Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बाईसवाँ क्रियापद - एक जीव और बहुत जीव की अपेक्षा क्रियाएं
१५
भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन्! अनेक जीव, एक नैरयिक की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार प्रारम्भिक दण्डक में कहा गया था, उसी प्रकार से यह दण्डक भी वैमानिक तक कहना चाहिए।
जीवा णं भंते! जीवेहिंतो कइकिरिया? गोयमा! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि, अकिरिया वि।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अनेक जीव, अनेक जीवों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! अनेक जीव अनेक जीवों की अपेक्षा से तीन क्रियाओं वाले भी होते हैं, चार क्रियाओं वाले भी, पांच क्रियाओं वाले भी और अक्रिय भी होते हैं।
जीवाणं भंते! णेरइएहिंतो कइकिरिया? गोयमा! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, अकिरिया वि।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अनेक जीव, अनेक नैरयिकों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! अनेक जीव अनेक जीवों की अपेक्षा से तीन क्रियाओं वाले भी होते हैं, चार क्रियाओं वाले भी और अक्रिय भी होते हैं।
असुरकुमारेहितो वि एवं चेव जाव वेमाणिएहितो, ओरालिय सरीरेहिंतो जहा जीवेहिंतो।
भावार्थ - इसी प्रकार अनेक जीवों के अनेक असुरकुमारों से लेकर यावत् अनेक वैमानिकों की अपेक्षा से क्रियासम्बन्धी आलापक कहने चाहिए। विशेषता यह है कि अनेक औदारिक शरीरधारकों (पृथ्वीकायिकादि पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय एवं मनुष्यों) की अपेक्षा से जब क्रिया सम्बन्धी आलापक कहने हों, तब जीवों की अपेक्षा से क्रियासम्बन्धी आलापक के समान कहने चाहिए।
णेरइए णं भंते! जीवाओ कइकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए। भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन्! एक नैरयिक एक जीव की अपेक्षा से कितनी क्रिया वाला होता है ?
उत्तर - हे गौतम! एक नैरयिक एक जीव की अपेक्षा से कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है।
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