Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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॥४६१८ ।। ॥ ४६१९ ॥ ॥ ४६२०॥ ॥ ४६२१॥
रोगाऽऽयंकाऽऽईहि य, सगणे परियावणाऽऽइ पत्तेसु । गणिणो भवेज्ज दुक्खं, असमाही वा सिणेहो वा तण्हाऽऽइएसु अइदुस्सहेसु, सगणम्मि निब्भओ संतो। जाएज्ज व सेवेज्ज व, अकप्पियं किंचि वीसत्थो अज्जाओ अणाहाओ वुड्डे य नियंऽकवड्डिए बाले। पासंतस्स सिणेहो, भवेज्ज अच्वंतियविओए खड्डा व खुड़िया वा, अज्जाओ च्चिय करेज्ज कोलुणियं । ता होज्ज झाणविग्घो, असमाही वा गणधरस्स तहाहिभत्ते वा पाणे वा, सुस्सूसाए व सीसवग्गम्मि। कुव्वंतम्मि पमायं, असमाही होज्ज गणवइणो एए दोसा गणिणो, पाएण हवंति सगणवासिस्स । भिक्खुस्स वि अप्पसमा, सरेज्ज तम्हा परगणं सो संतं पि भत्तिमंतं पि, निययं गच्छं पि छड्डिउं एत्थ । पत्तो एस महप्पा, अम्हे मणसीकरेमाणो इइ चिंतिऊण परमाऽऽयरेण, सव्वाए निययसत्तीए । भत्तीए परमाए, वट्टइ से परगणो वि दढं गीयत्थो चरणत्थो, पुच्छेऊणाऽऽगयस्स खमगस्स । सव्वाऽऽयरेण सूरी वि, तस्स निज्जामगो होज्जा संविग्गऽवज्जभीरुस्स, पायमूलम्मि तस्स विहरंतो। जिणवयणसव्वसारस्स, होइ आराहओ नियमा इय सुद्धबुद्धिसंजीवणीए, संवेगरंगसालाए । मरणरणजयपडागो-वलंभनिविग्घहेऊए आराहणाए पडिदार-दसगमइयम्मि बीयदारम्मि । गणसंकमे चउत्थं, भणियं परगणपडिदारं । परगणसंकमणम्मि वि, जहुत्तसुट्ठियगवेसणाऽभावे। न समीहियऽत्थसिद्धी, ता तं संपई परूवेमि अह स महप्पा समय-प्पसिद्धनाएण मुक्कनियगगणो। समरपरिहत्थसंमिलिय-भूरिसेण्णं व निवरहियं दूरयरनयरपत्थिय-सत्थं पिव सत्थवाहपरिचत्तं । चरणाऽऽइगुरुगुणाऽऽगर-गुरुरहियं परगणं मुणिउं जोयणसयाणि छ-स्सत्त, वा वि वरिसाण जाव बारसगं । निज्जामगमाऽऽयरियं, समाहिकामो गवेसेज्जा सो पुण चरणपहाणो, सरणाऽऽगयवच्छलो थिरो सोमो । गंभीरो कयकरणो, पसिद्धिपत्तो महासत्तो आयारव माऽऽहारवं, ववहारो वीलए पकुव्वी य। निज्जव अवायदंसी, अपरिस्सावी य बोधव्वो आयारं पंचविहं, चरइ चरावेइ जो निरऽइयारं । उवदंसइ य जहुत्तं, एसो आयारवं नाम दसविहठियकप्पम्मि, आचेलक्काऽऽइए य जो निरओ। आयारवं स भण्णइ, पवयणमायासु उवउत्तो आयारत्थो दोसे, पेयहिय खमगं गुणेसु ठावेइ। आयारत्थो तम्हा, निज्जवगो होइ आयरिये चोद्दसदसनवपुव्वी, महामई सायरो व्व गंभीरो । कप्पववहारधारो, भण्णइ आहारवं नाम नासेज्ज अगीयत्थो, चउरंगं तस्स लोयसारंगं । नट्ठम्मि य चउरंगे, न य सुलहं होइ चउरंगं संसारसायरम्मि, अणंतभवतिक्खदुक्खसलिलम्मि। कह कहवि संसरंतो, लहेइ जीवो मणुस्सत्तं तम्मि हि दुल्लहलंभा, जिणवयणसुई य तीए पुण सद्धा । लद्धाए वि सद्धाए सुदुल्लहो संजमो होइ लद्धे य संजमे सो, संवेगकरि सुइं अपावेतो। परिवडइ मरणकाले, अकयाऽऽहारस्स पासम्मि
॥ ४६२२॥ ॥ ४६२३॥ ॥ ४६२४॥ ॥ ४६२५ ॥ ॥ ४६२६॥ ॥ ४६२७॥ ॥ ४६२८॥ ॥४६२९ ॥ ॥ ४६३०॥ ॥ ४६३१॥ ॥ ४६३२॥ ॥ ४६३३॥ ॥ ४६३४॥ ॥ ४६३५ ॥ ॥ ४६३६॥ ॥ ४६३७॥ ॥ ४६३८॥ ॥ ४६३९ ॥ ॥ ४६४०॥ ॥ ४६४१॥ ॥ ४६४२॥ ॥ ४६४३॥
किंच
॥ ४६४४॥ ॥ ४६४५ ॥ ॥ ४६४६॥ ॥ ४६४७॥ ॥ ४६४८॥
आहारमओ जीवो, कहिं वि आहारविरहिओ संतो। अट्टवसट्टो न रमइ, पसत्थतवसंजमाऽऽरामे जिणवयणाऽमयसुइपाणएण, सरसाऽणुसट्ठिवयणेणं । तण्हाछुहाकिलंतो वि, होज्ज झाणम्मि आउत्तो पढमेण व दोच्चेण व, बाहिज्जंतस्स तस्स खवगस्स । न कुणइ उवएसाऽऽई, समाहिकरणं अगीयत्थो तेण पढमाऽऽइणा पुण, बाहिज्जंतो स कहवि कम्मवसा । कलुणं कालुणियं वा, जायणकिवणत्तणं कुज्जा उक्कूवेज्ज व सहसा, निग्गच्छेज्ज व करेज्ज उडाहं । गच्छेज्ज व मिच्छत्तं, मरेज्ज असमाहिमरणेण एवं चइच्छासंपाडणओ, सरीरपरिकम्मकरणओ तह य । अण्णेहिं व उवाएहि, दव्वक्खेत्ताऽऽइअणुरूवं परिजाणइ गीयत्थो, सुयविहिणा कारणं समाहीए। पण्णवणं च तदुचियं, दिप्पइ जह से सुझाणऽग्गी मुणइ य फासुयदव्वं, उवकप्पेउं तहा उदिण्णाणं । जाणइ पडियारं वाय-पित्तसिंभाण गीयत्थो १. कोलुणियं = कारुण्यम्, २. अप्पसमा = अप्रशमाः, ३. पयहिय - प्रहाय
॥ ४६४९ ॥ ॥ ४६५०॥ ॥ ४६५१ ॥
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