Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

View full book text
Previous | Next

Page 210
________________ जह नाम महासत्तू, दावेइ कयत्थणाओ विविहाओ। एमेव य विसया वि हु, अहवा एए परभवे वि ॥ ७१७८॥ जह नाम महावाही विहुरत्तं कुणइ इहभवम्मि तहा। विसया वि नवरमेए, भवंतरेसु वि अणंतगुणं ॥ ७१७९॥ ठाणं पराभवाणं, सव्वाण जहेह परमदारिदं । विसया वि किर तह च्चिय, पराभवाणं परं ठाणं ॥ ७१८० ॥ पत्ताई पावेंति, पाविस्संति य बहूणि बहवो वि। परिभवपयाई पुरिसा, ते जे विसयाऽऽमिसपसत्ता ॥ ७१८१॥ मण्णइ तणं पिव जगं, संदेहपए वि पविसइ विसइ । मरणस्स वि देइ उरं, अपत्थणिज्जं पि पत्थेइ ॥ ७१८२ ॥ लंघंति समुदं भीसणं पि, साहेति घोरवेयालं । किं बहुणा विसयकए, पविसंति जमाऽऽणणे वि नरा ॥ ७१८३॥ गरुयं पि हु परिवज्जिय, कज्जं विसयाऽऽउरो मुहत्तेण । तं कुणइ जेण हासो, जावज्जीवं जए होइ ॥ ७१८४॥ ववसइ पिउणो वि वह, बंधुं सत्तुं व मण्णइ मूढो । होइ अणिबद्धकज्जो, विसयग्गहपरिगओ परिसो ॥ ७१८५ ॥ विसया अणत्थपंथो, विसया माहप्पोपगा पावा। विसया लहुत्तपयवी, अकंडविड्डरकरा विसया ॥७१८६॥ विसया अवमाणपयं, विसया मालिण्णकारणमऽवंझं। विसया दुहेक्कहेऊ, इहपरभवबाहगा विसया ॥ ७१८७॥ खलइ मणो गलइ मई, परिहायइ पोरिसं पि पुरिसस्स। विसयाऽऽसत्तस्स गुरू-वइट्ठमिटुं पि वीसरइ ॥ ७१८८॥ सा जाइ तं च कुलं, सा कित्ती भुवणभूसणपयंडा । जइ ता विसयपसत्ती, ता फुसिया वामपाएणं ॥ ७१८९ ॥ जिणवयणदक्खचक्खू वि, पेक्खए पेक्खणिज्जभावे ता । जावऽज्जवि विसयपसत्ति-लक्खणा नीलिमा न भवे ॥ ७१९० ॥ धम्माऽभिप्पायपई-वओ मणोमंदिरम्मि ता फुरइ । जावऽज्जवि विसयपसत्ति-लक्खणा नेइ वाओली ॥७१९१ ॥ सव्वण्णुवयणपोओ, ता भवजलहीउ तारणसमत्थो। विसयप्पसंगपवणो, जावऽज्जवि नाऽवकूलेइ ॥ ७१९२॥ विमलं विवेयरयणं, तावऽज्जवि दिप्पए पयासइ वा। विसयप्पसंगपंसू, जावऽज्जवि नाऽवगुंडेइ ॥ ७१९३॥ विमलं पिजीवसंखे, पइट्ठियं सहइ ताव सीलजलं । विसयाऽभिनिविसेसाऽसुइ-संगा कलुसिज्जइ न जाव ॥ ७१९४ ॥ धम्म काउमऽसत्ता, विसयपसत्ता निहीणतमसत्ता। अत्ताणं अत्ताणं, न मुणंति हियं च न कुणंति ॥ ७१९५ ॥ विसया विऊण विसया, दूरऽवगण्णियजिणाऽऽगमंऽकुसया। तणुरुहिरहरणमसया, भवंति दावियअणिट्ठसया ॥