Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 178
________________ विजणे ठाउं अतरंतियाए, आयड्डिओ पुणो लोगो । पडिसिद्धा य गुरूहिं, ता जाव चउत्थवेलाए मायासीलत्तेणं, तीए भणियं न किंपि भंते! हं । विज्जाबलं पजुंजेमि, किंतु सयमेइ एस जणो एवं सा मायावस-विहुणियआराहणाफला मरिउं । सोहम्मे एरावण- सुररमणीभावमऽणुपत्ता इय दोसे दिट्ठतो, निद्दिट्ठो ताव पंडरज्जाए। दोसगुणेसु य पुव्वो- वइट्ठवणिए निदंसेमि अवरविदेहे दो वणियवयंसा माइउज्जुगत्तेण । ववहरिडं चिरकालं, दो वि मया भरहवासम्मि उज्जुगभावो मिहुणत्तणेण, अवरो य हत्थिभावेण । उप्पण्णा कालेणं, परोप्परं दंसणं जायं मायावसविढवियआभि- योगकम्मोदएण अह करिणा । खंधम्मि विलइयं तं, मिहुणगमऽव्वत्तपीईए इमाइणो अणत्थं तव्विवरीयस्स पेच्छिउं च गुणं । खमग! तुमं निम्माओ, सम्मं आराहणं लहसु पावट्ठाणगमऽट्ठम-मेवं लेसेण संसियं एत्तो । लोभसरूवाऽऽवेयण- परमं नवमं पि कित्ते म जायइ जाओ वड्डइ, जह पाउसजलहरो अहुंतो वि । तह पुरिसस्स वि लोभो, जायइ पसरइ य पइसमयं लोभे य पसरमाणे, कज्जाऽकज्जं अचिन्तयन्तो य । मरणं पि हु अगणेंतो, कुणइ महासाहसं पुरिसो अडइ गिरिरिसमुद्दे, पविसइ दारुणरणंऽगणम्मि तहा। पियबंधवे नियं जीवियं पि लोभा परिच्चयइ किंच अच्चतमुत्तरोत्तर - समीहियऽत्थाऽऽगमे वि लोभवओ । तण्ह च्चिय परिवड्डइ, सुमिणे वि न जायए तित्ती लोभो अक्खयवाही, सयंभूरमणोदहि व्व दुप्पूरो । लाभिधणेण जलगो व्व, वुड्डिमऽच्चतमऽणुसरइ लोभो सव्वविणासी, लोभो परिवारचित्तभेयकरो । सव्वाऽऽवइकु गईणं, लोभो संचारराय हो एयद्दारेण नरो, घोरं पावं पवंचिउं सुचिरं । अविहियतप्पडियारो, परियड भवकडिल्लम्म जो पुण लोभविवागं, नाऊण विवेगओ महासत्तो । तव्विवरीयं चिट्ठइ, उभयभवसुहाऽऽवहो स भवे एत्थ य पावट्ठाणे, दिट्ठतो होइ माहणो कविलो । जो चडिओ कोडीए, कणगस्स दुमासगऽत्थी वि विक्खे विखविय-सयलपरिथूलसुहुमलोभंऽसो । सो च्चिय दिट्टंतपयं, संपावियकेवलाऽऽलोगो तहाहि कोसंबीनयरीए, जसोयनामाए माहणीए सुओ । कविलो नामेणाऽऽसी, लहुयस्स वि तस्स किर जणगो पंचत्तं संपत्तो, पियसमवयसं विभूतिसंपण्णं । माहणमऽवरं दट्टु, से जणणी संभरियनाहा विमाSSत्ता पुच्छिया य कविलेण रुयसि किं अम्मो ! । तीए पयंपियं पुत्त !, पउरमिह रोवियव्वं मे तेण भणियं किमत्थं ?, तीए वुत्तं तुमम्मि जायम्मि । वच्छ ! विभूई निहणं, गया तहा जह य एस दिओ तह तुझ पिया वि पुरा, विभूइमं आसि तेण वज्जरियं । केण गुणेणं तीए, पयंपियं वेयकुसलत्ता साऽमरिसेणं कविलेण, भासियं तं अहं पि सिक्खामि । तीए भणियं एवं, करेसु गंतूण सावथिं पिइमित्तइंददत्ताऽ-भिहाणअज्झावगस्स पासम्मि । इह अत्थि वच्छ ! सम्मं, न तुज्झ सिक्खावगो को वि एवं ति सो पवज्जिय, सावत्थिपुरीए इंददत्तस्स । पासम्मि गओ पुट्ठो य, तेण कहिए य वृत्तंते पियमित्तसुओ त्तिवियाणिऊण, अज्झावगेण अवगूढो । भणिओ य वच्छ ! गिण्हसु, संऽगोवंगं पि चडवेयं किंतु समिद्धं धणसेट्ठि मेत्थ भोयणकएण पत्थेसु । अब्भत्थिओ य कविलेण, साऽऽयरं तेण वि य भणिया एगा नियगा चेडी, भुंजावेज्जासि पाढगमिमं ति । एवं भोयणसुत्थो, वेए सो पढिउमाऽऽढत्तो नवरं साऽऽयरपइदिण-भोयणदाणेण संथवेणं च । चेडीए उवरि जाओ, अच्वंतं तस्स पडिबंधो ॥ ६०१४ ॥ ॥ ६०१५ ॥ ॥ ६०१६ ॥ ॥ ६०१७ ॥ ૧૧ ॥ ६०१८ ॥ ॥ ६०१९ ॥ ॥ ६०२० ॥ ।। ६०२१ ।। ॥ ६०२२ ।। ॥ ६०२३ ॥ ।। ६०२४ ॥ ।। ६०२५ ।। ॥ ६०२६ ॥ ।। ६०२७ ।। ।। ६०२८ ।। ।। ६०२९ ॥ ।। ६०३० ॥ ॥ ६०३१ ॥ ।। ६०३२ ॥ ।। ६०३३ ॥ ॥। ६०३४ ॥ ।। ६०३५ ।। ।। ६०३६ ॥ ॥ ६०४७ ॥ ।। ६०३८ ॥ ।। ६०३९ ॥ ॥ ६०४० ॥ ॥ ६०४१ ॥ ॥ ६०४२ ॥ ।। ६०४३ ॥ ॥ ६०४४ ॥ ॥। ६०४५ ॥ अह तीए सो भणिओ, छणो त्ति कयविविहचारुसिंगारा। नियनियकामुयवियरिय-विसिट्ठवत्थाऽऽइरमणिज्जा पुरवेसाओ नीहिंति, कल्लदियहम्मि अच्चिरं मयणं । तासि च अहं मज्झे, जंती बीभच्छनेवत्था सहियाहिं हसिज्जिस्सं, ता पिययम ! तं सि पत्थणिज्जो मे । तह कुणसु कह वि जह नो- वहासपर्याव पवज्जामि एवं सोउं कविलो, कयत्थिओ अद्धिईए पारद्धो । नट्ठा निसिम्मि निद्दा, पुणो वि चेडीए सो भणिओ पिय! परिहर संतावं, वच्चसु तं राइणो समीवम्मि । सो किर पइदियहं चिय, पढमपबुद्धो पढमदिट्ठ ॥ ६०४६ ॥ ॥ ६०४७ ॥ ।। ६०४८ ।। ॥ ६०४९ ॥

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