Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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१८
प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात हजार वर्ष की कही गई है।
सूक्ष्म अप्कायिकों के औधिक (सामान्य) तथा अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों की स्थिति जैसी सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की कही गई है वैसी कह देनी चाहिये।
बायर आउकाइयाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहसस्साई।
अपज्जत्तय बायर आउकाइयाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। पज्जत्तयाण य पुच्छा ?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई ॥२२६॥
प्रश्न - हे भगवन् ! बादर अप्कायिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! बादर अप्कायिकों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की कही गई है।
प्रश्न - हे भगवन्! अपर्याप्तक बादर अप्रकायिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक बादर अप्कायिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात हजार वर्ष की कही गई है।
तेउकाइयाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि राइंदियाइं। अपज्जत्तयाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं वि उक्कोसेणं वि अंतोमहत्तं? पज्जत्तयाणं च पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोंसेणं तिण्णि राइंदियाइं अंतोमुहुत्तूणाई।
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