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*प्राकृत-व्याकरणम् ★
चतुर्थपादः पति दुमइ, अादेश के प्रभावपक्ष में-धवला (वह सफेद करवाता है) यह रूप बनता है। इस के अतिरिक्त, ९७९ सूत्र से दुम के ह्रस्व उकार को धीर्य लकार भी हो पाई : री-वधिसम् -- दूमिग्रं (सफेद कराया हुआ) यहाँ उकार को ऊकार किया गया है।
६९६-यन्त तुलि धातु के स्थान में विकल्प से 'मोहाम' यह आदेश होता है । जैसे---- सोलयति-प्रोहामइ प्रादेश के प्रभाव पक्ष में-सुलइ (वह तोल कराता है) यह रूप बनता है।
६७-श्यन्त विरिचि धातु के स्थान में-१-ओसुश, २-उल्लुण्ड और ३---परहस्थ तीन मादेश विकल्प से होते हैं। जैसे-१-विरेचयति=ोलुपडइ, उल्लुण्डइ, पल्हस्थाइ प्रादेश के प्रभावपक्ष में -विरे (वह वाहिर निकलता है) यह रूप बनता है ।
६९५-यन्त तडिधातु के स्थान में १-आहोर और २-बिहोड ये दो धादेश विकल्प से होते हैं। जैसे-ताश्यति माहोड, बिहोडह प्रादेश के प्रभावver में ताडे (वह ताड़ना कराता है) यह रूप बनता है।
६९E ---ण्यन्त मिश्रि धातु के स्थान में १-बीसाल और २-मेलच ये दो आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे --मिषयतिवीसालइ, मेलवाइ आदेश के अभावपक्ष में-मिस्सा (वह मिलाता है) यह रूप बनता है।
७००-यन्त उद्धूलि धातु के स्थान में 'गुष्ठ' यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे-उधलपति गुण्ठा प्रादेश के प्रभाव-पक्ष में-उधूलेइ (वह ऊपर को धूलि फेंकता है) यह रूप बनता है।
७०१-यन्त भ्रमि धातु के स्थान में सालिमष्य और तमाड ये दो मादेश विकल्प से ही जाते हैं। जैसे-भ्रमयति-तालिमण्टइ, समाडइपादेश के प्रभावपक्ष में भामे, भमाडे, ममावेश (यह भ्रमण करता है) ये रूप हो जाते हैं।
७०२ --- च्यन्त नशि (नश्) धातु के स्थान में १-विवड,२--नासब,३-हारण,४-विप्पणाल पौर--पलाव ये पांत्र प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे-नाति विउडइ, नासबइ, हारवा, विप्पगालाइ, पलावइ प्रादेश के प्रभावपक्ष में नासा (बह नाश कराता है) यह रूप बन जाता है।
७०३---ण्यन्त दशि धातु के स्थान में-१-वाक, २--वंस और ३-दबाव ये तीन प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे --वर्शयति-दावइ, दसइ, दक्खवई प्रादेश के प्रभावपक्ष में-बरिसइ (वह दिखलाता है) यह रूप बन जाता है।
०४-उद्-उपसर्गपूर्वक प्रयन्त घटिधातु के स्थान में 'उमा' यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे-उद्घाटयति उग्गइ आदेश के अभावपक्ष में-उधाडा (वह उद्घाटन करता है, प्रारंभ कराता है) यह रूप बन जाता है।
७०५---ण्यन्त स्पृह, धातु के स्थान में 'सिंह' यह मादेश होता है। जैसेस्पृहपति सिहइ (वह इच्छा कराता है) यहाँ स्पृह धातु के स्थान में 'सिंह' यह आदेश किया गया है।
७०६--संभावि धातु के स्थान में आसद्ध यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे-संभावयति-प्रासाइमादेश के अभावपक्ष में-संभावा (वह संभावना कराता है) यह रूप बनता है।
___७०७-उद्-उपसर्ग-पूर्वक प्रयन्त नमि धातु के स्थान में-१-उत्थंध, २-उल्लाल, ३-गुरुपुछ और ४-चप्पेल ये चार प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे -जन्तामयति उत्थइ, उल्लाल इ, गुलुमुछइ, उप्पेलाइ मादेशों के प्रभाव-पक्ष में उन्लामा (वह ऊपर उठाता है) यह रूप होता है ।