि जसवायं । गूढनरा नरवइणो, जहट्ठियं सव्वमऽकहिंसु ताहे विम्हइयमणेण, राइणा पुच्छिओऽभयकुमारो। कत्तो एत्तियमेत्ता, धणरिद्धी पुत्त ! पत्त त्ति तेणाऽवि मंसजवतिग-मग्गणपमुहो उ सव्ववुत्तंतो। सिट्ठो जहट्ठिओ सेणि-यस्स विम्हइयहिययस्स अच्चंतमहग्घत्तं, सुदुल्लहत्तं च तयऽणु मंसस्स । रण्णा निव्वभिचारं, पडिवण्णं सेसएहिं ति (पि) इय सोऊणं सम्म, मंसस्साऽऽसेवणं पुरा वि कयं । आराहणाकयमणो, मुणिवर! मा संभरेज्ज तुम एवं पसंगपाविय-मंसाऽऽइसरूवकहणसंबद्धं । भणिऊण मज्जदारं, विसयद्दारं पवक्खामि पुव्वं अणंतरं चिय, जे दोसा मज्जगोयरा भणिया। पाएणं विसएस वि, ते चेव भवंति सविसेसा जम्हा उ विसेसेणं, सीयंति इमेसु कयमणा मणुया। एएण कारणेणं, विसयत्ति निरुत्तमेएसिं एए उ महासल्लं, इमे महासत्तुणो परे लोए । एए उ महावाही, एए उ परमदारिद सल्लं हिययनिहित्तं, न सुहेल्लिं देइ देहिणो उ जहा। अंतो विचिंतिया तह, विसया वि दुहाऽऽवहा चेव ॥ ७१५०॥ ॥ ७१५१॥ ॥ ७१५२॥ ॥ ७१५३॥ ॥ ७१५४॥ ॥ ७१५५ ॥ ॥७१५६॥ ॥ ७१५७॥ ॥७१५८॥ ॥७१५९॥ ॥ ७१६०॥ ।।७१६१॥ ॥ ७१६२॥ ॥ ७१६३॥ ॥ ७१६४॥ ॥७१६५॥ ॥ ७१६६॥ ॥७१६७॥ ॥ ७१६८॥ ॥७१६९॥ ॥७१७०॥ ॥ ७१७१॥ ॥ ७१७२॥ ॥७१७३॥ ॥ ७१७४॥ ॥७१७५॥ ॥७१७६॥ ॥७१७७॥ ૨૦૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378