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नयरहस्ये कारणताविमर्शः
अथ तत्रातीतत्वं वर्तमानत्वं च कृत्प्रत्ययार्थोत्पत्तावेवान्वेतीति न दोष इति चेत् ? न, उक्तनियमभङ्गप्रसङ्गात् । 'धातुत्व - प्रत्ययत्वादेर्नानात्वात् तन्नियमस्य विशिष्य विश्रान्तिः इति चेत् ? न, अन्ततो धातुपदवच्त्वादिनापि तदनुगमात् । अथान्यत्राप्येकपदोपात्तत्वप्रत्यासच्या कृत्यादिस्वार्थ एव स्वार्थकालान्वयो व्युत्पत्तिवैचित्र्यात् । न
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[ कृत्प्रत्ययार्थ उत्पत्ति में अतीतत्वादि को अन्वय में नियमभंग ]
[अथ तत्र] = यदि यह कहा जाय कि - " निष्ठाप्रत्ययार्थ अतीतत्व का और आन प्रत्ययार्थ वर्त्तमानत्व का अन्वय धात्वर्थ में नहीं करेगे किन्तु अतीतत्व का अन्वय निष्ठाप्रत्यय का जो दूसरा अर्थ उत्पत्तिरूप है, उसी में करेंगे, इसीतरह आनशुरूप कृत्प्रत्यय का जो द्वितीय अर्थ उत्पत्ति है उसी में वर्तमानत्व का अन्वय करेंगे, तब तो "नष्टो घटः” “नश्यन् घटः” इन प्रयोगों में अव्यवस्थारूप दोष नहीं होगा, क्योंकि “नष्टो घटः " यहाँ नाशरूप धात्वर्थ में उक्त अतीतत्व के न घटने पर भी नाश की उत्पत्ति में अतीतत्व घटेगा ही । यथा “नष्टो घटः” इस प्रयोग के आधारभूतकाल में वर्तमान जो नाश उस नाश की उत्पत्ति जिस क्षण में हुई है उस क्षण का नाश, उस का प्रतियोगि जो काल वह नाश की उत्पत्तिक्षणरूप काल, उस में वृत्ति नाशोत्पत्ति है, अतः अतीत उत्पत्तिमत्धात्वर्थनाशप्रतियोगित्व घट में रह जाता है, इसलिए "नष्टो घटः " यह प्रयोग होने में कोई बाधा नहीं पहुँचती है और प्रयोगाधाररूप विद्यमानकालवृत्तिरूप वर्तमानत्व धात्वर्थनाश की उत्पत्ति में नहीं घटता है, इसलिए "नष्टो घट" इस प्रयोग की अव्यवस्था का भी कोई कारण नहीं रहता है ।
इसीतरह 'नश्यन् घट:' इस स्थल में नाश की उत्पत्ति जब तक नहीं हुई है, किंतु हो रही है, उसी दशा में ऐसा प्रयोग होता है, अतः प्रयोगाधारकालवृत्तित्वरूप वर्तमानत्व धात्वर्थनाश की उत्पत्ति में घटता है और विद्यमानध्वंसप्रतियोगिकालवृत्तित्वरूप अतीतत्व नहीं घटता है क्योंकि “नश्यन् घटः " इस प्रयोगाधारकाल में विद्यमान ध्वंस पद से यदि नाशारम्भक क्षण से पूर्ववृत्तिक्षणों का ध्वंस लिया जाय तो 'तत्प्रतियोगिकाल' पद से पूर्ववृत्तिक्षणों का ग्रहण होगा, उन क्षणों में धात्वर्थनाश की उत्पत्ति नहीं है । यदि नाशारम्भकक्षण का नाश अथवा तदुत्तरवर्ती द्वितीय, तृतीयादि क्षणों का नाश 'विद्यमान ध्वंस' पद से गृहीत किया जाय तो तत्प्रतियोगिकाल पद से धात्वर्थ नाशारम्भक्षण या तदुत्तर द्वितीय, तृतीयादि क्षण गृहीत होंगे, उन में भी धात्वर्थनाश की उत्पत्ति वृत्ति नहीं है क्योंकि घट की उत्पत्ति की तरह धात्वर्थनाश की उत्पत्ति भी चरम क्षण में ही होती है । अतः " नश्यन् घट" इस प्रयोग में भी कोई बाधा नहीं होगी और अव्यवस्था का भी सम्भव नहीं रहता है ।"
परन्तु यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि कृत प्रत्ययार्थ उत्पत्ति में कृत्प्रत्ययार्थ अतीतत्व और वर्त्तमानत्व का अन्वय मानने में 'धात्वर्थ में ही प्रत्ययार्थ का अन्वय होता है' ऐसा जो नियम पूर्व में आपने माना था उस के भङ्ग का प्रसंग आयेगा । कारण, धात्वर्थ नाश में अतीतत्व और वर्त्तमानत्व का अन्वय न मानकर प्रत्ययार्थ उत्पत्ति में