Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
जीवन के कलाकार
0 महासती उमरावकुवर जी 'अर्चना'
मैं अपना परम सौभाग्य मानती हूँ कि उपाध्याय मैंने देखा है कि आप सदा प्रसन्न रहते हैं और जो भी पुष्कर मुनि जी महाराज के सम्बन्ध में लिखने का मुझे आपके सम्पर्क में आते हैं उन्हें भी प्रसन्नता का प्रसाद सुनहरा अवसर प्राप्त हो रहा है। मैंने उनके दर्शन अनेकों समर्पित करते हैं । मुहर्रमी सूरत आपको पसन्द नहीं है। बार किये हैं और जब भी किये हैं तब मुझे अपार प्रसन्नता आपका यह मन्तव्य है कि 'जब फूल खिलता है, तभी उसमें हुई । मैं खाली गयी और भरी हुई लौटी। उनके सन्निकट से सौरभ विकीर्ण होती है और उसे सभी प्यार करते हैं । बैठकर मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि वह ज्ञान की प्याऊ है किन्तु मुरझाये हुए फूल को कोई पसन्द नहीं करता । हमारा जो प्यासों को सदा ज्ञान का अमृत पान कराती रहती है। जीवन भी खिले हुए फूल की तरह रहना चाहिए । वार्तावार्तालाप में नित-नया चिन्तन-अनुभव सुनने को मिलता लाप के प्रसंग में आपने मुझे बताया कि फोटोग्राफर जब है। वे आगम साहित्य के तलस्पर्शी विद्वान् हैं । मैंने अपनी किसी का फोटो लेता है तो वह व्यक्ति को कहता है कि अनेकों जिज्ञासाएँ उनके सामने प्रस्तुत की और उन्होंने उन जरा मुस्कुराओ । रोती सूरत का फोटो भी कोई पसन्द नहीं सभी का समाधान कर मुझे सन्तुष्ट किया।
करता, फिर रोते जीवन को कौन पसन्द करेगा। जब तुम
हँसोगी तो संसार तुम्हारे साथ हँसेगा। किन्तु जब तुम जैन समाज में सन्तों की कमी नहीं है, पर आपके जैसे रोओगी तो कोई भी न रोयेगा।' उदाहरण के माध्यम से प्रकृष्ट प्रतिभा के धनी अध्यात्मयोगी सन्त बहुत ही कम जीवन का गम्भीर रहस्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी हैं। आपने साध्वी समाज में गम्भीर अध्ययन करवा कर व्यक्त करते हैं जिसकी हृदय पर गहरी छाप पड़ती है। एक क्रान्ति पैदा की। मुझे स्मरण है कि सांडेराव सन्त सम्मेलन में आपने सतीवर्ग का पक्ष लेकर सम्मेलन में स्वर्ण की परीक्षा अग्नि में होती है किन्तु सन्त की विचार चर्चा के लिए उन्हें भी अवकाश दिलाया । आपका परीक्षा निन्दा और प्रशंसा के क्षणों में होती है। जो निन्दा यह स्पष्ट अभिमत है कि श्रमणों की तरह श्रमणियों का और प्रशंसा के क्षणों का समान भाव से स्वागत करता है भी बौद्धिक विकास होना चाहिए और जब तक श्रमणियों वही पूज्य श्रमण कहलाता है और उसे ही हजारों व्यक्तियों का विकास न होगा वहाँ तक श्राविकाओं में विकास नहीं हो की श्रद्धा प्राप्त होती है। उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी सकता और बिना श्राविकाओं के विकास के समाज आगे वैसे ही परम सन्त हैं । जीवन के उस महान् कलाकार का नहीं बढ़ सकता।
मैं हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ। वात्सल्यमूर्ति
महासती विनोदीनीबाई (लिंबड़ी सम्प्रदाय) पूज्य राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी उपाध्याय प्रवर चूल परिवर्तन करने वाला होता है। उन्होंने असीम कृपा श्री पुष्कर मुनिजो के पवित्र दर्शन का लाभ सन् १९७१ कर विमलाकुमारी और झंखनाकुमारी को दीक्षा प्रदान की में बम्बई में मिला था। यद्यपि दीर्घकाल तक उनके थी। उस स्वल्प परिचय में ही मुझे महाराज श्री की अनुसत्संग का लाभ हमें नहीं प्राप्त हुआ, किन्तु सज्जन और भवशीलता उदारता, सरलता, समय-सूचकता और वात्सल्य महापुरुषों का क्षणमात्र का सत्संग भी जीवन को आमूल- प्रभृति सद्गुणों ने आपके प्रति एक अनूठा आकर्षण पैदा
में बम्बई में मिला ही प्राप्त हुआ, किन्तु सजनाल- प्रभृति सद्गुणों
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