Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 239
________________ રરર उपा. यशोविजयरचिते ___अथ ज्ञाता घट इत्यत्र विषयस्येव नष्टो घट इत्यत्र प्रतियोगिनोऽपि प्रत्ययविशेषार्थत्वान्नान्वयानुपपत्तिरिति चेत् ? तथापि नाशोत्पत्तिकालेऽपि नष्टत्वव्यवहारात् क्रियाकालेऽपि निष्ठार्थताऽविरोधात् क्रियमाणं कृतमित्यन्वयोपपत्तेः पक्व इत्यादाविव सर्वत्र कालवृत्तिताविशेषरूपसिद्धत्वस्य निष्ठार्थत्वात् , तस्य चाद्यसमयावच्छेदेन साध्यत्वेन सममविरोधात् , सिद्धत्वविशिष्टसाध्यताया वर्तमानार्थत्वात् । "प्रारब्धोऽपरिसमाप्तश्च वर्तमान' इति हि वैयाकरणाः । चिरनष्टे 'इदानीं नष्ट' इति, चिरोत्पन्ने चेदानीमुत्पन्न इति च प्रतीतिः समभिव्याहारविशेषादेतत्कालावच्छिन्नबोध है । इस बोध के प्रति आख्यातादिजन्य उपस्थिति कारण भी नहीं है इसलिए “इदं' पदार्थ की उपस्थिति आख्यातजन्य न होने पर भी “पाकोऽयम्” ऐमा प्रयोग और इस वाक्य से होनेवाला जो पाकप्रकारक इदमर्याविशेष्य कबोध इन दोनों में किसी की अनु पपत्ति का अवसर नहीं आता है, अतः लक्षणापक्ष ठीक नहीं है । [अथ ज्ञातो यदि कहा जाय कि-"धातूपस्थाप्य अर्थप्रकारक शाब्दबोध सामान्य के प्रति समान विशेष्यता सम्बन्ध से आख्यातादि प्रत्ययजन्य उपस्थिति को कारण मानने पर भी जैसे-"ज्ञातो घटः” इस स्थल में “ज्ञा" धात्वर्थ ज्ञान का "त" प्रत्ययार्थ विषय में स्वनिरूपित विषयतासम्बन्ध से अन्वय होता है और विषयरूप प्रत्ययार्थ का घट में अभेदसम्बन्ध से अन्वय होता है, वैसे ही निष्टो घट' यहाँ पर भी “नशू" धात्वर्थ नाश का "त' प्रत्ययार्थप्रतियोगि में स्वनिरूपितप्रतियोगितासम्बन्ध से अन्वय होगा और प्रत्ययार्थप्रतियोगि का अभेदसम्बन्ध से नामार्थघट में अन्वय होगा । इस में कोई बाधक नहीं है, क्योंकि उक्त कार्यकारणभाव में धातूपस्थाप्य अर्थप्रकारक शाब्दबोधत्व ही कार्यतावच्छेदक धर्म है, वह नाशप्रतियोगि प्रकारक शाब्दबोध जो "नष्टो घटः” इस वाक्य से संभाव्य है, उस में नहीं रहता है । अतः घट की उपस्थिति नामजन्य होने पर भी उस में प्रत्ययार्थ का अन्वय होगा, इस से 'नाशप्रतियोगि-अभिन्नो घटः' ऐसा शाब्दबंध "नष्टो घटः" इस वाक्य से होने में कोई अनुपपत्ति नहीं होगी?" तो इस का समाधान यह है कि जैसे-घटनाश के उत्पत्तिकाल में भी घट में "घटो नष्टः" यह व्यवहार होता है, उसीतरह घटक्रियाकाल में भी निष्ठाप्रत्ययार्थ जो सिद्धत्व उस का विरोध नहीं रहता है, अतः "क्रियमाणं कृतम्” इस स्थल में क्रियमाण में कृतत्व का अन्वय होने में कोई बाधक नहीं रहता है । “पक्वः तण्डुलः" यहाँ पर पच धातु के बाद "त" प्रत्ययरूप निष्ठा का अर्थ सिद्धत्व माना गया है, वह सिद्धत्व विचार करने पर कालवृत्तिताविशेषरूप ही निश्चित होता है । जिस समय में कुछ अंश में पाक सिद्ध होता है, उस समय में पाक में साध्यता भी रहती है । ‘क्रियामाण' यहाँ 'आन' प्रत्यय वर्तमान अर्थ में आता है, अतः उस का अर्थ वर्तमानत्व होता है, वह वर्तमानत्व सिद्धत्व विशिष्ट साध्यतारूप ही है। एतादृश साध्यतारूप वर्तमानत्व का उक्त सिद्धत्व के साथ विरोध नहीं होता है, इसीलिए 'क्रियमाण कृत ही है' इसतरह की निश्चयनय की मान्यता यक्त है । सिद्धत्वविशिष्टसाध्यता वर्तमानप्रत्यय का अर्थ होता है इस में वैयाकरणों की

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