Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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तहाहिसुरभवणवाविदीहिय-पोक्खरणिकाणणोलिरम्माए। सावत्थीए पुरीए, बहुपत्थिवपणयपयपउमो आसी नरेंदसीहो, नामेण महीवई जयपसिद्धो। वेयऽत्थवियारविऊ, पुरोहिओ अमरदत्तो से पुत्तो य तस्स सुलसो, तारुण्णेणं सुएण विभवेण । नरवइसक्कारेण य, सो परमं गव्वमुव्वहइ समवयवयस्सजणपरि-गओ य तियचच्चराऽऽइसु पुरीए। सच्छंदं विहरइ वारणो व्व अवगणियजणसंको एगम्मि य पत्थावे, सुहाऽऽसणत्थस्स तस्स उवणीया । सहयारमंजरी मालिएण रणझणिरभमरउला तो वम्महलिहियसहत्थ-पत्तलं पिव पलोइऊणं तं । पत्तो वसंतमासो त्ति, जायहरिसो सहत्थेण वियरेऊण य से पारि-ओसियं छेयपरियणाऽणुगओ। नंदणवणाऽभिहाणे, उज्जाणे सो गओ झत्ति तो कयअब्भुट्ठाणेण, नंदणुज्जाणपालगेण सयं । भणिओ कुमार! चक्, खिवसु खणं इहपएसम्मि पसरंतबहलपरिमल-मिलंतअलिवलयकलियसाहऽग्गा । रुद्दक्खमालहत्था, बउला जोगि व्व रेहंति कंकेल्लिणो वि उम्मिल्ल-पल्लवुल्लिहियनहयलाऽऽभोगा। पज्जलियजलणपुंज व्व, दिति विरहीण संतावं कमलमुही किंसुयकुसुम-अंसुया मल्लियामउलदसणा। पाडलनयणा कोरइय-कुरवयत्थवयथोरथणी फुरियसुसिणिद्धतिलया, वणलच्छी, तारपरहुयरवेण । उग्गायइ व्व वम्मह-महिवइणो तिजयविजयजसं इय नंदणवणवालय-पिसुणियतरुसोहदुगुणिउच्छाहो । सो उज्जाणस्सऽब्भं-तरम्मि परिभमिउमाऽऽरद्धो परिभममाणेण य तेण, कहवि एगत्थ वणनिउंजम्मि । वèतो सज्झाए, एगो दिवो मुणिवरिखो तो पाविट्ठत्तणओ, जाइमयं परममुव्वहन्तेण । परिहासं काउमणेणं, वंदिओ भत्तिसारंच भणितो य भदंत ! ममं, भवभयभीरुस्स कहसु नियधम्मं । तुज्झ पयपउममूले, जा पडिवज्जामि पव्वज्जं उज्जुयभावत्तणओ, भणिओ मुणिणा वि जीवदयामूलो। अलियपरदव्वमेहण-परिग्गहच्चायपडिबद्धो पिंडविसुद्धिप्पमुह-प्पहाणगुणनिवहबंधुरो सम्मं । सिवगइपज्जवसाणो, जयगुरुजिणदेसियो धम्मो अह तं सोऊणं सो, सहासमुल्लविउमेवमाऽऽरद्धो। हे समण ! केण एवं, वेलविओ तं सि धुत्तेण पच्चक्खदिस्समाणं पि, जेण मोत्तूण दिव्वविसयसुहं । परमऽप्पाणं च किलेस-कप्पणाए निवाडेसि जीवदयाइविहीए, धम्मो तस्स प्फलं च मोक्खो त्ति । दट्टणं केण सिटुं, कटुंजं एवमाऽऽयरसि ता एहि मए सद्धि, वणलच्छिं पेच्छ मुंच पासंडं। विलससु पासायगओ, समं मयच्छीहि य जहिच्छं इय असमंजसभासिय-हासियनियपरियणेण तेण मुणी । घेत्तूण करे तत्तो, गिहहुत्तं नेउमाऽऽरद्धो एत्थंतरम्मि वणदेवयाए, मुणिहसणजायकोवाए । कटुं व नट्ठचेट्ठो, निवाडिओ सो महीवडे साहू वि मणागं पि हु, अपउस्सन्तो ठिओ सकिच्चम्मि। सुलसो वि तहाऽवत्थो, गेहे नीओ वयस्सेहिं सिट्ठो तव्वुत्तंतो, कया य तप्पसमणऽट्ठया पिउणा । देवयपूयापमुहा, विविहोवाया दुहट्टेण न मणागं पि हु जाओ, तदुवसमो तो मुणिस्स सो पासे । नेऊणं पम्मुक्को, जाओ पउणो मणागं च भणितो य मुणी पिउणा, भयवं! तुह हीलणाफलं एयं । ता कुणसु पसायं अव-हरेसु दोसं सुयस्स ममं एमाऽऽइ जा पयंपइ, पुरोहिओ देवयाए ता वुत्तं । किं रे मिलेच्छसच्छह !, सच्छंदं बहु समुल्लवसि जइ दुट्ठसुओ एसो, मुणिणो दासो व्व वट्टइ सया वि । ता पउणत्तं पाउणइ, इयरहा नऽस्थि जीयं पि तो जहतह जीवंतं, पेहिस्समऽहं ति चिंतयंतेण। पिउणा समप्पिओ सो. मणिस्स तेणाऽवि भणियमिणं अस्संजए गिहत्थे, कुव्वन्ति परिग्गहम्मि नो समणा । पडिवज्जइ जइ दिक्खं, ता ठाउ इमो मह समीवे एवं भणिए मुणिणा, पुरोहिएणं पयंपिओ पुत्तो। वच्छ! न जइ विहु जुत्तं, तुहहुत्तं एवमुल्लविउं तहवि हु परो उवाओ, न विज्जए तुज्झ जीवियव्वम्मि। ता एयस्स समीवे, जइस्स गिण्हाहि पव्वज्जं न य वच्छ! अकल्लाणं, होही तुह धम्ममाऽऽयरंतस्स । मणवंछियसंपाडण-पडुओ धम्मो परं जेण अह निरुवममरणभयु-ब्भवन्तसन्तावदीणवयणेण । सुलसेण अकामेण वि, वयणं जणगस्स पडिवण्णं पव्वाविओ य मुणिणा, कायव्वविही य दंसिओ सव्वो। जाणाविओ य समयऽत्थ-वित्थरं उचियसमयम्मि
॥६५५५॥ ॥ ६५५६॥ ॥६५५७॥ ॥६५५८॥ ॥ ६५५९॥ ॥६५६०॥ ॥६५६१॥ ॥६५६२॥ ॥६५६३॥ ॥६५६४॥ ॥६५६५॥ ॥६५६६॥ ॥६५६७॥ ॥६५६८॥ ॥६५६९॥ ॥६५७०॥ ॥ ६५७१ ॥ ॥६५७२ ॥ ॥६५७३ ॥ ॥६५७४ ॥ ॥६५७५ ॥ ॥६५७६॥ ॥६५७७॥ ॥६५७८॥ ॥६५७९॥ ॥६५८०॥ ॥ ६५८१॥ ॥६५८२॥ ॥६५८३॥ ॥ ६५८४॥ ।। ६५८५॥ ॥६५८६॥ ॥६५८७॥ ॥ ६५८८॥ ॥ ६५८९॥ ॥ ६५९०॥ ॥६५९१ ॥
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