Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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वहइ इडा घडियापंचगंति तं पिंगला छपाणोणं । छप्पाणे उ सुसुमणा, पेइय पवाहो इमाणमिमो एत्थ य वामा चंदो, दिणनाहो दाहिणे भवे इण्डिं। कालपरिण्णोवायं, वोच्छं एयाऽणुसारेणं आउयचिन्ताऽवसरे, पाणपवेसाउ जीवियं जाण । निग्गमणे पुण मरणं, भणियमिणं परमरिसिगुरुणा चंदायए दिणेसो, अहव दिणेसायए जया चंदो। असमंजसवहगा वा, दो वि तया जियइ छम्मासं जइ उत्तरायणदिणा-दाऽऽरब्भ दिणाणि पंच परिवहइ । एक्कसरो च्चिय सूरो, तो जीवति वरिसतिगमेव अह वहति दिवसदसगं, ता जीवति दोण्णि चेव वरिसाणि। पण्णरसदिणवहे पुण, एक्कसरे वरिसमेगंतु अह उत्तरायणादेव, जस्स वीसं दिणाणि एक्कसरो । वहई दिणाहिवो ता, छम्मासे चेव सो जियइ पणुवीसाए तिमासं, छव्वीसाए य जियइ दो मासे । सत्तावीसदिणवहे, रविम्मि पुण मासमेक्कं खु अह उत्तरायणाउ, अट्ठावीसं दिणाणि परिवहति । एक्कसरो चेव रवी, पण्णरस दिणाणि ता जियइ एगूणतीसदिणवह-रविम्मि पुण जाण दिवसदसगं खु। तीसाए दिणपणगं, एक्कतीसाए दिवसतिगं बत्तीसाए दिणदुर्ग, अह तेत्तीसाए जियइ दिणमेक्कं । अण्णं पि सप्पसंगं, किंपि पवक्खामि संखेवासयलदिणं दिणनाहो, वहमाणो माणवाण साहेइ । उप्पायं किंपि गिहे, दिणदुगवाही य गोत्तभयं गामे गोत्ते य भयं, तिदिणवहो कहइ चउदिणवहो उ। सत्थावत्थस्स वि जोगिणो धुवं पाणसंदेहं पंचदिणप्पवहो पुण, मच्चु सच्चवइ जोगिणो नूणं । वाहिं च किच्छसझं, दिणछक्कवहो नरवइस्स सत्ताऽहोरत्तवहो, तुरगाण खयं कहेइ निब्भंतं । अंतेउरभयजणगो, अणवरयं अट्ठदिणवाही नववासरवाही पुण, महाकिलेसं कहेइ नरवइणो। मरणं दसदिवसवहो, तंतभयं रुद्ददिणवाही बारसतेरसदिवस-प्पवहो कमसो अमच्चमंतिभयं । कुणइ चउद्दहदिणपरि-वहो तहा मंडलब्भंसं पण्णरसदिणपवाही, महाभयं भणइ सव्वलोयस्स । सव्वमिमं जहभणियं, नेयव्वं चंदचारे वि जस्स रविम्मि वहंते, पयईए जायए विवज्जासो । बज्झऽब्भंतरवत्थूसु, कारणविरहे वि किर एवं दिव्वे सद्दे सुणई, समुद्दपुरसंभवे य अच्चंतं । अक्कोसेसु पसीयइ, हरिसिज्जइ न सुहिसद्देसु विज्झायदीवगंधं, न पडुयघाणिदिओ वि उवलभइ । उण्हे वि सीयबुद्धी, सीए पुण उण्हपडिहासो नीलच्छविमच्छीणं, रिछोलीहिं तु आवरिज्जइ य । मणसो य विभलतं, जायइ जस्स य अकम्हा वि इच्चाई अण्णो वि हु, विवज्जओ होइ जस्स पयईए। सूरम्मि परिवहंते, तस्साऽवस्सं लहुं मरणं चंदोदए वि पयइ-विवज्जयाऽणुभवणेण होइ धुवं । उद्देगरोगसोग-प्पहाणभयमाणमलणाऽऽई भणियं नाडीदारं, एत्तो भोमाइअट्ठभेयं पि। सामण्णेणेव परं, निमित्तदारं पयंपेमि चंकमणठाणनिसियण-सोवणभूमिनिमित्तविरहे वि । दुग्गंधत्तं जालाओ जस्स दावेइ विदलइ वा अण्णं वा कलुणकंद-सद्दकरणाऽइयं जइ वियारं । सहसा दरिसेइ तया, छम्मासंतो भवे मरणं सज्जं परकेसेसुं, धूमाऽग्गिफुलिंगसंभवे मरणं । सुणगेहिं अट्ठिमडगा-वयवपवेसा गिहे मरणं राया वि उवक्खित्तो, हेट्ठा आराहगत्तणेण इहं । तं पि पडुच्चुप्पाए, केत्तियमेत्ते वि जंपेमि अणभिहयतरनाओ, सद्दो वा ताडिएस जइ न भवे । जलमंसउल्लजलणे, अणब्भवठ्ठीए निवमरणं सक्कधयचिंधतोरण-दुवारथंभिंदकीलगाऽऽईणं । सहसा भंगो पडणाणि, मरणमऽक्खंति नरवइणो कुसुमफलाणि अकाले, अहवा जालाउ धूममुयणं च । सुंदरदुमेसु दर्छ, हत्थं निच्छयसु रायवहं निसि दिवसे य निरब्भे, पेच्छंतो सुरधणुं जियइ न चिरं । गीयरवतूरसद्दा, गयणे धुवरोगमरणाय पवणस्स गई फासं, न विदइ विदइ य विवरीयं । ससिजुयलं वा पेच्छइ, जो तं मरणूसुगं जाण गुदतालुयजीहाऽऽईसु, अनिमित्तमतक्कियं मसाऽइसयं । दटुं दुलृट्ठाणं, उवट्ठियं जाण लहु मरणं जस्स य जीहऽग्गम्मि, दीसइ कसिणो अदिट्ठपुव्वो य । अनिमित्तो च्चिय बिंदू, सो वि न मासा परं जियइ अहवा निमित्तविरहा-दतक्कियं कह वि किर सरो वि दढं । जस्स सहावाउ पडइ, चडइ वा कम्मवसगस्स १. पइय = प्रतीतः,
॥ ३१२९ ॥ ॥ ३१३०॥ ॥३१३१ ॥ ॥ ३१३२॥ । ३१३३ ॥ ॥ ३१३४॥ ॥ ३१३५ ॥ ॥ ३१३६॥ ॥ ३१३७॥ ॥ ३१३८॥ ॥ ३१३९॥ ॥ ३१४०॥ ॥ ३१४१ ॥ ॥ ३१४२॥ ॥ ३१४३॥ ॥३१४४॥ ॥३१४५॥ ॥ ३१४६॥ ॥ ३१४७॥ ॥ ३१४८॥ ॥ ३१४९॥ ॥ ३१५०॥ ॥ ३१५१ ॥ ॥ ३१५२॥ ॥ ३१५३ ॥ ।। ३१५४॥ ॥ ३१५५ ॥ ॥ ३१५६ ॥ ॥ ३१५७ ॥ ॥ ३१५८॥ ॥ ३१५९ ॥ ॥ ३१६०॥ ॥ ३१६१॥ ॥ ३१६२॥ ॥ ३१६३॥ ॥ ३१६४॥ ॥३१६५॥
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