Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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अहवा वि दव्वओ भावओ य, संलेहणा दुहा तत्थ । दव्वे सरीरगस्सा, भावे इंदियकसायाणं तत्थ य जा उक्कोसा, बारस वरिसाइं कालओ भणिया। सा दव्वओ पवुच्चइ, सुत्तऽणुसारेण इय किं पि विविहाऽभिग्गहसंगय-चउत्थछट्ठट्ठमाऽऽइविविहतवं । काऊण सव्वकाम-ग्गुणिएणं चेव पारेतो पढमं वासचउक्कं, गमेइ खमगो पुणो वि चत्तारि। सुविचित्ततवोजुत्ताई, नवरि भुंजइ न सो विगई एगंऽतरिओवासा-ऽऽयंबिलपारणगविहिसणाहाई । तवइ वरिसाइंदोण्णि, य वरिसाइं दस गयाइं अह एक्कारसवच्छर-छम्मासे आइमे तवे काउं। नाऽइविगिटुं परिमिय-माऽऽयामेणं च भुंजेइ अन्तिमछम्मासे पुण अट्ठमदसमाऽऽइतवविहि काउं। आयामेण जहिच्छं, भुंजइ तणुधारणट्ठाए एव एक्कारसवच्छराणि, गमिऊण बारसमवरिसं । कोडीसहियाऽऽयंबिल-तवकरणेणं समाणेइ नवरं बारसमस्सा, वरिसस्स उ अन्तिमम्मि चउमासे । एगंऽतरियं सुचिरं, धारेज्जा तेल्लगंडूसं तं छारमल्लगे पक्खिवित्तु, धोवेज्ज आणणं तत्तो। किं पुण एत्थ निमित्तं, भण्णइ वारण मा वयणं संमिल्लेज्जा तस्स उ, एवं च कयम्मि मरणसमए वि। उच्चरइ नमोक्कारं, सयं अजत्तेण स महप्पा एसुक्कोसा संले-हणा मए दव्वओ समक्खाया । छ-च्चउम्मासाऽऽइया, एस च्चिय भण्णइ जहण्णा सविसयपसत्तइंदिय-कसायजोगाण निग्गहणरूवा । एसा उ भावसंले-हणेह नाणीहिं उवइट्ठा : - इय ताव विसेसविहि, पडुच्च संलेहणा विणिद्दिट्ठा । चिण्णियसामण्णेणं, एवं चिय अणसणाऽऽईहिं अणसण मूणोयरिया, वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ। कायकिलेसो सेज्जा, विवित्तसंलीणयाऽऽई य देसे सव्वेऽणसणं, सव्वाऽणसणं भणंति भवचरिमं । देसे चउत्थमाऽऽई, जहसत्तीए कुणइ एसो ऊणोयरिया दुविहा, दव्वे भावे य तत्थ दव्वम्मि। उवगरणभत्तपाणे, सा उवगरणे जिणाऽऽईणं जिणकप्पऽब्भासीण व, न उ अण्णेसि पि संजमाऽभावा । अइरित्तपरिच्चाया, सव्वेसिं वा जओ भणियं जं वट्टइ उवयारे, उवगरणं तं खु होइ नायव्वं । अइरेगं अहिगरणं, अजओ अजयं परिहरंतो तहाबत्तीसं किर कवला, आहारो कुच्छिपूरओ भणितो। पुरिसस्स महिलियाए, अट्ठावीसं भवे कवला कवलाण उ परिमाणं, कुक्कुडिअंडयपमाणमेत्तं तु । जं वा अविगियवयणो, वयणम्मि छुहेज्ज वीसत्थो एवं ववत्थियम्मि, ऊणोयरिया उ भत्तपाणेसु । जिणगणहरपण्णत्ता, अप्पाऽऽहाराऽऽइपंचविहा अप्पाऽऽहार-अवड्ढा, दुभागपत्ता तहेव किंचूणा । अट्ठदुवालससोलस-चउवीस तहेक्कतीसा य अहवाएगाऽऽइकवलहाणी, नियगाऽऽहाराउ ताव जा कवलं । कवलऽद्धमेगसित्थं, ऊणोयरिया इमा दव्वे कोहाऽऽईणमऽणुदिणं, चाओ जिणवयणभावणाए उ। भावेणोमोयरिया पणत्ता, वीयरागेहि वित्तीसंखेवो पुण, गोयरकालम्मि दत्तिभिक्खाण । जं परिमाणं पिंडे-सणाण पाणेसणाणं च अहवा पइदिवसं सो, चित्ताऽभिग्गहपरिग्गहणरूवो। ते पुण दव्वे खेत्ते, काले भावे य नायव्वा तत्थलेवडमऽलेवडं वा, अमुगं दव्वं व अज्ज घेच्छामि । अमुगेण व दव्वेणं, अह दव्वाऽभिग्गहो नाम
॥ ४००५ ॥ ॥ ४००६॥ ॥ ४००७॥ ॥ ४००८॥ ॥ ४००९॥ ॥ ४०१०॥ ॥ ४०११॥ ॥ ४०१२॥ ॥ ४०१३॥ ॥ ४०१४॥ ॥४०१५॥ ॥ ४०१६॥ ॥ ४०१७॥ ॥ ४०१८॥ ॥ ४०१९॥ ॥४०२०॥ ॥ ४०२१॥ ॥ ४०२२॥ ॥ ४०२३॥
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॥ ४०३२॥
तहा
अट्ट उ गोयरभूमी, एलुगविक्खंभमेत्तगहणं च । सग्गामपरग्गामे, एवइयघराउ खेत्तम्मि उज्जुयगंतुं पच्चाऽऽगई य, गोमुत्तिया पयंगविही। पेडा य अद्धपेडा, अब्भिन्तरबाहिसंबुक्का काले अभिग्गहो पुण, आई मज्झे तहेव अवसाणे । अप्पत्ते सइ काले, आई वी मज्झि तइयंऽते दितगपडिच्छगाणं, हवेज्ज सुहुमं पि मा हु अचियत्तं । इइ अप्पत्त अईए, पवत्तणं मा य तो मज्झे उक्खित्तमाऽऽइचरगा, भावजुया खलु अभिग्गहा होति । गायंतो य रुयंतो, जं देइ निसण्णमाऽऽई वा ओसक्कणअहिसक्कण-परंमुहाऽलंकिएयरो वा वि। भावऽण्णयरेण जुओ, अह भावाऽभिग्गहो नाम
॥ ४०३३॥ ॥ ४०३४॥ । ४०३५॥ ॥ ४०३६॥ ॥ ४०३७॥ ॥४०३८॥
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