Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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उत्तरईसाणपसत्थ-दिसिमुहं अह कमेण गंतूण। चंडालवेससिप्पिय-चच्चरतियवलणदेसेसु पक्खिविय अक्खए गंध-बंधुरे तो उवस्सुइसई । अवधारेज्जा सम्मं, सो सद्दो उण दुहा नेओ एगो य पयत्यंतर-ववएसा तस्सरूवगो इयरो। पढमो चिंतागम्मो, फुडकहियऽत्थो च्चिय परो उ जह एस गिहत्थंभो, एवइयदिणेहिं अहव पक्खेहिं । मासेण वच्छरेण व, भज्जिस्सइ नेव वा नूणं आसि असुंदरो वा, किंतु लहुँ एस भज्जए लग्गो। चिरठाई वा दीवो, अहवा लहुं नंदए लग्गो पीढीदीवसिहाकट्ठ-पत्तिपभिईउ जाण थीविसए। इच्चाइपयत्यंतर-ववएसा उवसुईसद्दो एस पुमं इत्थी वा, न जाइहि च्चिय इमाउ ठाणातो । न वयं गंतुं देमो, एसो वि न चेव गमणमणो दोण्हं तिण्ह चउण्ह व, दिणाण मज्झम्मि अहव उवरिं वा। एवइयसंखदिणपक्ख-मासवरिसुवरि अंतो वा जइ अज्ज वि एस गमं, काही अहवा महायरेणाऽवि । बहुसो वि धरिज्जंतो, गमिही लहु एस न हु ठाही अजं चिय रयणीए, कल्लं वा परतरम्मि वा दिवसे । गमणूसुगो धुवमिमो, वयं पि लहु पेसणमण त्ति तेण लहुं गमिहि च्चिय, इच्चाई तस्सरूवगो नाम । बीओ उवस्सुईए, सद्दो एवं दुगं सोच्चा . निज्जामगो मुणिवरो, अहवा तप्पेसिओ परो को वि। पत्थुयगिलाणमाऽऽसज्ज, उचियकिच्चं करेज्जऽहवा कण्णुग्घाडणसमणंतरं खु, जं किंपि सुणइ तत्तो वि। आसण्णाऽणासण्णं, कलिंति कालं कलाकुसला भणियमुवस्सुइदारं, दारं छायाए संपयं तत्थ । छायं बहुभेयं पि हु, वोच्छं सामण्णओ चेव आउपरिणाणकए, सम्मं निकंपमणवईकाओ। पइदिवसं पिकिर नरो, निरूवएज्जा नियं छायं सम्मं वियाणइत्ता, सरूवओ अप्पणो तणुच्छायं । सत्थनिदंसियविहिणा, सुहाऽसुहं तो वियाणेज्जा आयवदप्पणसलिलाऽऽइएसु, अंगाउ जा पडिप्फलइ । संठाणमाणवण्णा-इएहिं सा खलु पडिच्छाया सा होज्ज जस्स सहसा, छिण्णा भिण्णा तहाऽऽउला सहसा । अहवूणा अहिया वा, संठाणपमाणवण्णेहिं रज्जुसमाणाऽऽगारा व, जस्स कंठप्पइट्ठिया छाया । लक्खिज्जइ अक्खिज्जइ, खिप्पं कंखइ खयमिमो त्ति जलतीरठिओ पट्टीए, कयरवी पेच्छिरो नियच्छायं । भिण्णठियउत्तिमंगं, जमगेहे गच्छइ हत्थं असिरं व बहुसिरं वा, किं बहुणा पयइविसरिससरूवं । नियछायं जो पेच्छइ, हत्थं गच्छइ स जमगेहं छाया जस्स न दीसइ, वियाण तज्जीवियं दस दिणाणि । छायादुगं च दीसइ, जइ ता दो चेव दिवसाणि अहवाअंतोमुत्तमेत्ते, दिवसे उदयाउ सम्ममुवउत्तो। अच्चंतसुईभूओ, पट्टीए ठवेत्तु रविबिंबं अहिगयसुहाऽसुहकए, नेमित्ती निप्पकंपमऽप्पाणं । धारेंतो थिरचित्तो, छायापुरिसं निरूवेज्जा तत्थ जइ ता तमऽक्खय-सव्वंगं पासए तया कुसलं । तप्पायाणं पुण जइ, अदंसणं ता विदेसगमो ऊरूण जुगे रोगं, गुज्झे उ विणस्सए पिया नूणं । उयरे अत्थविणासो, हियए मच्चू अदीसंते दक्खिणवामभुअअदंसणे उ, जाणाहि भायसुयनासो। सीसे उ अदीसंते, छम्मासाओ भवे मरणं सव्वंगमऽदीसंतम्मि, तम्मि जाणाहि सज्जमरणं तु । एवं छायापुरिसातो, आउकालं वियाणेज्जा जो न जलदप्पणाऽऽईसु, नियछायं नियइ नियइ वा विगियं । सेमवत्ती तस्स फुडं, समीववत्ती परिब्भमइ एवं छायाहिन्तो वि, सम्ममुवओगसारपारम्भो । पाएण मच्चुविसयं, कलेइ कालं कलाकुसलो एत्तो नाडिदारं, नाडिं च तिहा भणंति तव्विउणो। पढमा इडा परा पिंगला य तइया सुसुमणा य वामवहा आइल्ला, दाहिणपरिवाहिणी भवे बीया। तइया पुण उभयवहा, तव्विसयं निच्छियपहाणो ऊंपियवयणो निष्फंद-लोयणो मुक्कसयलवावारो। जो एहावत्थुगतो, सो जोगी लहइ फुडलक्खं सड्ढं घडियाण दुर्ग, वहइ इडा पिंगला य अणुकमसो । खणमेत्तं खु सुसुमणा, एत्थऽत्थे बिन्ति अण्णे उ गरुयक्खरछक्कुच्चार-कालपरिमाणमेगमूसासं । नीसासंवा पाणं ति, बेन्ति सुत्थंऽगदेहिस्स तेसिं पाणाणं तिर्हि, सएहिं सट्ठीए समहिएहिं तु । जायइ बज्झा घडिया, एक्का अह तेण माणेणं १. समवत्ती - समवर्ती - यमराजः, २. ऊंपियवयणो = आच्छानिदितवदनः,
।। ३०९३॥ ॥ ३०९४॥ ॥ ३०९५॥ ।। ३०९६॥ ॥ ३०९७॥ ॥ ३०९८॥ ॥३०९९ ॥ ॥३१००॥ ॥३१०१ ॥ ॥३१०२॥ ॥ ३१०३॥ ॥३१०४॥ ॥३१०५॥ ॥३१०६॥ ॥ ३१०७॥ ॥ ३१०८॥ ॥३१०९॥ ॥३११०॥ ॥३१११॥ ॥३११२॥ ॥३११३॥ ॥ ३११४ ॥
॥३११५ ॥ ॥३११६॥ ॥३११७॥ ॥ ३११८॥ ॥३११९॥ ॥३१२०॥ ॥ ३१२१॥ ॥ ३१२२॥ ।। ३१२३॥ । ३१२४॥ ॥३१२५ ॥ ॥३१२६ ॥ ॥ ३१२७॥ ।। ३१२८॥
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