Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 253
________________ शुद्धिपत्रक २-६ द्योतन बोधक - वक्तव्य ईस्वत्व षट्राव इस्वत्व कह पृष्ठ/पति अशुद्ध द्योत न बाधक १२-४ हेस्वाव षड्त्व -१४ हस्वत्व २२-३ निहा २४-३ रानवेध ४२-२ तयोध साधारण ७३-१० प्रत्यावृत्ति ८०-२३ परिमाण ८४-४- सामान्यत्व हानि वक्तव्यः विषयत्व यह विधेयताक वक्तव्यः नास्त्येव वह मानना स्वाभांच्यात् रानुवेध तयोर्घट साधारण प्रत्यासत्ति परिणाम सामान्यक्त्व मानते है वह (अ०१-सू.५) हरि १६१-२७ शब्द २८ १६२-१० विषय १६३-२५ १६४-३४ विधेयता के १६७-२६ वक्तव्य १६८-१९ नास्त्येन -२६ वह सत्व १८०-४ माना १८१-२ स्कामाव्यात् १८३-१० "हरी" १८४-७ शब्द १८५-३ सिद्धोपुण १८९-२८ क्योंकि चैतन्य १९२-९ प्रान्ति २००-१० ....यहाँ ... २०४-२ २०५-४ समबाव भावस्व २११-५ को अन्वय २१२-१३ २१३-३३ मने ने २१४-२१ करण वर्तमा विशिष्टः 'घर' शब्द सिद्धो पुण क्योंकि १०९-४ ११२-९०. १२६-११ १२७-२० १३१-८ पृ. २२३...यहाँ करण समयस्यैव भावस्यैव के अचय १८९ 'विशे. नियुक्ति घटान्यत्वरूप व्यावहारिक विषया अपुगत (सूत्र-३५) परिकार की अभ्याप्ति में पर्यावसायी एव भूत १३७-१४ १४०-१ १४९-१ १५१-१७ १५२-१६ १५५-८ विशे. भाग्य क्यान्यल्वरूप व्यावहारिकायाख्य विषयता अभ्युपगत (अ.१-सू.३५) परिकार में अव्याप्ति की. पर्यवसायी ' समभिल्ट बह माने ने कारण वर्तमान विशिष्ट २१६-२९

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