Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 206
________________ धण्णाणं खु कसाया, अमरिसवसवड्ढिया सुभीसणया । गरुया वि जंति विलयं, जलकल्लोल व्व तडपत्ता धण्णाण वि ते धण्णा, कसायगोधूमजवकणे जे उ । निप्पिट्ठपेसणे सह-करेंति अंतोघरट्ट व्व ता भो देवाणुपिया !, तुमं पि कोहाऽऽइनिग्गहपहाणो । होऊण तहा जय जह, सम्मं आराहणं लहसि इय कोहाइविणिग्गह- दारं तइयं समासओ कहियं । तुरियमिओ सवियप्पं, पमायदारं पयंपेमि धम्मे जेण पमायइ, स पमाओ सो य होइ पंचविहो । मज्जं विसय कसाए, निद्दं विगहं पि य पडुच्च तत्थ य मज्जइ जीवो, जेणं मज्जं ति भण्णई तेण । सव्वेसि पि वियाराण- मऽविकलं कारणं पयडं अबुहअविसिट्ठपेयं, एयं हेयं तु बुहविसिट्ठाण । जम्हा पेयमऽपेयं, विबुहविसिट्ठ च्चिय मुणंति इहपरलोयवियारे, जमऽदुद्वं दिट्ठमिह विसिहि । तं उत्तमं जसकरं, पयडं पेयं पवित्तं च जं वाऽऽगमपडिकुटुं, विसिट्ठजणनिंदियं वियारकरं । इहलोगे च्चिय पच्चक्ख-मेव दीसन्तबहुदो सं जं पीयं पच्छायइ, विमलं पि मई मणं च उवहणइ । सर्व्विदियाण जणयइ, वत्थुविबोहे विवज्जासं अप्पा विजओ समभाव-पत्तसव्वेंदियो वि सुत्थो वि। पोढमई वि हु फुडचेय-णो वि छेयाण वि नराण आसाइयमेत्ताओ, सहस च्चिय अण्णहा विपरिणमइ । तं किर मज्जमऽणज्जं, को णु सयण्णो पिबेज्ज फुडं इहपरभवदुहजणगा, दोसा पइसमयमेव मज्जाओ । पाउब्भवंति विविहा, बीयंऽकूरा इव जलाओ तहा मज्जा रागुक्करिसो, रागुक्करिसाउ वड्ढइ कामो । कामाऽऽसत्तो य दढं, गम्माऽगम्मं न चितेइ विगलत्तमऽविगलाणं, मज्जं जइ जणइ इहभवे चेव । ता वहउ विसं समसीसि यं पि सह तेण किं भणिमो अह मज्जं चिय जम्मंतरेवि, विगलिंदियत्तणं देइ । एक्कभवियं विसं ता, कह मज्जेणं समं तुलइ नय चिंतणीयमेयं, जह संधाणत्तओ विसिट्ठाण । पेज्जं चिय मज्जम हो !, जहाऽऽरनालं हि जेणेह पेयाऽपेयववत्था, सव्वा वि विसिट्ठलोयसत्थकया। संधाणसमत्ते वि हु, पेयं एक्कं परं न ता सिहं संधियदक्खाऽऽइ-पाणगं सव्वहा जहा पेयं । संधाणत्ते तुल्ले वि, न तह अत्थियकरीरजलं ता एसा लोयकया, पेयववत्था इमा उ सत्थकया। लोइयलोउत्तरियं तं च दुहा तत्थिमं पढमं गौडी पैष्टी तथा माध्वी, विज्ञेया त्रिविधा सुरा । यथा चैका