Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पढमं पण्णवणा पदं
प्रथम प्रज्ञापना पद से किं तं पण्णवणा ? पण्णवणा दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - जीव पण्णवणा य अजीव पण्णवणा य॥१॥ .
कठिन शब्दार्थ - जीव पण्णवणा - जीव प्रज्ञापना, अजीव पण्णवणा - अजीव प्रज्ञापना। भावार्थ - प्रश्न - प्रज्ञापना क्या है? अथवा प्रज्ञापना कितने प्रकार की है ?
उत्तर - प्रज्ञापना दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है - १. जीव प्रज्ञापना और २. अजीव प्रज्ञापना।
विवेचन - प्रश्न - प्रज्ञापना किसे कहते हैं ?
उत्तर - टीकाकार ने प्रज्ञापना शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है - "प्रकर्पण निःशेष कुतीर्थि तीर्थकरासाध्येन यथावस्थित स्वरूपनिरुपण लक्षणेन ज्ञाप्यन्ते-शिष्यबुद्धावारोप्यन्ते जीवाजीवादयः पदार्था अनयेति प्रज्ञापना।" ___ अर्थ - अन्य मतावलम्बियों के माने हुए धर्म प्रवर्तक, जिन पदार्थों का सम्यक् प्रकार से निरूपण नहीं कर सकते हैं, ऐसे जीव, अजीव आदि पदार्थों का यथावस्थित प्ररूपणा निरूपणा करके शिष्य के बुद्धि में अच्छी तरह से आरोपित किये जाते हैं उसको प्रज्ञापना कहते हैं।
जो प्राणों को धारण करे वह जीव है। प्राण दो प्रकार के हैं - द्रव्य प्राण और भाव प्राण। इन्द्रिय आदि द्रव्य प्राण हैं और ज्ञानादि भाव प्राण है। द्रव्य प्राणों के संबंध से नैरयिक आदि संसारी जीव हैं। केवल भाव प्राणों से सर्व प्रकार के कर्मकलंक से मुक्त सिद्ध जीव हैं। जीवों की प्रज्ञापना-प्ररूपणा जीव प्रज्ञापना कहलाती है। जीव से विपरीत जड़ स्वरूप वाला अजीव होता है। जो धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय-काल रूप है। प्रज्ञापना के दो भेद बताए गये हैं। उनमें पहला भेद जीव प्रज्ञापना है और दूसरा भेद अजीव प्रज्ञापना है। इस क्रमानुसार पहले जीव प्रज्ञापना की व्याख्या आनी चाहिए किन्तु "सूची कटाह न्यायेन" प्रथम सूची कर्तव्या अल्प समय साध्यत्वात् कटाह पश्चात् कर्तव्य बहु (चिर) समय साध्यत्वात्" ।
अर्थ - किसी लूहार के पास दो व्यक्ति पहुंचे। एक को कटाई (कढाह-कढ़ाई) बनवाना था और दूसरे को सूई बनवानी थी। यद्यपि कटाह वाला पहले पहुँचा है और सूई वाला पीछे, परन्तु सूई
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