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नय रहस्ये प्रदेशदृष्टान्तः
ऋजुसूत्रस्तु ब्रूते - 'पञ्चविधः प्रदेश:' इत्युक्ते प्रतिस्वं पञ्चविधत्वान्वयात् पञ्चविंशतिविधत्वप्रसङ्गः । न च सामान्यतस्तदन्वयान्न बाध इति वाच्यम्, विशेषविनिर्मोकेण तदसिद्धेः । किं च किमत्र पञ्चविधत्वम् ? 'पञ्चप्रकारत्वमिति चेत् ? कः प्रकारः ? संख्या वा, बुद्धिविशेषविषयत्वं वा, भेदो वा ? नाद्यः, अनन्तेषु प्रदेशेषु पञ्चसंख्यावधारणाऽसिद्धेः । न द्वितीयः पञ्चप्रकारकबुद्धिविषयत्वस्य प्रत्येकमभाविनः पञ्चस्वप्यभावात् । न च ' गेहेषु शतमश्वा' इतिवत्प्रत्येकं प्रत्येकं धर्मप्रकारक बुद्धिविषयत्वं तत्सामान्यविश्रामेऽनन्वयात्, विशेषविश्रामे च भजनानामान्तरत्वात् । न तृतीयः, अतिरिक्तभेदाऽनिरुक्तेः । ततो भाज्यः प्रदेशः 'स्याद्धमस्तिकायस्य स्यादधर्मास्तिकायस्येत्यादि ॥
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'घट और पट इन दोनों में रूप है' यह प्रकृतप्रयोग भी नहीं होगा क्योंकि किसी भी एक रूप में अर्थात् घटीयरूप में अथवा पटीयरूप में उभयनिरूपितवृत्तिता नहीं है । तब 'प्रदेश पाँच प्रकार का है' यह मान्यता व्यवहारनय के अनुसार जो है वह असंगत सी लगती है । "
[ उक्त प्रयोग न होने में इष्टापत्ति - उत्तर
इस सम्पूर्ण आशंका के समाधान में उपाध्यायजी कहते हैं कि 'घट और पट इन दोनों में रूप है' यह प्रयोग यदि व्यवहारनय के अनुसार नहीं हो सकता है तो यह आपत्ति नहीं किन्तु इष्टापत्ति ही है। आशय यह है कि ऐसे स्थलों में रूपात्मक एक व्यक्ति में घट और पट जैसे समुदित अर्थात् उभयात्मक पदार्थ निरूपितवृत्तित्व का ही बोध उत्पन्न करने में व्यवहार नय समर्थ होता है और एक रूपव्यक्ति में उभयनिरूपित वृत्तिता का सम्भव नहीं है इसलिए ऐसे प्रयोगों का न होना व्यवहारनय को इष्ट ही है । परन्तु इस तरह का प्रयोग होता ही नहीं, यह बात भी नहीं है क्योंकि संग्रहनय के अनुसार रूप शब्द का अर्थ रूपत्वेन रूपसामान्य माना जाता है । रूप सामान्यान्तर्गत किसी एक रूप में घटनिरूपितवृत्तिता है तो किसी एक रूप में पटनिरूपितवृत्तिता भी है । अत: इस रीति से रूपसामान्य में घटपटउभयनिरूपितवृत्तिता भी है । अतः 'घट और पट इन दोनों में रूप रहता है', ऐसा प्रयोग संग्रहनय का आश्रयण कर के हो भी सकता है ।
" ऋजुसूत्र स्त्वि "त्यादि - 'प्रदेश पाँच प्रकार का है' ऐसा प्रयोग व्यवहारनय की मान्यता के अनुसार होता है, परन्तु यह प्रयोग ऋजुसूत्र को मान्य नहीं है । ऋजुसूत्र का आक्षेप यह है कि 'प्रदेश पाँच प्रकार का है' ऐसा कहने पर प्रदेश पचीस प्रकार के बन जाएँगे । क्योंकि धर्मास्तिकायादि प्रत्येक के प्रदेश में पञ्चविधत्व का अन्वय होगा, जैसे कि धर्मास्तिकाय का प्रदेश पाँच प्रकार का है. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश भी पाँच प्रकार का है - इत्यादि.... यावत् स्कन्ध का प्रदेश भी पाँच प्रकार का है । इस