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नयरहस्ये कारणताविमर्शः
२१७ स्यादेतद्-अत्र नशधातो शवति लक्षणयाऽभेदेनैवास्तु प्रातिपदिकार्थेन सममन्वयः । न च धात्वर्थस्याख्याताद्यर्थ एवान्वयनियमात् कथमेवमिति वाच्यम् , शक्त्यैव धात्वर्थप्रकारकबोधे आख्यातादिजन्योपस्थितेहे तुवात् । अत एव 'जानाती'त्यादौ ज्ञाधातोर्ज्ञानवति लक्षणया प्रातिपदिकार्थेनान्वयसम्भवे आख्यातार्थोऽयोग्यत्वान्न नामार्थ प्रकारक बोध नहीं है, किन्तु धात्वर्थ प्रकारक नामा विशेष्यक बोध है, इसलिए उस बोध में निपातजन्य उपस्थिति अथवा प्रत्ययजन्य उपस्थिति कारण ही नहीं है तो उस उपस्थिति के अभाव में भी नाशरूपधात्वर्थ प्रकारक घटविशेष्यक बोध होने में कोई हर्ज नहीं है।"
परन्तु ऐसा कहना भी युक्त नहीं है, क्योंकि "चैत्रः पाक" इत्यादि स्थल में पाकादि का स्वकर्तृत्व सम्बन्ध से चैत्रादि में अन्वय कर के “पाकविशिष्टः चैत्रः” इत्याकारक भेदसंसर्गक पाकप्रकारक चैत्रविशेष्यक बोध का प्रसंग हो जायगा । वह न हो इसलिए विशेष्यता सम्बंध से धात्वर्थप्रकारक भेदसंसर्गक बोध के प्रति भी विशे सम्बंध से निपात और प्रत्यय एतद् अन्यतरजन्य उपस्थिति को कारण मानना आवश्यक होगा । ऐसा करने पर ही "चैत्रः पाक" इत्यादि स्थल में पाकादि का चैत्र में स्वकर्तृत्व सम्बंध से अन्वय बोध की आपत्ति दूर होगी, क्योंकि “पाकविशिष्ट चैत्र" यह बोध धात्वर्थ प्रकारक बोध है । इस बोध के प्रति निपातजन्य उपस्थिति अथवा प्रत्ययजन्य उपस्थिति कारण है । वैसी उपस्थिति चैत्र रूप नामार्थ में विशेष्यतासम्बन्ध से नहीं रहती है, किन्तु नामजन्य उपस्थिति विशेष्यता सम्बन्ध से चैत्र में रहती है । अतः कारण के अभाव में "चेत्रः पाक" इत्यादि स्थल में दोष न होगा। तथा, "नष्टो घटः" इस वाक्य से जो आप प्रतियोगितासंसर्गक अतीतकालीनोत्पत्त्याश्रयनाशप्रकारक घट-विशेष्यक बोध करना चाहते हैं, वह भी नहीं होगा, क्योंकि वह बोध भी धात्वर्थ प्रकारक बोध ही है, इसलिए उस बोध के प्रति भी निपातजन्य उपस्थिति अथवा प्रत्ययजन्य उपस्थिति कारण है । वैसी उपस्थिति तो चैत्ररूप नामार्थ में विशेष्यता संबंध से रहती नहीं है, अतः कारण के अभाव में उक्त बोधरूप कार्य का भी सम्भव नहीं होगा ।
[स्यादेतद] यदि यह आशंका हो कि-"भेद संसर्गक धात्वर्थ प्रकारक शाब्दबोध के प्रति निपात और प्रत्यय एतदन्यतरजन्य उपस्थिति समानविशेष्यता सबन्ध से कारण मानी जाती है, इसलिए "नष्टो घटः” इत्यादि स्थल में धात्वर्थ नाश का प्रतियोगिता सम्बन्ध से घटरूप नामार्थ में अन्वय भले ही न हो, तो भी “नश' धातु की नाशवंत में लक्षणा करेंगे और नाशवन्त रूप धातु के लक्ष्यार्थ का अन्वय अभेद सम्बन्ध से घट में करेंगे । प्रतियोगिता सम्बन्ध से नाशविशिष्ट घट होता ही है, अतः नाशविशिष्ट का अभेद सम्बन्ध से घट में अन्वय करने में कोई बाधक भी दीखता नहीं है। इस तरह से "नष्टो घटः” इस प्रयोग की उपपत्ति हो सकती है। ___यदि बीच में यह कहा जाय कि-"तण्डुलं पचति चत्रः” इत्यादि स्थल में धात्वर्थ पाक का आख्यातार्थ कृति में ही अन्वय होता है, क्योंकि विशेष्यता सम्बन्ध से धात्वर्थ प्रकारक बोव के प्रति आपातजन्य उपस्थिति विशेष्यता सम्बन्ध से कारण
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