Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद प्रस्तावना
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करने वाले, पुव्वसुयसमिद्धबुद्धीण - पूर्व श्रुत से जिसकी बुद्धि समृद्ध हुई है, सुयरयणं श्रुत रत्न, उत्तमं - उत्तम, सीसगणस्स शिष्य गण को, अज्ज सामस्स- आर्य श्यामाचार्य को ।
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भावार्थ - श्रेष्ठ वाचक वंश में तेवीसवें धीर पुरुष, दुर्धर - प्राणातिपात विरमण आदि महाव्रतों क धारण करने वाले, पूर्वश्रुत से जिनकी बुद्धि समृद्ध हुई ऐसे मुनि जिन्होंने श्रुतसागर से बीन (चुन) कर प्रधान श्रुत रत्न शिष्य गण को दिये, ऐसे भगवान् आर्य श्यामाचार्य को नमस्कार हो ।
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विवेचन - इन दोनों गाथाओं का आगे की गाथा अज्झयणमिणं चित्तं ..... के साथ सम्बन्ध है जिन्होंने इस प्रज्ञापना का प्राणियों के उपकार के लिये श्रुतसागर से उद्धार किया है वे आर्य श्यामाचार्य भी नजदीक के उपकारी है अतः हमारे लिए नमस्कार करने योग्य है। इसलिये नमस्कार से संबंधित होने के कारण बीच में अन्य आचार्यों द्वारा रचित ये दो गाथाएँ दी है।
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आर्य श्यामाचार्य श्रेष्ठ वाचक वंश में हुए और सुधर्मा स्वामी से प्रारंभ कर तेवीसवें पट्टधर हैं । वे बुद्धि से शोभित होने से धीर पुरुष हैं। जगत् की त्रिकालावस्था का मनन करे वह मुनि यानी जो विशिष्ट ज्ञान युक्त है तथा जिनकी बुद्धि पूर्व के ज्ञान से समृद्ध-वृद्धि पायी हुई है। श्रुत भी अपार होने से और ज्ञानादि रत्न युक्त होने से सागर समान है। ऐसे श्रुतसागर से चुन कर प्रज्ञापना रूप उत्तमप्रधान श्रुतरत्न शिष्यों को दिये हैं ऐसे आर्य श्यामाचार्य को नमस्कार हो ।
अज्झयणमिणं चित्तं सुयरयणं दिट्ठिवायणीसंदं ।
जह वण्णियं भगवया, अहमवि तह वण्णइस्सामि ॥ ५ ॥
कठिन शब्दार्थ- सुयरयणं श्रुत रत्न, दिट्ठिवायणीसंदं दृष्टिवाद निःश्यन्द (निष्कर्ष - निचोड़) । - दृष्टिवाद नामक बारहवें अङ्ग के निचोड़ रूप (निष्कर्ष रूप- सारभूत) तथा चित्रविचित्र अर्थात् विविधता युक्त, श्रुतों में रत्न के समान इस प्रज्ञापना रूप अध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जिस प्रकार वर्णन किया है, उसी प्रकार मैं ( आर्य श्याम) भी वर्णन करूँगा। अपनी बुद्धि के अनुसार नहीं ।
प्रश्न - आर्य श्यामाचार्य तो छद्मस्थ हैं। वे केवलज्ञानी भगवान् महावीर स्वामी की तरह वर्णन करने में कैसे समर्थ हो सकते हैं ?
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उत्तर - सर्वज्ञ सर्वदर्शी' केवली भगवान् महावीर स्वामी ने तो इसका वर्णन विस्तार पूर्वक किया है किन्तु आर्य श्यामाचार्य कहते हैं कि मैं तो सामान्य रूप से पदार्थों का कथन करूँगा । इस कथन से उपरोक्त प्रश्न का समाधान हो जाता है।
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