Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 151
________________ दव्वाऽऽइया य चउरो, एकेक्क दुहा पसत्थमऽपसत्था। अपसत्थे वज्जेउं, पसत्थएसंत आलोए ॥५०२४ ॥ अमणुण्णधण्णरासी, अमणुण्णदुमा य होंति दव्वम्मि। खेत्तम्मि भग्गझामिय-घरऊसरपमुहठाणाई । ५०२५॥ काले दड्ढतिही तह, अमावसा अट्ठमी य नवमी य । छट्ठी य चउत्थी बारसी य दोण्हं पि पक्खाणं ॥५०२६॥ तह संझागयरविगय-पमोक्खनक्खत्तअसुहजोगा य । भावे य रागदोसा, पमायमोहाऽऽदओ अहवा ॥५०२७॥ एएसं नाऽऽलोए, आलोएज्जासु तब्विवक्खेसु । दव्वे सुवण्णमाऽऽईसु, खीरदुमाऽऽईसु वाऽऽलोए ॥५०२८॥ उच्छुवणे सालिवणे, चेइहरे चेव होइ खेत्तम्मि। गंभीरसाऽणुनाए, पयाहिणाऽऽवत्तमुदए य ॥५०२९ ॥ पुव्वुत्तसेसतिहिरिक्ख-करणजोगाऽऽइए सुकालम्मि। भावे मणाऽऽइपसमे, उच्चाऽऽइठिएसु य गहेसु ॥ ५०३०॥ सोमग्गहलग्गेसु व, पुण्णेसु पसत्थभावजणगेसु । सुहदव्वाऽऽइसमुदओ, जोगो पुण एत्थ विण्णेओ ।। ५०३१॥ सुदिसाओ पुण पुव्वुत्तराउ, अहवा चरंति जिणमाऽऽई। जा नवपुव्वी जीए, जीए जिणचेइयाइं वा ॥५०३२॥ तत्थजइ पुव्वमुहाऽऽयरिओ, तो इयरो ठाइ उत्तराऽभिमुहो । अह उत्तरआयरिओ, तो इयरो ठाइ पुव्वमुहो ..... ॥५०३३॥ पाईणोदीणमुहो, चेइयहुत्तो व्व सुहनिसण्णो य । आलोयणं पडिच्छइ, परोवयारेक्करसियमणो ॥५०३४॥ भत्तिबहुमाणपुव्वग मुचियं दाऊणमाऽऽसणं गुरुणो । काऊण य किइकम्मं, कयंञ्जली अभिमुहो य ठिओ ॥५०३५ ॥ संविग्गभवुव्विग्गो, विसयविरत्तो य सो महासत्तो । उक्कोसेणुक्कुडुओ, जइ पुण अरिसाऽऽइरोगत्तो ॥५०३६ ॥ बहुपडिसेवी य भवे, अणुण्णवेउं तओ निसेज्जगओ। भत्तिविणउत्तमंगो, वियडेज्जा अवितहं सव्वं ॥५०३७॥ जह बालो जंपतो, कज्जमकज्जं च उज्जुओ भणइ । तं तह आलोएज्जा, मायामयविप्पमुक्को य ॥५०३८॥ दुविहेणऽणुलोमेणं, आसेवणवियडणाऽभिहाणेणं । आसेवणाऽणुलोमं, जं जह आसेविअं वियडे ॥५०३९ ॥ आलोयणाऽणुलोमं, गुरुगऽवराहे उ पच्छओ वियडे। पणगाऽऽइणा कमेणं, जह जह पच्छित्तवुड्ढीओ ॥५०४०॥ तह आउट्टियदप्प-प्पमायओ कप्पओ य जयणाए । कज्जे वा जयणाए, जहट्ठियं सव्वमाऽऽलोए ॥५०४१॥ चउसवणा साहूणं, छस्सवणा साहुणीण नायव्वा । सा पुण गुरुम्मि वुड्डे, वुड्डाए अप्पबीयाए ॥ ५०४२॥ होइ तह अट्ठसवणा, तरुणम्मि गुरुम्मि अप्पबीयस्स । अप्पबीयाए देया, तरुणीए थेरिसहियाए ॥ ५०४३ ॥ जह दायव्वा तह वण्णिया उ, आलोयणा समासेणं । एत्तो उ अणेगविहं, आलोएयव्वयं वोच्छं ॥५०४४ ॥ तं पुण नाणसण-चरणतवोविरियभेयभिण्णस्स । पंचविहाऽऽयारस्स उ, वितहपवित्तीए नायव्वं ॥५०४५॥ तत्थ समत्थपयत्थ-प्पयासणे सरयसूरसरिसस्स । अइसयनिहिणो नाणस्स, भयवओ भुवणमहियस्स ॥५०४६॥ जो को वि हु अइयारो, कालाऽऽइसु वितहसेवणाजणिओ। सो कुसलसल्लभूओ, आलोएयव्वओ सम्म ॥५०४७॥ सण्णाणलच्छिविच्छड-धारगाणं च पुरिससीहाणं । तह नाणाऽऽधाराणं, पोत्थयपडपट्टियाऽऽईणं ॥ ५०४८॥ चरणाऽऽइघट्टणेणं, हीलाकरणेण अविणएणं वा । जो अइयारो विहिओ आलोएयव्वओ सो वि ॥ ५०४९॥ एवं खुदंसणम्मि वि, संकाऽऽईणं कहं पि करणेण । उववूहणाऽऽइयाण य, पमायदोसा अकरणेण ॥ ५०५०॥ तह पवयणप्पभावग-पुरिसविसेसाण जणपसिद्धाणं । पावयणियपमुहाणं, उचियपवित्तीअकरणेण ॥५०५१॥ सम्मत्तनिमित्ताणं, तहेव जिणभवणबिम्बमाऽऽईणं। जिणसिद्धसूरिवायग-समणाण तवस्सिणीणं च ॥५०५२॥ सावयसुसाविगाण य, अच्चाऽऽसायणअवण्णमाऽऽईहिं । जो विहिओ अइयारो, सो वि हुआलोयणाविसयो ॥५०५३ ॥ चरणम्मि वि मूलुत्तर-गुणरूवे समिइगुत्तिरूवे य । जो अइयारो सो वि हु, आलोएयव्वओ तत्थ ॥५०५४॥ छज्जीवनिकायाणं, घट्टणपरितावणाए उद्दवणे। पाणाऽइवायविरमण-विसयो संभवइ अइयारो ॥५०५५॥ एवं बीयवयम्मि वि, कोहेणं माणमायलोभेहिं । हासेण भएणं वा, तहाविहाऽसच्चवयणम्मि ॥ ५०५६॥ पहुणा जमऽदिण्णाणं, सच्चित्ताऽचित्तमीसदव्वाणं । हरणं तं तइयव्वय-गोयरमऽइयारमऽवगच्छ ॥५०५७॥ सुरतिरियनरित्थीणं, पत्थणअहिलसणसेवणाऽऽईहिं । तुरियवए अइयारं, आलोएयव्वयं जाण ॥५०५८॥ देसकुलगिहत्थेसुं, अइरित्तुवहिम्मि जो अईयारो । चरिमवए अइयारो, सो वि हु आलोयणाजोग्गो ॥५०५९॥ दियगहियाऽऽइचउहा, निसिभत्तवयम्मि जो अईयारो। सुगुरुसमीवे सो वि हु, सम्मं आलोयणाअरिहो ॥५०६०॥ ૧૪૪

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