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चतुथपाद:
* सस्कृत-हिन्दी-टोकादयोपेतम् * ७०८ --प्र-उपसर्ग-पूर्वक ण्यन्त स्था-धातु के स्थान में है. पटुव और २-पेण्डव ये दो प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे - प्रस्थापयति- पवइ, पेण्डवइ प्रादेशों के प्रभावपक्ष में--पटावा (वह स्थापित कराता है) यह रूप बन जाता है। . ७६-वि उपसर्मपूर्वक ग्यन्त जा धातु के स्थान में बतायो म यो दो मादेश विकल्प से होते हैं। जैसे-विज्ञापयति वोक्का,अबुक्क आदेशों के प्रभाव-पक्ष में विष्णवई (वह विशेष ज्ञान कराता है) यह रूप बन जाता है।
७१०-यन्त अपिधातु के स्थान में-१-अलिसव, २-चुप्प और ३-धणाम ये तीन आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे-असंयति-प्रल्लिवह, चकचुपइ, पणामइ आदेशों के अभाव-पक्ष में अपेइ (बह अर्पण कराता है। यह रूप बनता है।
७११- ण्यन्त या धातु के स्थान में अब यह आदेश विकल्प से होता है । जैसे-यापयति-- जबइ आदेश के अभाव-पक्ष में जायेह (वह गमन कराता है) यह रूप बन जाता है।
७१२- ण्यन्त प्लावि-षातु के स्थान में ----१-मोम्बाल और २- पचाल ये दो धादेश विकल्प से होते हैं | जैसे-लाययति-प्रोम्बालइ, पब्बालइ प्रादेशों के प्रभावपक्ष में-पावेह (वह तर-ब-तर कराता है) यह रूप बन जाता है।
७१३–ण्यन्त विकौशि नाम-धातु के स्थान में परसोज यह मादेश विकल्प से होता है। जैसेविकोशयति= पक्खोड मादेश के प्रभाव-पक्ष में बिकोसा (वह विकसित कराता है) यह रूप बन जाता है।
- ७१४---ण्यन्त रोमन्यि-धातु के स्थान में ओमाल और बग्गोल ये दो प्रादेश बिकल्प से होते हैं। जैसे-रोमत्ययति प्रोग्गालावरगोल इमादेशों के प्रभाव-पक्ष में रोमन्था (वह चबाई वस्तु को पुनः चाता है) यह रूप बनता है।
७१५-स्वार्थण्यन्त (स्वार्थ में विहित णि प्रत्यय जिसके अन्त में हो) कमि धातु के स्थान में 'बिहुव' यह मादेश विकल्प से होता है। जैसे-कामयति णिहुवइ, अादेश के अभाव-पक्ष में कामेह (वह इच्छा कराता है) यह रूप होता है।
७१६-ज्यन्त प्रकाशिधातु के स्थान में 'शुब्ब' यह मादेश विकल्प से होता है। जैसेप्रकाशयति गुन्वह, प्रादेश के प्रभाव-पक्ष में पयासे (बह प्रकाश कराता है) यह रूप होता है।
७१७-यन्त कम्पि धातु के स्थान में विस्मोस यह प्रादेश बिकल्प से होता है। जैसे-कम्पपति-विच्छोलइ पादेश के प्रभाव-पक्ष में कम्पेई (वह कम्पाता है) यह रूप बनता है।
७१५--प्रयन्त प्रारुहि-धातु के स्थान में 'बल' यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे-आरोहयति वल इ, आदेश के प्रभावपक्ष में आरोवेह (बह चढ़वाता है) यह रूप बन जाता है।
७१६--स्वार्थग्यन्त (जिस के अन्त में स्वार्थ में णि किया गया हो) दुलि धातु के स्थान में 'रसोल' यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे-बोलयात रहोलइ मादेश के प्रभावपक्ष में बोलाइ (वह झुलाता है) ऐसा रूप बनता है।
७२० -- प्रयन्त रजि धातु के स्थान में 'शव' यह पादेश विकल्प से होता । जैसे-रज्जयति-र.वेइ प्रादेश के अभावपक्ष में-रजेह (वह रंग लगाता है) यह रूप होता है।
७२१-- प्यन्त घटि' धातु के स्थान में परिवा' यह मावेश विकल्प से होता है। जैसे