Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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पण्णरसमिमं भणियं, पावट्ठाणं इयाणि वण्णेमि। परपरिवायऽभिहाणं, संखेवेणेव सोलसमं
॥ ६३७६ ॥ लोयाण समक्खं चिय, परदोसविकत्थणं जमिह सो उ। परपरिवाओ मच्छर-अत्तुक्करिसेहिं संभवइ
॥६३७७॥ जम्हा मच्छरगहिओ, न गणइ पणयं न चेव पडिवण्णं । न य कयमुवयारं पि य, न परिचयं नेय दक्खिण्णं ॥६३७८ ॥ न गणेइ य सुयणत्तं, न यऽप्पपरभूमिगाविसेसं पि । न कुलक्कम न धम्म-ट्ठिइंच नवरं स निच्चं पि
॥६३७९ ॥ चलइ ववहरइ कह सो, किं चिंतइ भासइ कुणइ किं वा । इय परछिद्दनिरिक्खण-वक्खित्तमणो मुणइ न सुहं ॥६३८०॥ एवं कमेण एक्को वि, मच्छरो जायए परो हेऊ। परपरिवायविहीए, किं पुण अत्तुक्करिससहिओ
॥ ६३८१॥ सुरगिरिगरुयं पि परं, परमाऽणुं मुणइ अत्तउक्करिसी। अप्पाणं पुण तिणतुल्ल-मऽवि गुरुं अमरगिरिणो वि ॥ ६३८२ ॥ एवं परपरिवायं, अकयं कह पोढकारणत्तणओ। धरिउं सक्को सक्को वि, नामरहिओ वि वेगेण
॥६३८३॥ जह जह परपरिवायं, करेइ तह तह लहुत्तणमुवेइ । जह जह तमुवेइ जणे, तह तह जायइ दढमऽपुज्जो ।। ६३८४ ।। जह जह परपरिवाओ, किज्जइ तह तह गुणा पणस्संति । जह जह ताण पणासो, तह तह दोसाण संकमणं ॥ ६३८५ ॥ जह जह तस्संकमणं, तह तह वयणिज्जभायणं हवइ । एवमऽकल्लाणाणं, परपरिवाओ पढमठाणं
। ६३८६॥ परपरिवाएणं सं-घडंति दोसा अहुंतया वि नरे। हुंता पुण बहुबहुतर-बहुतमघणनिबिडया होंति
॥६३८७॥ परपरिवायं मच्छर-अत्तुक्करिसेहिं जो नरो कुणइ । जम्मंऽतरेसु वि चिरं, सो भमइ निहीणजोणीसु
॥६३८८॥ गुणरयणहारणं दोस-कारणं जाणिऊण न करेंति । धण्णा परपरिवायं, परमगुरूहि वि जओ भणियं
॥ ६३८९॥ परपरिवायं गिण्हइ, अट्ठमयविरिल्लणे सया रमइ । डज्झइ य परसिरीए, सकसाओ दुक्खिओ निच्चं
॥६३९०॥ विग्गहविवायरुइणों, कुलगणसंघेण बाहिरकयस्स । नऽत्थि किर देवलोए वि, देवसमिईसु अवगासो ॥६३९१ ॥ जइ ता जणसंववहार-वज्जियमऽकज्जमाऽऽयरइ अण्णो । जो तं पुणो विकत्थइ, परस्स वसणेण सो दुहिओ ॥६३९२ ॥ सुट्ठ वि उज्जममाणं, पंचेव करेंति रित्तयं समणं । अप्पथुई परनिंदा, जिब्भोवत्था कसाया य
॥ ६३९३॥ परपरिवायमई उ, दूसइ वयणेहि जेहिं जेहि परं। ते ते पावइ दोसे, परपरिवाई इय अपेच्छो
॥ ६३९४॥ परपरिवायपसत्तो, सत्तो दोसे परस्स जंपंतो। ते च्चिय भवंऽतरगओ-ऽणंताणते सयं लहइ
॥ ६३९५॥ एवं परपरिवाओ, किज्जंतो परमदारुणविवाओ। वसणसयसण्णिवाओ, समत्थगुणकरिसणकुवाओ ॥ ६३९६॥ सुहगिरिवज्जनिवाओ, न देइ गंतुं कहिं पि हु भवाओ। इह सव्वदुहसमवाओ, भवंतरे दोग्गइनिवाओ
॥६३९७॥ परपरिवायपसत्तो, उवरि सुभद्दाए ससुरवग्गो व्व । अजसप्पवायपहओ, जणमज्झे पावए खिसं
॥ ६३९८॥ परपरिवायपरम्मिवि, तम्मि सा पुण तयं अकुव्वंती। देवकयपाडिहेरा, कित्ति पत्ता महासत्ता
॥ ६३९९॥ तहाहिचंपाए नयरीए. तच्चण्णियभत्तवणियपत्तेण । दिट्ठा कहमऽवि जिणदत्त-सधूया सुभद्द त्ति
॥६४००॥ उप्पण्णतिव्वरागेण, मग्गिया सा य तेण परिणेउं । जणगेण य नो दिण्णा, मिच्छद्दिट्ठि त्ति काऊण
॥६४०१॥ तप्परिणयणनिमित्तं च, तेण कवडेण साहुमूलम्मि। पडिवण्णो जिणधम्मो, भावेण य परिणओ पच्छा ॥ ६४०२॥ निच्छउमधम्मनिरओ त्ति, निच्छिउं सावगेण वि सुभद्दा । दिण्णा कओ विवाहो, भणितो य विभिण्णगेहम्मि ॥६४०३ ॥ धारेज्जसु मह धूयं, विसरिसधम्मम्मि ससुरगेहम्मि। कत्तो इमीए इहरा, होही नियधम्मवावारो
।। ६४०४॥ पडिवण्णमिमं तेण वि, तहेव ठविया विभिण्णगेहम्मि। जिणपूयणमुणिदाणाऽऽइ-धम्ममऽणिसं च सा कुणइ ॥६४०५ ॥ जिणधम्मपच्चणीय-त्तणेण तीए परं ससुरवग्गो। छिद्दाइं पेहमाणो, निदं काउं समाढत्तो
॥ ६४०६ ॥ तब्भत्ता वि पउट्ठ त्ति, तग्गिरं धरइ नेव चित्तम्मि। एवं वच्चइ कालो, तेसिं सद्धम्मनिरयाणं
॥६४०७॥ अह एगम्मि दिणम्मि, निप्पडिकम्मो महामुणी एगो। भिक्खट्ठाए पविट्ठो, ताण गिहे तो सुभद्दाए
॥६४०८॥ मिक्खं देंतीए नयण-निवडियं कणुगमऽग्गजीहाए। अवणीयं मुणिणो छेय-याए पीडाकरं नाउं
॥६४०९॥ नवरं तीसे तयऽवणय-णेण भालयलविरइओ तिलओ। लग्गो मुणिणो भाले, नणंदपमुहाहि दिट्ठो य ॥६४१०॥ चिरकाललद्धछिद्दाहिं, ताहि तप्पिययमो ततो भणिओ। पेच्छसु नियभज्जाए, एवंविहसीलमऽकलंक ॥ ६४११ ॥ १. चण्णियभत्त - बौद्धभक्त.,
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