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उपा. यशोविजयरचिते किञ्चैवं "नष्टो घटो" "नश्यन् घटः" इत्यादिप्रयोगव्यवस्थायां तव का गतिः? नाशस्योक्तातीतत्वाऽयोगात् नष्टे [? नश्यत्य]पि घटे विद्यमाननाशप्रतियोगि[कालवृत्तित्वाच्च ।। अतीतत्व का धात्वर्थक्रिया में अन्वय मानना युक्त नहीं है, तब ‘क्रियमाणं कृतमेव" इस प्रकार की जो "क्रियानय" की मान्यता है वह ठीक हो है ।
[ 'नष्टो घटः' इत्यादि प्रयोग व्यवस्था की अनुपपत्ति ] [किञ्चैव' 1 प्रत्ययार्थ वर्तमानत्व और अतीतत्व का यदि धात्वर्थ में अन्वय माना जाय तो दूसरा भी दोष ग्रन्थकार बताते हैं कि “नष्टो घट:'" "नश्यन् घटः” इत्यादि व्यवस्थित प्रयोग लोक में होते हैं, वे अब नहीं होंगे क्योंकि "नष्टो घटः” यहाँ निष्ठाप्रत्ययार्थ अतीतत्व का अन्वय नशधात्वर्थ नाश में आप के अनुसार होना चाहिए परन्तु वह अतीतत्व नाश में घटता नहीं है । विद्यमाननाशप्रतियोगिकालवृत्तित्वरूप अतीतत्व को ही आप पूर्व में मान आए हैं ! “विद्यमाननाश” पद से नाशोत्पत्ति के पूर्वक्षणों का नाश ही गृहीत होगा क्योंकि वही घटनाशोत्पत्तिक्षण में विद्यमान हैं । उस नाश का प्रतियोगिकाल नाशोत्पत्तिकाल से पूर्व में रहनेवाला काल ही होगा, उस काल में घटनाश वत्ति नहीं है, इसलिए उक्त अतीतत्व यहाँ घटमान नहीं होता है, अतः "नष्टो घटः" यह व्यवस्थित प्रयोग नहीं हो सकेगा । दूसरी बात यह है कि विद्यमानकालवृत्तित्वरूप वर्तमानत्व आपने माना है, "नष्टो घटः” इस प्रयोग के आधारभूत घट का नाश वर्तमानकाल में वृत्ति है, अतः “नष्टो घटः" इस की जगह पर “नश्यन् “घटः" ऐसा प्रयोग होना चाहिए, जो किसी को इष्ट नहीं है ।
इसीतरह "नश्यन् घटः” यह व्यवस्थितप्रयोग जो लोग में होता है, वह भी आप के मत में नहीं होगा क्योंकि जिसकाल में घट का नाश हो रहा है, उस काल में भी नाश में विद्यमानध्वंसप्रतियोगिकालवृत्तित्वरूप अतीतत्व घट जाता है। “विद्यमाननाश" पद से घटनाशारम्भक्षणनाश तथा उस के द्वितीयक्षणनाश, तृतीयक्षणनाश का ग्रहण हो सकता है, “तत्प्रतियोगिकाल" पद से घटनाशारम्भक्षण और उस के द्वितीय, तृतीय क्षण का ग्रहण होगा, उन क्षणों में तो वटनाश वृत्ति ही होता है, इसलिए अतीतत्व के घट जाने से "नश्यन् घटः" की जगह पर "नष्टो घटः" इस प्रयोग का प्रसंग आता है। यदि कहें कि-उक्त घटनाश में विद्यमानकालवृत्तित्वरूप वर्तमानत्व भी रहता है, इसलिए "नश्यन घटः" ऐसा प्रयोग होगा-परन्तु यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि उक्त घटनाश में उपरोक्त वर्तमानत्व को लेकर जैसे "नश्यन् घटः” इस प्रयोग का उपपादन होता है, वैसे ही पूर्वोक्त अतीतत्व को लेकर उस प्रयोग की जगह पर "नष्टो घटः” इसप्रयोग का भी उपपादन हो सकता है, अतः "नष्टो बटः, नश्यन घटः" इत्यादि प्रयोगों की व्यवस्था आप के मत में नहीं होगी यह तो निर्विवाद है ।