७१९६ ॥ सुचिरं पि तवो तवियं, चिण्णं चरणं सुयं च बहु पढियं । जइ ता विसएसु मई, ता तं ही ! निप्फलं सव्वं ॥ ७१९७॥ सण्णाणमणिमहग्धं, फुरंतचारित्तरयणचिंचइयं । ओ! विसयचंडचरडा, लुटंति जीवभंडारं ॥ ७१९८॥ सा तुंगिमा स तेओ, तं विण्णाणं गुणा वि ते चेव । सव्वं खणेण नटुं, धिरत्थु विसयाऽऽभिलासस्स ॥ ७१९९ ॥ हद्धी! अलद्धपुव्वं, जिणवयणरसायणं पि घोट्टेडं। विसयमहाहालाहल-हल्लोहलिएहिं उग्गिलियं ॥ ७२००॥ सुहचरिए अप्पाणं, पावा पावाऽऽसवेसु सप्पाणं । अप्पाणं अप्पाणं, विसयाण कए कयत्थिति। ॥ ७२०१॥ चिट्ठइ दिह्रिविसगोयरम्मि, वग्गइ य तिक्खखग्गऽग्गे। असिपंजरम्मि कीलइ, सोयइ सत्तीए अग्गम्मि ॥ ७२०२॥ बंधइ पडम्मि अग्गिं, मूढो नियमत्थएण हणइ गिरिं। आलिंगइ सुहुयहुया-सणं च विसमऽसइ जीयऽत्थी ॥७२०३ ।। छुहियं सीहं कुवियं च, पण्णगं सुबहुमच्छियं च महुं । आहणइ सो अणज्जो, जो विसएसुं कुणइ गिद्धिं ॥७२०४ ॥ अहवा विसं मुहे च्चिय, खंधे च्चिय-सुनिसिओ असी तस्स । गत्ता मुहपुरओ च्चिय, उच्छंगे च्चिय कसिणसप्पो॥७२०५ ॥ पासट्ठिओ च्चिय जमो, हियए च्चिय तस्स जलइ पलयऽग्गी । मूलनिलीणो य कली, विसएसुं जस्स किर गिद्धी॥ ७२०६ ॥ अहवा नियवत्थंऽचल-गंठीबद्धं खु धरइ सो मरणं । सोयइ य निस्सहंगो, चलंतकुड्डयलपासाए ॥७२०७॥ उवविसइ स सूलाए, पविसइ य जलंतजउहरस्संऽतो। कुंतऽग्गम्मि य नच्चइ, करेइ विसएसुं जो गिद्धि ॥ ७२०८॥ अहवा दिट्ठिविसाऽऽई, होति विणासाय तब्भवे चेव । एए पुण हयविसया, अणंतभवदारुणविवागा ॥ ७२०९ ॥ अहवा ते सव्वे मंत-तंतदेवाऽऽइथंभिया संता। न भवंति तब्भवे वि हु, भयाय विसया उण दुरंता ॥ ७२१०॥ विसए सेविति जडा, अरईदुक्खस्स पसमणनिमित्तं । तं पुण तेहिं दढयरं, उच्छलइ घएण जलणो व्व ॥७२११ ॥ सूरा वि विसयगिद्धा, मुहजोया होंति महिलियाणंपि। जे पुण ताण विरत्ता, ते देवाणं पि पणतिपयं ॥७२१२॥ मोहमहागहगहितो, सहितो अरईए धम्मरइरहिओ। विसयवसो वावारइ, मणवइकाए अविसए वि ॥७२१३॥ विसयरणाऽवणिविणिवेसिया य, दुव्वारकरणकरडिघडा। मणवइतहिं विलसइ, पेक्खियपडिवक्खरूवाऽऽई ॥७२१४ ॥ १. अत्ताणं अत्ताणं - अत्राणम् आत्मानम, २. विसया - विषदाः, २०३

Loading...

Page Navigation
1 ... 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378