Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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॥६३३९॥ ॥६३४०॥
किं सामिघायगो गुरु-विणासगो हीणचिटिओ अहवा। पेसुण्णकरो न हि न हि, इमाण अण्णो अहम्मयरो पेसण्णगदोसेणं, सुबंधुसचिवो विडंबणं पत्तो। तदऽकरणेणं तदुवरि, चाणक्को पुण गतो सुगति तहाहिपाडलिपुत्ते नयरे, मोरियकुलसंभवो अहेसि निवो। नामेण बिंदुसारो, तस्स सुमंती य चाणक्को जिणधम्मनिरयचित्तो, उप्पत्तियपमुहबुद्धिसंपण्णो । सासणपभावणऽब्भु-ज्जओ य सो गमइ दियहाई पुबुच्छाइयनिवनंद-मंतिणा एगया य तच्छिदं । पावित्ता नरवइणो, सुबंधुनामेण भणियमिणं देव! न जइ वि हु तुब्भे, पसायसवियासचक्खुणा वि ममं । पेच्छह तहा वि तुब्भं, हियमेवऽम्हेहिं वत्तव्वं तुब्भं जणणी चाणक्क-मंतिणा फालिऊण फुडमुयरं । पंचत्तं उवणीया, ता भे एत्तो वि को वेरी एवं सोच्चा कुविएण, राइणा पुच्छिया नियगधावी । तीए वि तहा कहियं, मूलाउ न कारणं सिटुं पत्थावे चाणक्को, समागओ भूवई वि तं दटुं। भालयलरइयभिउडी, झडित्ति विपरंमुहो जाओ अहह ! कहं गयजीओ त्ति, परिभवं मह करेइ एस निवो। परिभाविऊण एवं, चाणक्को नियगिहम्मि गओ दाऊण गेहसारं, पुत्तपोत्ताऽऽइसयणवग्गस्स। निउणमईए विभावइ, मह पयसंपत्तिवंछाए .. केण वि पिसुणेण इमो, मण्णे राया पकोविओ एवं । ता तह करेमि जह सो, दुक्खाऽभिहओ चिरंजियइ ता पवरगंधबंधुर-जुत्तिपओगेण साहिया वासा । खित्ता समुग्गयम्मि, लिहियं भुज्जम्मि तह एयं जो एए वरवासे, जिंघित्ता इंदियाण अणुकूले । विसए निसेवइस्सइ, सो वच्चिस्सइ जमघरम्मि वरवत्थाऽऽभरणविलेवणाई तूलीउ दिव्वमल्लाई । पहाणं सिंगारे वि हु, जो काही सो वि लहु मरिही इय वाससरूवपरूवणापरं भुज्जयं पि वासंतो। पक्खिविऊण समुग्गो, ठविओ मंजूसमज्झम्मि सा वि हु पवरोवरए, जडिउं पउराहि किलियाहिं दढं। पम्मुक्को तालित्ता, तस्स कवाडाइं निबिडाई खामित्ता सयणजणं, जिणिदधम्मे नियोजिऊणं च । रण्णेऽणाउलठाणे, इंगिणीमरणं पवण्णो सो जाणियपरमत्थाए, अह धावीए नराऽहिवो वुत्तो । पिउणो वि हु अब्भहिओ, चाणक्को कीस परिभूओ रण्णा भणियं जणणी-विणासगो एस तीए तो भणियं । जइ तं न विणासंतो, एसो ता तुमऽवि नो हुँतो जम्हा तुह पिउविसभावियऽण्ण-कवलं गहाय भुंजंती। पइ गब्भठिए देवी, विसविहुरा मरणमऽणुपत्ता तम्मरणं च पलोइय, चाणक्केणं महाऽणुभावेणं । उयरं वियारिऊणं, छुरियाए तुमं विणिच्छूढो तह तुह नीहरियस्स वि, विसबिंदू जो सिरम्मि संलग्गो। मसिवण्णो तेण तुमं, निव! वुच्चसि बिंदुसारो त्ति एवं सोच्चा राया, परमं संतावमुवगओ संतो। सव्वविभूईए गतो, सहसा चाणक्कपासम्मि दिट्ठो य सो महप्पा, करीसमज्झट्ठिओ विगयसंगो। सव्वाऽऽयरेण रण्णा, पणमित्ता खामिओ बहुसो भणिओ य एहि नगरं, रज्जं चितेहि तेण तो वुत्तं । पडिवण्णाऽणसणो हं, विमुक्कसंगो य वट्टामि न य नाऊण वि सिटुं, सुबंधुदुव्विलसियं तया रण्णो। चाणक्केणं पेसुण्ण-कडुविवागं मुणंतेण अह भालयलाऽऽरोविय-करेण राया सुबंधुणा भणिओ। अणुजाणह देव ! ममं, जह भत्तिमिमस्स पकरेमि अणुजाणिएण य तओ, सुबंधुणा खुद्दबुद्धिणा य धुवं । दहिऊण तदंऽगारो, करीसमज्झम्मि पक्खित्तो सट्ठाणगए य नराऽ-हिवाऽऽइलोगम्मि सुद्धलेसाए । वढ्तो चाणक्को, तेण करीसऽग्गिणा दड्डो उववण्णो सुरलोए, भासुरबोंदी महिड्डिओ देवो । सो पुण सुबंधुसचिवो, तम्मरणाऽऽणंदिओ संतो अवसरपत्थियपत्थिव-विदिण्णचाणक्कमंदिरम्मि गओ। पेच्छइ गंधोवरयं, घट्टियनिबिडुब्भडकवाडं इह सव्वमऽत्थसारं, लहिहं ति कवाडविहडणं काउं। निच्छूढा मंजूसा, ता जावऽग्घाइया वासा दिटुं च भुज्जलिहियं, तस्सऽत्थो वि य वियाणिओ सम्मं । तो पच्चयत्थमेक्को, वासे अग्घाविओ पुरिसो भुंजाविओ य विसए, गओ य सो तक्खणेण पंचत्तं । एवं विसिट्ठवत्थूसु, सेसेसु वि पच्चओ विहिओ हा! तेण मएण वि मारि-ओ म्हि इइ परमदुक्खसंतत्तो । जीयऽट्ठी स वरागो, सुमुणी इव ठाउमाऽऽरद्धो इयदोसं पेसुण्णं, तप्परिहारं च इयगुणं नाउं। तुममाऽऽराहणचित्तो, चित्ते विहु मा तयं धरसु
॥६३४१॥ ॥ ६३४२॥ ॥ ६३४३॥ ॥ ६३४४॥ ॥ ६३४५॥ ॥ ६३४६॥ ॥ ६३४७॥ ॥६३४८॥ ॥६३४९ ॥ ॥ ६३५०॥ ॥६३५१॥ । ६३५२॥ ॥६३५३॥ ॥६३५४ ॥ ॥ ६३५५ ॥ ॥६३५६ ॥ ॥६३५७ ॥ ॥६३५८॥ ॥६३५९॥ ॥६३६०॥ ॥६३६१॥ ॥६३६२॥ ॥६३६३॥ ॥६३६४॥ ॥ ६३६५॥ ॥६३६६॥ ॥६३६७॥ ॥६३६८॥ ॥ ६३६९॥ ॥६३७० ॥ ॥६३७१॥ ॥६३७२ ।। ॥६३७३॥ ॥६३७४॥ ॥ ६३७५ ॥
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