Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 143
________________ आराहणाए पडिदार-दसगमइयम्मि बीयदारम्मि । गणसंकमणे भणियं, छटुं उवसंपयादारं उवसंपण्णो वि मुणी, अण्णोण्णपरिच्छणाए विरहम्मि। न लभइ समाहिमऽणहं, परिच्छदारं अओ भणिमो अह जो अणसणकामो, साहू सूरी व पुव्वनिद्दिट्ठो । तग्गणनाहो मुणिणो य, निहुयबुद्धीए पढमं पि तेणं परिक्खियव्वा, किमिमे भावियमणा व इयरे वा । तग्गणगयसाहूहि वि, परिक्खियव्वो इमो बहुहा तप्पहुणा वि न केवल-मऽणसणकामी परिक्खियव्वो हु। किंतु नियगा वि मुणिणो, तदऽत्थनिव्वाहिणो वन वा आगंतुगेण तत्थ उ, विभावणिज्जो गणाऽहिवो ताव । जइ हरिसवियसियऽच्छो, सागयमिच्चाइ जंपतो अब्भुटेज्ज सयं चिय, इंतं दट्ठण अहव नियमुणिणो। पेसेज्जुचियं काउं, ता सो पत्थुयविहिविहाया कसिणमुहच्छाओ सुण्ण-चक्खुक्खेवो य विस्सरगिरो य। एवंविहो य नेओ, इयरो पत्थुयपवित्तीए मुणिणो वि हु भणियव्वा, भिक्खाकाले अहो ! मह निमित्तं । कलमोयणं सखीरं, तुब्भेहिं आणियव्वं ति जइ ते एवं वुत्ता, हसंति अण्णोण्णमऽहवमुल्ठं। जंपंति ता अभाविय-मइणो त्ति विभावणिज्जा ते अह ते सहरिसमेवं, वयंति तुमए अणुग्गिहीयम्ह । एवं चिय काहामो, सइ लाभे सव्वजत्तेण आगंतुगेण एवं, वत्थव्वपरिक्खणा उ कायव्वा । आगंतुगं पि वत्थव्व-साहुणो इय परिक्खन्ति कलमोयणाऽऽइउत्तम-आहारमऽमग्गिया वि उवणिति । आगंतुगस्स जइ सो, सविम्हयं एवमुल्लवइ अहह चिरधरणिभमणे वि, एरिसा पवरगंधबंधुरया। सरसत्तणं पि नेवो-यणस्स दिटुं कहिं पि मए न य वंजणसामग्गी वि, दीसइ अण्णत्थ एरिससरूवा । भुंजिस्सामि पकामं पि, ता अहं भोयणमिमं ति ता सो णिसेहियव्वो, न उत्तिमऽटुप्पसाहणायाऽलं । अजिइंदिओ त्ति पुणरवि, जहाऽऽगयं पेसियव्वो य जो पुण तारिसमऽसणं, दटुं जंपेज्ज उत्तिमट्ठऽत्थी । हंहो महाऽणुभावा!, किमऽणेण ममोवणीएण एवंविहस्स पवराऽसणस्स, को भुंजिउं ममं कालो। तो णं पडिच्छियव्वो, स महासत्तो समुचिओ त्ति एवं कओवयारा, परोप्परं ठाणगमणसज्झाए । आवस्सयभिक्खग्गह-वियारमाऽऽइसु परिक्खंति अह जइया सो अब्भु-च्छहेज्ज आराहणं पकाउंजे । वत्थव्वसूरिणा वि हु, परिक्खयव्वो तया एवं सुंदर! तुमए अप्पा, संलिहिओ? जइ वएज्ज सो एवं । किं चम्मऽट्टियमेत्तं, भयवं! नो पेच्छसि ममंऽगं असुणंतो व्व पुणो वि हु, ता पुच्छेज्जा पुणो वि स सरोसं। अइनिउणो सि न सिटे वि, नेव दिटे वि पत्तियसि इइ जंपतो जइ नियग-मंगुलि भंजिऊण दंसेज्जा । पेच्छसु निउणं भयवं!, जह एत्थ सुथेवमेत्तं पि मंसं व सोणियं वा, मजं वा अत्थेि एवमऽवि भंते!। कि संलिहामि? तो णं, स सूरिणा एव भणियव्वो "न हु ते दव्वसंलेहं, पुच्छे पासामि ते किसं । कीस ते अंगुली भग्गा, भावं संलिह मा तुर" "इंदियाणि कसाए य, गारवे य किसे कुरु । ण चेयं ते पसंसामि, किसं साहू ! सरीरगं" सिलोयजुयलं चेयं, वुत्तं वत्थव्वसूरिणा। आराहणानिमित्तेणं, आगयप्पडिबोहणे एवं परोप्परं सइ, सुकयपरिक्खाण उभयपक्खाण । भत्तपरिण्णाकाले, थेवं पि ण होज्ज अरामाही अइरभसकयाणं पुण, पाएण पओयणाण पज्जते । धम्मऽत्थसंगयाण वि, न विवागो निव्वुइं जणइ इय धम्मतावसाऽऽसम-समाए संवेगरंगसालाए। मरणरणजयपडागो-वलंभनिव्विग्घहेऊए आराहणाए पडिदार-दसगमइयम्मि बीयदारम्मि । गणसंकमे परिच्छ त्ति, सत्तमं दारमुवइटुं विहिओभयपक्खपरिक्खणे वि, नाऽऽराहणऽस्थिणो कज्जं । जीए विणा निविग्धं, संपज्जइ भाविकालम्मि तं पडिलेहं एत्तो, कित्तेमि सा पुणो भवइ एवं । किर निज्जामगसूरी, सुगुरुपरंपरयपत्तेण खवगस्सुवसंपण्णस्स, तस्स आराहणाए वक्खेवं । दिव्वेण निमित्तेणं, पडिलेहइ अप्पमत्तमणो रज्जं खेत्तं अहिवइ-गणमऽप्पाणं च पडिलिहित्ताणं । तमऽविग्घम्मि पडिच्छइ, अप्पडिलेहाए बहुदोसा परओ वा तं नाउं, पारगमिच्छंति इहरहा नेव। सिवखेमसुभिक्खेसुं, निव्वाघाएण पडिवत्ती इहरा रायाऽऽईणं, सरूवपडिलेहणाए विरहम्मि । आराहणाए विग्घो वि, होज्ज हरिदत्तमुणिणो व्व तहाहि ॥ ४७२६॥ ॥ ४७२७॥ ॥ ४७२८॥ ॥ ४७२९॥ ॥ ४७३०॥ ॥ ४७३१ ॥ ॥ ४७३२॥ ॥ ४७३३॥ ॥४७३४॥ ॥ ४७३५॥ ॥ ४७३६॥ ॥ ४७३७॥ ॥ ४७३८॥ ॥ ४७३९॥ ॥ ४७४०॥ ॥ ४७४१॥ ॥ ४७४२॥ ॥ ४७४३॥ ॥ ४७४४॥ ॥ ४७५६॥ ॥ ४७४६॥ ॥४७४७ ॥ ॥ ४७४८॥ ॥ ४७४९ ॥ ॥ ४७५०॥ ॥ ४७५१ ॥ ॥ ४७५२॥ ॥४७५३॥ ॥ ४७५४॥ ॥ ४७५५॥ ॥ ४७५६॥ ॥ ४७५७॥ ॥ ४७५८॥ ॥ ४७५९॥ ॥४७६०॥ ॥ ४७६१॥ ॥ ४७६२॥ ૧૩૬

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