Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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एगम्मि य पत्थावे, सरयऽब्भचलत्तणेण जीयस्स। सो पत्तो पंचत्तं, तस्स पयम्मि य ठिओ पुत्तो सो एगया निसण्णो, मज्जणपीढम्मि ण्हाणकरणत्थं । तइया चउसु दिसासुं, चउरो कलहोयवरकलसा तत्तो दुव्वण्णमया, तंबमया तयणु मिउमया तत्तो । तेहिं च कीरमाणे, हाणे महया पबंधेण इस्सरियत्तस्स सुरेंद-चावचवलत्तणेण कणयमओ। पुव्वदिसाए कलसो, नट्ठो गयणेण खयरो व्व एवं चिय सव्वे वि हु, नट्ठा तो उट्ठियस्स ण्हाणाओ। नटुं मज्जणपीढं पि, विविहमणिकणयचिचइयं तो जायगाढसोगो, सो तव्विहवइयरं पलोइत्ता । गेयट्ठमुवट्ठियनाड-इज्जपुरिसे विसज्जेइ जाओ भोयणसमओ, भिच्चेहि रसवई उवट्ठविया। कयदेवऽच्चणकिच्चो, भोयणकरणथमाऽऽसीणो विहियं पुरिसेहिं पुरो, तस्सिंदुसमुज्जलं स्ययथालं। अच्चंतजच्चकंचण-कच्चोलयरुप्पसिप्पिजुयं भुंजंतस्स य एक्केक्क-भायणं नासिउं समारद्धं । ता जाव मूलथालं पि, पत्थियं नासणकएण तो तेण विम्हिएणं, गहियं हत्थेण तं पणस्तं । गहियं च जेत्तियं मोत्तुं, तत्ति सेसयं नटुं तो सिरिहरं पलोयइ, तं पि हु पेहेइ विगयसव्वधणं । नट्ठाई निहाणाई, वड्डिपउत्तं पि नो लहइ आभरणसमहं पिह, नो पावइ निययहत्थठवियं पि। तह उवयरिओ लहु दास-दासीवग्गो वि हु पलीणो सयणगणो वि समग्गो, कओवयारो वि णेगवाराओ। बाद अपरिचिओ इव, कत्थइ किच्चे ण चट्टेइ एवं च तं समग्गं, गंधव्वपुरं व सुमिणदिटुं व। परिभाविऊण सो सोग-विहुरहियओ विचितेइ धी! मज्झ जीविएणं, जस्सेवं मंदभग्गसिरमणिणो । जम्मंतरं व पल्लट्ट-मेक्कदिवसस्स चिय अंते सयखंडं विहडियसंपयं पुणो संघडंति सप्पुरिसा । हारिति विज्जमाणं पि, मारिसा अहह! काउरिसा मण्णे पुव्वभवम्मि, धुवं मए कि पि नो कयं सुकयं । पडिओ इण्डिं चिय तेण, एस विसमो दसापागो ता संपयं पि सुकयऽज्जणाय, वट्टामि होउ सोगेण । इइ चिन्तिऊण सिरिधम्म-घोसमूलम्मि पव्वइओ संवेगाऽऽवडियमई, विणयपरो परमधम्मसद्धाए । सुत्तेणं अत्थेण य, पढेइ एक्कारसंऽगाई पव्वगहियं च तं थाल-खंडमज्झइ न कोउहल्लेण । जइ पुण विहरंतो कहवि, पुव्वथालं निएमित्ति अनिययविहारचरियाए, विहरमाणो य सो कहिं पि गओ। उत्तरमहुरपुरीए, भिक्खट्ठाए य भममाणो तस्स धणसारइब्भस्स, मंदिरे सुंदरे कहवि पत्तो । मज्जित्ता तव्वेलं, इब्भो य उवट्ठिओ भोत्तुं दिण्णं पुरओ तं चेव, रययत्थालं सुया वि से पुरओ। नवजोव्वणाऽभिरामा, ठिया गहेऊण वीयणगं साह वि अणिमिसऽच्छो, खंडं थालं पलोयए जाव । इब्भेण ताव भिक्खा, दवाविया तहवि नो जाइ तो इब्भेणं भणियं, भयवं! कि पेच्छसे ममं धूयं । वागरियं मुणिणा भद्द !, नत्थि धूयाए मे कज्जं किं तु कहेसु कहं ते, थालमिणं तेण जंपियं भंते!। अज्जयपज्जयपडिपज्ज-याऽऽगयं साहुणा भणियं साहेसु अवितहं तो, इन्भेणं पयंपिअंमहं भयवं!। हायंतस्स उवट्ठिय-मऽखिलं ण्हाणोवगरणमिणं भोयणसमए य इमं, भोयणभंडगपमोक्खमुवगरणं । सिरिघरमवि पउरेहिं, निहीहिं आऊरियं गाढं मुणिणा भणियं सव्वं, एयं मह आसि तेण तो वुत्तो । कहमेयं? तो मुणिणा, पच्चयहेउं तओ थालं आणावेत्ता तं थाल-खंडगं पुव्वकालसंगहियं । ढोइयमऽह तत्तं पिव, झडत्ति लग्गं सठाणम्मि सिट्ठो य धामपिउनाम-विभवविद्धंसवइयरो सव्वो। सो एस मज्झ जामा-उओ त्ति नाऊण तो इब्भो अंतोपसरंतमहंत-सोगवसनीहरंतबाहजलो। साहुमुवगहिऊणं, बाढं रोवेउमाऽऽरद्धो विम्हइयमणेण य परि-यणेण कहकहवि वारिओ संतो। गाढपडिबंधबंधुर-मेवं साहुं समुल्लवइ धणवित्थारो सव्वो, तदऽवत्थो एस अच्छइ तुज्झ । एसा य पुव्वदिण्णा, धूया मे तुज्झ साहीणा आणानिद्देसकरो, किंकरवग्गो य एस नीसेसो। ता पव्वजं मोत्तुं, विलससु सगिहे व्व सच्छंद मुणिणा भणियं पुव्वं, पुरिसो परिचयइ कामभोगगुणे । ते वा पुव्वं पुरिसं, चयंति सुकयाऽवसाणम्मि जे उज्झिऊण वच्चंति, तेसिं गहणं न माणिणो जुत्तं । सरयऽब्भविब्भमेहि, ता मज्झं तेहिं पज्जत्तं एवं निसामिऊणं, इब्भो पाउब्भवंतसंवेगो। चितेइ ममं पि इमे, पावा निययं चइस्संति ,
॥६९५८॥ ॥६९५९॥ ॥६९६०॥ ॥६९६१॥ ॥६९६२॥ ॥६९६३॥ ॥६९६४॥ ॥ ६९६५॥ ॥ ६९६६ ॥ ॥६९६७॥ ॥६९६८॥ ॥ ६९६९॥ ॥६९७०॥ ॥६९७१॥ ॥ ६९७२॥ ॥६९७३॥ ॥ ६९७४ ॥ ॥६९७५ ॥ ॥ ६९७६ ॥ ॥ ६९७७॥ ॥ ६९७८॥ ।। ६९७९ ॥ ॥ ६९८०॥ ॥६९८१॥ ॥६९८२॥ ॥६९८३॥ ॥६९८४॥ ॥६९८५ ॥ ॥ ६९८६॥ ॥ ६९८७॥ ॥६९८८॥ ॥६९८९॥ ॥६९९०॥ ॥ ६९९१॥ ॥ ६९९२॥ ॥६९९३॥ ॥६९९४॥ ॥६९९५ ॥
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