Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 201
________________ उग्गं पि तवो तवियं, चिरकालं बालिसो कुणइ विहलं । अहमेव दुक्करतवो-कारित्ति मयं परिवहतो वंसाउ व्व तवाउ, मओ हुयासो व्व अहह ! संभूओ। सट्ठाणं डहइ न किं नु, सेसगुणतरुसमूहं पि सेसाऽणुट्ठाणाणं, सुदुक्करं वागरेंति तवमेव । तं पि मएणं हारिति, ही! महं मोहमाहप्पं किं च जिणिदाऽऽईणं, अगिलाए अणुवजीवणेणं च । अणिगृहियबलवीरिय-त्तणेण निरवेक्खवित्तीए तिहुयणदिण्णऽच्छेरं, तवकम्ममऽणुत्तरं निसामेत्ता । मज्जेज्ज को अणज्जो, थेवेणाऽवि हु नियतवेण अच्छंतु पुव्वपुरिसा, असरिसबलबुद्धिबंधुरा धणियं । जो न तहाविहअहिगय-सुओ वि सामण्णरूवो वि साहू दढप्पहारी, तस्स वि नाऊण घोरतवचरणं । तवविसए थेवं पि हु, को णु सयण्णो मयं कुज्जा ॥ ६८५०॥ ॥ ६८५१॥ ॥६८५२॥ ॥६८५३॥ ॥६८५४॥ ॥६८५५॥ ॥६८५६॥ तहाहि एगम्मि महानगरे, नयवंतो माहणो वसइ एक्को । पुत्तो दुइँतो से, अविणयमाऽऽयरइ अविरामं संताविएण पिउणा, स नीणिओ अण्णया नियगिहाओ। हिंडंतो य कहं पि हु, तक्करपल्लिं समल्लीणो दिवो सेणावइणा, अपुत्तएणं च पुत्तबुद्धीए । संगहिओ सिक्खविओ य, खग्गधणुपहरणाऽऽइकलं . अच्चंतं पत्तट्ठो, जाओ सो निययबुद्धिविभवेण । पाणप्पिओ य सेणा-वइस्स सेसस्स य जणस्स निद्दयदढप्पहारित्तणेण, नामं दढप्पहारि त्ति । गोण्णं पइट्ठियं से, सेणावइणा पहिढेण -- अह हयलालाहरिधणु-विणस्सरत्तेण सव्वभावाणं । सेणावई तहाविह-रोगवसा मरणमऽणुपत्तो तम्मयकिच्चं काउं, जणेण सेणावइत्तणे ठविओ। उचिओ विभाविऊणं, दढप्पहारी पणमिओय पुवठिईए पालइ, सो य महाविक्कमो नियं लोयं । लुटेइ य विगयभओ, गामाऽऽगरनगरनिगमाणि अह अण्णया कयाई, हंतुं गामं कुसत्थलं स गओ। तहियं च देवसम्मो, अइरोरो माहणो वसइ तम्मि य दिणम्मि पायसकएण सो पत्थिओ अवच्चेहि। अच्चंतपयत्तेणं, घराघरि मग्गिउं दुद्धं सह तंदुलेहि अप्पइ, महिलाए तयणु तम्मि सिज्झते । सरियातीरे वच्चइ, काउं देवऽच्चणाऽऽइविहिं चोरा य तस्स भवणे, पत्ता दिट्ठो य पायसो सिद्धो । गहिओ य तक्करेणं, एक्केण छुहाकिलंतेण तं हीरंतं दटुं, हा ! हा ! मुट्ठ त्ति जंपिराइं जवा। गंतूण चेडरूवाइं, देवसम्मस्स साहिति अह सो कौववसुग्गय-भालयलकरालभिउडिभीममुहो। पुणरुत्तचंडतंडविय-तारनयणो विमुक्कसिहो अइवेगगमणविगलिय-कडिल्लसंठवणवावडकरग्गो। करहसिसुपुच्छसच्छह-मंसूणि परामुसंतो य रे! रे! कहिं गमिस्सह, पाव! मिलेच्छ! त्ति वाहरेमाणो। परिहं घेत्तुं लग्गो, जुज्झेउं तक्करहिं समं गुरुगब्भभरक्कन्ता, जुझंतं तं च वारए महिला । तहवि न सो पहरन्तो, विरमइ कुविओ कयंतो व्व तो तेणं हम्मंते, दुटुं सेणावई निययचोरे। अच्चंतजायकोवो, आयड्डिय तिक्खकरवालं छिदेइ माहणं माहणि च तस्संऽतरम्मि वस॒ति । मा पहरसु त्ति पुणरुत्त-जंपिरि अड्डदिण्णकरं दुटुंच फुरुफुरंतं, असिघाएणं दुहाकयं गब्भं । संजायपच्छयावो, दढप्पहारी विचितेइ हा! हा! अहो ! अकज्जं, कयं मए कहमिमाउ पावाओ । मुंचिस्समऽहं एत्तो, ता किं तित्थेसु वच्चामि किं वा भेरवपडणे, पडामि जलणम्मि अहव पविसामि । किं वा खिवामि भागी-रहीए सलिलम्मि अप्पाणं एमाऽऽइ विसुद्धिकए, उव्विग्गमणो विचिंतयंतो सो। पेच्छइ मुणिणो एगत्थ, संठिए धम्मझाणपरे तप्पायपंकयं वंदि-ऊण परमाऽऽयरेण सो भणइ । एवंविहस्स पावस्स, कहह भंते ! मह विसुद्धि नीसेसपावपव्वय-निद्दलणुद्दामकुलिसपडितल्लो । कहिओ तस्स मुणीहिं, कयसिवसम्मो समणधम्मो उवलद्धकम्मविवरतणेण, अमयं व तस्स अभिरुइओ। तो संवेगोवगतो, ताण समीवम्मि निक्वंतो सुमरिस्सं जत्थ दिणे, तं दुच्चरियं न तत्थ भुंजिस्सं । इयऽभिग्गहं च घेत्तुं, विहरइ तत्थेव गामम्मि सो एस तहाविहगरुय-पावकारि त्ति जंपमाणेण । निदिज्जइ लोगेणं, हम्मइ य पहम्मि हिंडंतो अहियासइ सो सम्मं, अत्ताणं निदइ य पुणरुत्तं । न य गिण्हइ आहारं, धम्मज्झाणम्मि वट्टइ य १. गोण्णं - गुणवाचकम्, ॥ ६८५७॥ ॥ ६८५८॥ ॥६८५९॥ ॥ ६८६०॥ ॥ ६८६१॥ ॥ ६८६२॥ ॥६८६३॥ ॥ ६८६४॥ ॥ ६८६५॥ ॥ ६८६६॥ ॥ ६८६७॥ ॥ ६८६८॥ ॥६८६९॥ ॥६८७०॥ ॥६८७१ ॥ ॥६८७२॥ ॥ ६८७३ ॥ ॥६८७४ ॥ ॥६८७५ ॥ ॥ ६८७६॥ ॥६८७७ ॥ ॥६८७८ ॥ ॥६८७९ ॥ ॥ ६८८०॥ ॥ ६८८१॥ ॥ ६८८२ ॥ ॥६८८३॥ ॥६८८४॥ ॥६८८५॥ ૧૯૪

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