Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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तहाहिरणसवडम्मुहपडिभड-भिडणुब्भडरायचक्कमऽक्कमिउं। छक्खंडखोणिमंडल-साहणअप्पडिहयपयावं चउसट्ठिसहस्ससुरूव-पवररामाऽभिराममऽच्चत्थं । पउरकरितुरयपाइक्क-संकुलं नवनिहिसणाहं ईसि सवियासलोयण-पलोयणाओ नमंतसामंतं । निययपओयणनिरवेक्ख-जक्खकीरंतसांणिज्झं जं चक्कवट्टिज्जं, भरहो भरहम्मि पाविओ पुव्विं । तं पुव्वजम्मजइजण-वेयावच्चस्स फलमाऽऽहु जं सो वि महप्पा पबल-भुयबलुव्बूढधरणिभारो वि। पउररणंऽगणपविढत्त-सरयससिनिम्मलजसो वि पडिवक्खसिरविदारण-निक्किवविकंतचक्कपाणी वि। मण्णे किमेस चक्कि त्ति, रोविओ संसयतुलाए दिट्ठीजुद्धाऽऽईहिं, निज्जिणिओ तियसलोयपच्चक्खं । लीलाए बाहुबलिणा, पयंडभूयदंडबलनिहिणा तं पि सुसाहुजणोचिय-वेयावच्चस्स विलसियमऽसेसं। पवरोत्तरोत्तरफलु-प्पायणकप्पडुम बेंति जं च नियरूवचंगिम-निज्जियजयपयडदप्पकंदप्पा । अहमहमिगाए मिगलो-यणाहिं विज्जाहरसुयाहिं उत्तुंगथणत्थलसालिणीहि, नवजोव्वणाऽभिरामाहि। छणरयणीससहरवयणि-याहिं मयणाऽऽउरंऽगीहिं ... जह तह परिभमिरो वि हु, दसारकुलकुमुयकोमुइमयंको। वसुदेवो तह तइया, उव्वूढो गाढपणयाहिं तं पि सुतवस्सिसिक्खग-बालगिलाणाऽऽइगोयरस्स फलं । निज्जियचिंतामणिणो, वेयावच्चस्स नीसेसं इय भो महाऽणुभावा!, वेयावच्चं अचिंतमाहप्पं । जो न करेइ समत्थो, संतो तं जाण सुहविमुहं तित्थयराऽऽणाकोवो, सुयधम्मविराहणा अणाऽऽयारो । अप्पा परो पवयणं, तेणं दूरुज्झिया होंति किं च अहंतगुणकए, हुंतगुणाणं तु वुड्डिकरणाय । सुयणेहिं चेव सद्धि, सया वि संगं करेज्जाह हुंतगुणनासणभया, अहंतगुणदूरतरगमभएणं । दोसऽल्लियणभएण य, दुज्जणसंग विवज्जेह भाविज्जइ जइ दव्वेण, नवघडो सुरहिणेयरेणं वा । ता गुणदोसेहिं नरो, भाविज्जइ किं न परसंगा दुज्जणसंसग्गीए, पायं सुयणो वि नियगुणं चयइ । संसग्गीए अग्गिस्स, जह जलं सीयलत्तगुणं दुज्जणसंसग्गीए, संकिज्जइ सज्जणो वि दोसेहिं । चंडालगिहे दुद्धं, पिबंतओ बंभणो व्व जणे वेरग्गवं पि दुज्जण-जणसंसग्गीए भाविओ पायं । न रमइ सज्जणमझे, रमइ य दुज्जणजणस्संऽतो कुसुममऽगंधं पि जहा, देवयसेस त्ति कीरए सीसे। तह सुयणमज्झवासी, पूइज्जइ दुज्जणो वि जणो अण्णं पि तहा वत्थु, जं जं चरणगुणनासणं कुणइ । तं तं परिहरह तओ, होहिह दढसंजमा तुब्भे निच्चं पासत्थाऽऽईहिं, संथवं पिय पयत्तओ चयह। पुरिसो संसग्गिवसेण, तम्मओ होइ अचिरेण तहाहिसंविग्गस्स वि तस्संगईए. पीई ततो वि वीसंभो। सइ वीसंभे यरई, होइ रईए य तम्मयया तत्तो लज्जाविगमो, पवत्तणं निव्विसंकमऽसुहऽत्थे। पियधम्मो वि हु एवं, परिभस्सइ संजमाओ लहु संविग्गाण उ मज्झे, अप्पियधम्मो वि कायरो वि नरो । उज्जमइ चरणकरणे, भावण-भय-माण-लज्जाहिं संविग्गो पुण तस्संगमेण, सविसेसगुणजुओ नियमा। जायइ जह कप्पूरो, सुरभितरो मिगमए मिलितो पासत्थसयसहस्साओ, हंदि एक्को वि वरमिह सुसीलो। जं संसियाण दंसण-नाणचरित्ताणि वड्डंति वरमिह कुसीलकयपूयणाओ, संजयकओऽवमाणो वि। पढमाउ सीलविगमो, संपज्जइ न उण इयराओ कुसलेहिं पसमियं पि हु, कुसीलसंसग्गिमेहवद्दलए। वंतरविसं व कुप्पइ, पुणो वि मुणिणो पमायविसं तम्हा पियदढधम्मेहि, वज्जभीरुहिं कुणह संसग्गिं । उज्जमइ मंदधम्मो वि, तप्पभावा जओ भणियं "नवधम्मस्स पाएणं, धम्मे न रमइ मई। वहए सो वि संजुत्तो, गोरिवाऽविधुरं धुरं" संवासं सीलगुणड्डएहिं, जो संकहं वियड्डेहिं । पीइं अलुद्धबुद्धीहि, कुणइ सो कुणइ अप्पहियं आसयवसेण एवं, पुरिसा दोसं गुणं च पावेंति । तम्हा पसत्थगुणमेव, आसयं अल्लिएज्जाह कण्णकडुयं पि पत्थं, परोप्परं वागरेज्ज अढुट्ठा । कडुओसहं व होही, परिणामे सुंदरं तं खु सगणे व परगणे वा, परपरिवायं च मा करेज्जाह। अच्चाऽऽसायणविरया, होह सया पावभीरू य
॥ ४५१०॥ ॥ ४५११॥ ॥ ४५१२॥ ॥ ४५१३ ॥ ॥ ४५१४॥ ॥ ४५१५॥ ॥ ४५१६॥ ॥ ४५१७॥ ॥ ४४१८॥ ॥ ४५१९ ॥ ॥ ४५२०॥ ॥ ४५२१ ॥ ॥ ४५२२॥ ॥ ४५२३॥ ॥ ४५२४॥ ॥ ४५२५॥ ॥ ४५२६॥ ॥ ४५२७॥ ॥ ४५२८॥ ॥ ४५२९॥ ॥४५३०॥ ॥ ४५३१॥ ॥ ४५३२॥
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