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नयरहस्ये निक्षेपविचारः
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काष्ठनिर्मित या पाषाणादि निर्मित मूर्ति में अथवा चित्र में किसी देवता विशेष का अनुसंघान करने पर उस में इन्द्र आदि की स्थापना का व्यवहार होता है । इस तरह किसी भी वस्तु के आकार में उस वस्तु के स्थापन को स्थापना निक्षेप कहते हैं। भावि में उत्पन्न होनेवाले या नष्ट हो गये हुए कार्यविशेष के उपादान कारण को द्रव्यनिक्षेप कहते हैं । गुण पर्याय सहित वस्तु के असाधारण स्वरूप का जो प्रदर्शन, उस को भावनिक्षेप कहते हैं। ये निक्षेप सभी पदार्थों के ज्ञान में उपयुक्त होते हैं क्योंकि इन के बिना वस्तुस्वरूप का प्रतिविशिष्ट रूप से ज्ञान नहीं हो पाता है । “नैगमनय” इन चारों निक्षेपों को कैसे मानता है, इस को उदाहरण द्वारा उपाध्यायजा स्फुट करते हैं ।
(घट इत्यभिधान.) जलाहरण सानभूत पात्रविशेष का "घट'' ऐसा नाम किया जाता है यह “घट" ऐसा अभिघान भी घट ही कहलाता है । यहाँ घट-शब्द को 'घट' नाम से पुकारना यही नाम निक्षेप है। घट शब्द से वाच्य जैसे-धटरूप अर्थ होता है, वैसे घट शब्द का वाच्य घट शब्द भी होता है। घटात्मक अर्थ और घट शब्द इन दोनों में भेद रहने पर भी घटशब्दवाच्यत्वरूप से कथञ्चित् अभेद ही रहता है। इस वस्तु को प्रमाणित करने के लिए अभियुक्त के वचन का प्रदर्शन किया है कि (अर्थाभिधानप्रत्ययास्तुल्यनामधेयाः) अर्थ यानी घटादिवस्तु, अभिधान यानी घट शब्द और प्रत्यय यानी घट इत्याकारक बुद्धि, इन तीनों का नामधेय अर्थात् संज्ञा तुल्य अर्थात् एक ही है। यदि घट अर्थ का बोध किसी को करना हो तो घट शब्द का प्रयोग करना जैसे आवश्यक होता है वैसे ही घट शब्द का और 'घटः' इत्याकारक बुद्धि का बोध किसी को कराना हो तो भी घट शब्द का ही प्रयोग करना पडता है, इसलिए वाच्य घट, वाचक शब्द तथा धट शब्द से होनेवाली बुद्धि, इन तीनों का नाम घट ही होता है । वाच्य और वाचक में कथञ्चित् तादात्म्य यहाँ अभीष्ट है । यदि घटरूप वाच्य
और धटशब्दस्वरूप वाचक इन दोनों में अत्यन्त भेद माना जाय तो घटरूप अर्थ में जो नियमतः घटपद को शक्ति मानी जाती है, वह नहीं सिद्ध होगी। कारण, घट शब्दापेक्षया घटरूप अर्थ में जैसे अत्यन्त भेद रहता है, वैसे पटादिरूप अर्थ में भी रहता है, तब घट शब्द की शक्ति पटादिरूप अर्थ में भी हो सकती है। इसलिए घट शब्द और घटरूप अर्थ इन दोनों में कथञ्चिद अभेद मानना आवश्यक है।
किसी चित्र आदि में जो घटाकार का प्रदर्शन किया जाय उसे स्थापना घट कहा जाता है क्योंकि आकार की दृष्टि से देखा जाय तो वह घटाकार और वास्तविक घट इन दोनों में तुल्य परिणाम होता है। यदि चित्रादिगत घटाकार को घटस्वरूप न माने तो उस घटाकार को केवल आकार ही कहना होगा किंतु उस को 'यह धटाकार है' ऐसा नहीं कह सकेंगे, यानी घटाकारता ही अयुक्त हो जाने का प्रसंग आयेगा। यदि यह शङ्का हो कि स्थापना घट को भी यदि घट ही मानेंगे तो वास्तविक घट की अपेक्षा स्थापना घट में क्या विषता होगी ?- तो इस का समाधान यह है कि स्थापना घट मुख्य घट की प्रतिकृति है, मुख्य घट से जो जलाहरणादि अर्थक्रिया होती है वह स्थापना घट से नहीं हो सकती। इसलिए चित्रादि में मुख्य अर्थ का अभाव है, यही स्थापना घट और मुख्य घट में विशेषता है।