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उपा. यशोविजयरचिते
जिस भाव में अनागतत्व का ज्ञान रहता है उस भाव में अतीतत्वबुद्धि नहीं होती है, उस का कारण यही है कि अनागतत्व अतीतत्वाभावव्याप्य है । जहाँ व्याप्य रहता है वहाँ व्यापक रहता ही है । अनागतत्वरूप व्याप्य जिस भाव में रहेगा, उस भाव में अतीतस्वाभाव अवश्य रहेगा क्योंकि वह अनागतत्व का व्यापक है । व्याप्य से व्यापक का आक्षेप होता है, यह सर्वसम्मत है इसलिए अनागतत्वरूप व्याप्य से अनतीतत्वरूप व्यापक का अवश्य आक्षेप होगा । तब तो अतीतत्व और अनतीतत्व ये दोनों परस्पर विरुद्ध होने से एक भाव में कैसे रह सकेंगे, अतः भावत्व में अतीतानागतकाल सम्बन्धाभावव्याप्यत्व जो ऋजुसूत्र का अभिमत है, वह संगत नहीं है ।
[ अतीत और अनागत आकार ज्ञान से वैपरीत्य की शंका ]
यदि यह कहा जाय कि - 'अतीत और अनागत एतदुभयविषयक ज्ञान देखने में आता है । जैसे कोई ज्योतिबिंदू देवदत्तादि किसी व्यक्ति की हस्तरेखा अथवा उस की जन्मकुण्डली में ग्रहों की स्थिति देखकर यह बताता है कि इस का एक पुत्र नष्ट हो गया है और द्वितीयपुत्र अमुक समय में होने वाला है । उस के वाक्य से श्रोता देवदत्त को अतीत और अनागत पुत्र विषयक ज्ञान होता है जो दृष्ट है । एवं वही ज्योतिर्विद जब यह बताता है कि इस व्यक्ति की एक घात पूर्व में हो गयी है और अमुक वर्ष में दूसरी घात आने वाली है, वहाँ भी श्रोता को अतीतानागतघातविषयक ज्ञान होता है। ज्ञान और विषय का कथञ्चित् अभेद माना गया है। आकार और विषय ये दोनों एकार्थक शब्द हैं । अतीतानागत विषयक ज्ञान को ही अतीतानागताकारज्ञान कहते हैं । अतीत और अनागत विषयों में अतीतत्व और अनागतत्व परस्पर विरुद्ध धर्म रहते हैं, इसीलिए अतीत अनागत भी परस्पर विरोधी माने जाते हैं। अतीतत्व और अनागतत्व धर्म विशिष्ट विषयों के साथ ज्ञान का अभेद होने से ज्ञान में अतीतत्व और अनागतत्व दोनों धर्मो का सामानाधिकरण्य होता है । सामानाधिकरण्य शब्द से एकाधिकरणवृत्तित्वरूप अर्थ विषक्षित है । ज्ञानरूप एक अधिकरण में अतीतत्व और अनागतत्व इन दोनों धर्मो का संबंध उस रीति से सिद्ध हो जाता है । तब अतीतत्व अनागतत्व का विरोध नहीं दीखता है, क्योंकि परस्पर असमानाधिकरण धर्मो में ही विरोध माना गया है । जैसे गोत्व अश्व स्व परस्पर असमानाधिकरण होने से उन का विरोध सर्वमान्य है । तब तो अतीतानागत क्षणों का सम्बन्ध भावों में भी रहेगा, इसलिए भावत्व में अनीतानागत क्षण सम्बन्धाभावव्याप्यत्व का अभ्युपगम जो ऋजुसूत्र करता है, वह सङ्गत प्रतीत नहीं होता"
[ प्रत्यक्षज्ञान अतीतादिआकार नहीं होता - समाधान ]
परन्तु यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि वाक्यादिजन्य ज्ञान में अतीत और अनागत आकारों का सम्बन्ध भले होता हो, परन्तु कोई प्रत्यक्षज्ञान ऐसा देखने में नहीं आता जिस में अतीताकार का सम्बन्ध हो अथवा अनागताकार का सम्बन्ध हो । तब इन दोनों आकारों का सम्बन्ध प्रत्यक्ष में कैसे सम्भव हो सकता है ? प्रत्यक्ष तो इन्द्रिसम्बद्ध वर्तमान विषयक ही होता है, अतीत अनागत विषयों के साथ इन्द्रियसम्बन्ध सम्भव ही नहीं है, इसलिए प्रत्यक्ष में अतीत अनागत विषयों का उपराग या सम्बन्ध