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उपा. यशोविजयरचिते
अथ भेदेन निपातान्यनामार्थप्रकारकबोधे समानविशेष्यत्वप्रत्यासच्या निपातप्रत्ययान्यतरजन्योप स्थिते र्हेतुत्वात् नामार्थप्रकारकधात्वर्थविशेष्यक बोधाऽसम्भवेऽपि धात्वर्थप्रकारकनामार्थविशेष्यकबोधः प्रकृतेऽनपाय एवेति चेत् न, “चैत्रः पाक" इत्यादौ कर्तृत्वादिस सर्गेण पाकादेश्चैत्रादावन्वयाऽबोधाय धात्वर्थप्रकारक बोधेऽपि निपातप्रत्ययान्यतरजन्योप स्थिते हैतुत्वाऽन्तरकल्पनावश्यकत्वात् ।
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है । प्रकृत में नामार्थ घट है और धात्वर्थ नाश है, उस धात्वर्थनाश का नामार्थ घट प्रतियोगितारूप भेदसम्बन्ध से साक्षात् अन्वय नहीं हो सकता है । जैसे- नामार्थद्वय का साक्षात् भेदसम्बन्ध से अन्वय अव्युत्पन्न है, वैसे ही नामार्थ - धात्वर्थ का भी साक्षात् भेदसम्बन्ध से अन्वय अभ्युत्पन्न माना गया है। तब " नञ् " का सहोच्चार रहने पर नाश का अन्य जो घट में प्रतियोगितासम्बन्ध से करना चाहते हैं, वह भी नहीं होगा और नञ् का समभिव्याहार रहने पर प्रतियोगितासम्बन्धावच्छिन्न तथाविध नाशाभाव का घट में अन्वय मानकर विद्यमानघट में “घटो न नष्टः " इस प्रयोग की उपपत्ति करना चाहते हैं, वह भी नहीं होगी ।
यदि उक्त व्युत्पत्ति का स्वीकार न कर के नामार्थघट में धात्वर्थ नाश का अन्वय करने का दुराग्रह करेंगे तो “तण्डुल पचति" इस स्थल में भी कर्मतारूप भेदसम्बन्ध से नामार्थ तण्डुल का धात्वर्थ पाक में अन्वय का प्रसंग आयेगा । तब उक्तवाक्य से कर्मत्व सम्बन्ध से "तण्डुलविशिष्टपाकानुकूलकृतिवाला चैत्र” इसतरह के बोध का प्रसंग आयेगा, जो मान्य नहीं है। उक्त वाक्य से तो " तण्डुलवृत्तिकर्मता निरूपकपाकानुकूलकृतिवाला चैत्र" यही बोध सर्वमान्य है । अतः प्रत्ययार्थ काल का प्रत्ययार्थ उत्पत्ति में अन्धय मानना युक्त नहीं है, क्योंकि प्रातिपदिकार्थ घट में उत्पत्ति का अन्वय न हो सकेगा, जिस का होना अभीष्ट ॥
[ नामार्थ प्रकारक धात्वर्थ विशेष्यक बोध की संभावना अशक्य ]
[ अथ भेदेन | यदि यह कहा जाय कि - "नामार्थ धात्वर्थ का साक्षात् भेदसम्बन्ध से अन्वय मानने पर “तण्डुल' पचति" इस स्थल में कर्मत्वसम्बन्ध से तण्डुलरूप नामार्थ का धात्वर्थ पाक में अन्वय का प्रसंग जो आपने दिया है, वह युक्त नहीं है । कारण, विशेष्यतासम्बंध से भेदसंसर्गक निपातान्यनामार्थ प्रकारकोध के प्रति विशेष्यता सम्बंध से निपात और नाम एतद् अन्यतरजन्य उपस्थिति कारण है । इसतरह का कार्यकारणभाव होने पर “तण्डुलं पचति" इस स्थल में कर्मतासम्बन्ध से तण्डुल विशिष्ट पाक का बोध नहीं हो सकेगा, क्योंकि “तण्डुलविशिष्टः पाक" यह बोध तण्डुलरूप नामार्थप्रकारक कर्म त्वसंसर्गकधात्वर्थ पाकविशेष्यक बोध है और यह बोध विशेष्यता सम्बन्ध से धात्वर्थ पाक में तभी उत्पन्न होगा यदि पाक में निपातपदजन्य उपस्थिति अथवा प्रत्ययजन्य उपस्थिति विशेष्यता सम्बन्ध से रहेगी, सो तो वहाँ रहती नहीं है. क्योंकि पाक की उपस्थिति "पच" धातुजन्य ही होती है । अतः कारण के अभाव में उक्तबोधरूप कार्य का भी अभाव ही रहेगा । "नष्ट घट: " इसस्थल में " तथाविध नाशवान् घटः " ऐसा बोध होने में कोई बावक नहीं होगा, क्योंकि वह बोध भेइ संसर्गक