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उपा, यशोविजयरचिते ___ अस्य च चत्वारोऽपि निक्षेपा अभिमता नाम, स्थापना, द्रव्यं, भावश्चेति । घट इत्यभिधानमपि घट एव, "अर्थाभिधानप्रत्ययास्तुल्यनामधेया" इति वचनात् , वाच्यवाचकयोरत्यन्तभेदे प्रतिनियतपदशक्त्यनुपपत्तेश्च । घटाकारोऽपि घट एव, तुल्यपरिणामत्वात् , अन्यथा तत्त्वायोगात् , मुख्यार्थमात्राऽभावादेव तत्प्रतिकृतित्वोपपत्तेः । मृत्पिण्डादिद्रव्यघटोऽपि घट एवान्यथा परिणामपरिणामिभावानुपपत्तेः। भावघटपदं चासंदिग्धवृत्तिकमेव ॥ नैगम में प्रमाणत्व का मानना "स्यादवादियों" को इष्ट नहीं है क्योंकि 'नय और प्रमाण ये दोनों भिन्न हैं, ऐसा सिद्धान्त है ।
समाधानः- सामान्य और विशेष ये दोनों प्रमाण और नय के विषय होते हैं-इतनी समानता होते हुए भी नैगमनय में जब विशेष प्रधानतया भासित होता है, तब उस में सामान्य गौणतया ही भासित होता है और जब सामान्य प्रधानतया विषय होता है, तब विशेष गौणतया ही विषय होता है। सामान्य और विशेष ये दोनों एक साथ प्रधानतया किसी भी नेगमनय में विषय नहीं होता । प्रमाण में तो सामान्य और विशेष ये दोनों एक साथ ही प्रधानतया भासित होते हैं, इसलिए नैगम में ही प्रमाणत्व का प्रसंग नहीं है । "युगपत् प्राधान्येन सामान्य विशेषोभयग्राहित्व"रूप प्रमाण का धर्म न तो देशग्राहि नैगम में है और न तो समयाहि नेगम में है, इसलिए नैगम में प्रमाणत्व का आपादन युक्तिसंगत नहीं है।
[नैगमनयस्वीकार्य चारों निक्षेप ] "अस्य चे"त्यादि="नैगम नय” के लक्षण का निरूपण करने के बाद "नैगमनय” के अभिनत कितने निक्षेप हैं ? इस का उदाहरण सहित विवरण प्रस्तुत सन्दर्भ से किया जाता है। किसी भी शब्द के व्याकरणादि अनुसार सम्भावित जितने भी अर्थ होते हैं उन को निक्षेप कहा जाता है। उन अर्थो का ज्ञान कराने के लिए उन के लक्षण और विभाजन के द्वारा प्रतिपादन भी निक्षेप पदार्थ है, जिस का पर्याय शब्द न्यास भी है। निक्षेप के कम से कम चार भेद हैं-नाम, द्रव्य, स्थापना और भाव । किसी वस्तु के नामकरण को नाम निक्षेप कहा जाता है । शास्त्रकारने संज्ञाकर्म शब्द से भी नामनिक्षेप का लक्षण बताया है । नामकरण और संज्ञाकर्म इन में शब्द से ही भेद है, अर्थ तो एक ही, दोनों शब्दों से बोधित होता है, क्योंकि संज्ञा और नाम ये दोनों शब्द पर्यायवाचक हैं और कर्मशठन यहाँ क्रियावाचक होने से कर्म और करण इन दोनों शब्दों से एक ही अर्थ बोधित होता है। नामनिक्षेप में, जिस वस्तु का कुछ नाम रखा जाय उस नामवाचक शब्द के अवयवार्थी का उस शब्द से बोध होना आवश्यक नहीं होता है। जैसे-किसी व्यक्ति का 'इन्द्र' ऐसा नाम रख दिया जाय तो, यह नाम से इन्द्र कहा जायगा, परन्तु उस में इन्द्रशब्दावयव “इन्दु" धातु से प्रतीयभान पारमैश्वर्थ उस व्यक्ति में न भासे तो भी वह इन्द्र तो कहा जाता है। नैगमनय इसतरह के मामनिक्षेप को भी मानता है । तथा,