Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद
अजीव प्रज्ञापना
प्राणाः दशैते भगवद्भिरुक्ताः ।
तेषां वियोजीकरणं तु हिंसा ॥
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जिनसे प्राणी जीवित रहे उन्हें प्राण कहते हैं । वे दस हैं १. स्पर्शनेन्द्रिय बलप्राण २. रसनेन्द्रिय बलप्राण ३. घ्राणेन्द्रिय बल प्राण ४. चक्षुरिन्द्रिय बलप्राण ५. श्रोत्रेन्द्रिय बलप्राण ६. कायबल प्राण ७. वचन बलप्राण ८. मन बलप्राण ९. श्वासोच्छ्वास बलप्राण १०. आयुष्य बलप्राण ।
इन दस प्राणों में से किसी प्राण का विनाश करना हिंसा है। जैन शास्त्रों में हिंसा के लिए प्रायः प्राणातिपात शब्द का ही प्रयोग होता है। इसका अभिप्राय यही है कि इन दस प्राणों में से किसी भी प्राण का अतिपात (विनाश) करना ही हिंसा है।
एकेन्द्रिय जीवों में चार प्राण होते हैं - स्पर्शनेन्द्रिय बलप्राण, काय बलप्राण, श्वासोच्छ्वास बलप्राण और आयुष्य बलप्राण । द्वीन्द्रिय में छह प्राण होते हैं - चार पूर्वोक्त तथा रसनेन्द्रिय और वचन बल प्राण। त्रीन्द्रिय में सात प्राणं होते हैं- छह पूर्वोक्त और घ्राणेन्द्रिय । चतुरिन्द्रिय में आठ प्राण होते हैं पूर्वोक्त सात और चक्षुरिन्द्रिय। असंज्ञी पंचेन्द्रिय में नौ प्राण होते हैं- पूर्वोक्त आठ और श्रोत्रेन्द्रिय । सन्नी पंचेन्द्रिय में दस प्राण होते हैं- पूर्वोक्त नौ और मन बलप्राण ।
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अजीव प्रज्ञापना
से किं तं अजीव पण्णवणा? अजीव पण्णवणा दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - रूवी अजीव पण्णवणा य, अरूवी अजीव पण्णवणा य ॥ २ ॥
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भावार्थ - प्रश्न- अजीव प्रज्ञापना क्या है ? अथवा अजीव प्रज्ञापना कितने प्रकार की कही है ? प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है- १. रूपी अजीव प्रज्ञापना
उत्तर - अजीव प्रज्ञापना
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और २. अरूपी अजीव प्रज्ञापना ।
विवेचन-. जिसमें रूप हो वे रूपी कहलाते हैं । यहाँ रूप के उपलक्षण से गंध आदि का ग्रहण भी समझ लेना चाहिये। गंधादि के सिवाय रूप का अस्तित्त्व असंभव है । प्रत्येक परमाणु में रूप, रस, गंध और स्पर्श होता है। कहा है कि -
कारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः ।
एक रस वर्ण गंधो, द्विस्पर्शः कार्य लिंगश्च ॥
द्वि प्रदेशी से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कंध तक सभी पौद्गलिक कार्य है। सभी का कारण परमाणु है परन्तु परमाणु का कारण कोई नहीं है। वह सूक्ष्म और पर्याय की अपेक्षा अनित्य होते हुए भी द्रव्यार्थ की अपेक्षा नित्य है। परमाणु एक रस, एक वर्ण, एक गंध और दो स्पर्श वाला होता है। स्पर्श आठ होते हैं यथा शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध, गुरु, (भारी), लघु (हलका), कर्कश (खुरदरा - कठोर ), मृदु
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