तथा सर्वा, न पातव्या द्विजोत्तमैः यस्य कायगतं ब्रह्म, मद्येन प्लाव्यते सकृत् । तस्य व्यपैति ब्राह्मण्यं शूद्रत्वं च नियच्छति नारीपुरुषयोर्हन्ता, कन्यादूषकमद्यपौ । एते पातकिनः प्रोक्ताः, पञ्चमस्तैः सहाऽऽवसन् वर्षाणि द्वादश वने, ब्रह्महा व्रतमाऽऽचरेत् । गुरुतल्पः सुरापो वा, नाऽमृतौ शुद्धिमऽर्हतः मद्येन मद्यगंधेन, स्पृष्टं भाण्डमऽपि द्विजः । न संस्पृशेदऽथ स्पृष्टं, तदा स्नानेन शुध्यति मज्जप्पमायविरओ, अमज्जमंसाऽसि एवमाऽऽइ पुण। लोउत्तरियं सत्थं, उभयनिसिद्धं तओ मज्जं जेट्टं कारणमेयं, मण्णे पावस्स तेण किर मज्जं । विणिवेसियं विऊहिं, सव्वपमायाणमाऽऽईए अप्पीए साऽऽकंखा, पीए विहलंघला य होंति जओ । सव्वऽत्थेसुं तम्हा, निच्चमऽजोग्गा तदाऽऽसत्ता विज्जन्ती वि हु न फुरइ, मत्तस्स मइ ति निच्छओ मज्झ । कहमऽण्णहा उ अत्थे, गमइ अणत्थे उ आणेइ रिउगम्मत्तप्पमुहा, इहलोगे चेव ताव बहुदोसा । परलोगे पुण दुग्गइ-गमाऽऽइणो मज्जपाणस्स मत्तस्स वयणखलणं, जं तं आउक्खउव्वुवट्ठियओ । नरगं व पत्थिओ तह, अहो लुठंतो सयं जाइ नयणाऽरुणत्तमऽवि किर, आसण्णीभूयनरयतावकयं । अनिबद्धहत्थखिवणा, मण्णे जाओ निरालंबो रिसिणो य बंभणा विय, अण्णे वि हु धम्मकंखिणो जे य । मज्जम्मि जइ न विज्जइ, दोसो तो कीस न पिबंति पढमम्मि पमायंगे, सुहचित्तविदूसगम्मि मज्जम्मि। दोसा पच्चक्खं चिय, भंडणपमुहा अणेगविहा सुव्वइ य लोइयरिसी, होऊण महातवो वि मज्जाओ। देवीहिं खित्तचित्तो, मूढो व्व विडंबणं पत्तो कोइ रिसी तवइ तवं, भीओ इंदो उ तस्स खोभकए । पेसेइ देवीओ ताहे आगम्म ताउ तयं आराहिऊण विणया, वरदाणोवट्ठियं च अभर्णसु । मज्जं हिंसं अम्हे, पडिमाभंगं च सेवेसु ૧૯૯ ॥ ७०३३ ॥ ।। ७०३४ ।। ॥ ७०३५ ॥ ।। ७०३६ ॥ ।। ७०३७ ॥ ॥ ७०३८ ॥ ॥ ७०३९ ॥ ॥ ७०४० ॥ ।। ७०४१ ॥ ।। ७०४२ ।। ॥ ७०४३ ॥ ॥ ७०४४ ॥ ।। ७०४५ ।। ॥ ७०४६ ॥ ।। ७०४७ ॥ ।। ७०४८ ।। ।। ७०४९ ॥ ।। ७०५० ॥ ।। ७०५१ ॥ ।। ७०५२ ।। ॥ ७०५३ ॥ ।। ७०५४ ।। ।। ७०५५ ।। ॥ ७०५६ ॥ ॥ ७०५७ ॥ ।। ७०५८ ।। ।। ७०५९ ।। ॥ ७०६० ॥ ।। ७०६१ ॥ ।। ७०६२ ॥ ।। ७०६३ ।। ॥ ७०६४ ॥ ॥ ७०६५ ॥ ॥ ७०६६ ॥ ।। ७०६७ ।। ।। ७०६८ ।। ॥ ७०६९ ।।

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