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नयरहस्ये नैगमनयः
७९ 'मुद्गारम्भक परमाणु यवारम्भक परमाणु से भिन्न है और यवारम्भक परमाणु मुद्गारम्भक परमाणु से भिन्न है।' इस तरह की व्यावृत्तिबुद्धि नहीं होगी, क्योंकि व्यावृत्तिबुद्धि का निमित्त कारणविशेष ही है और वह आपको मान्य नहीं है। अतः अनुवृत्ति बुद्धि अतिरिक्त सामान्य माने बिना नहीं हो सकती है और व्यावृत्तिबुद्धि अतिरिक्त विशेष माने बिना नहीं हो सकती है । इसलिए अतिरिक्त सामान्य और अतिरिक्त विशेष मानना स्याद्वादी को भी आवश्यक है। यदि यह कहे कि-'अनवृत्तिवृद्धि और व्यावृत्तिबुद्धि में निमित्ततया समान्य और विशेष क्यों माना जाय ? वह बुद्धि निमित्त के विना भी हो सकी है'-तो यह कहना ठीक नहीं है। कारण, जिस में कोई हेतु नहीं होता है वह पदार्थ सदा सत् होता है । जैसे-आकाश में कोई हेतु नहीं, इसलिए आकाश सर्वदा सत् है । इसी तरह अनुवृत्तिबुद्धि और व्यावृत्तिबुद्धि में यदि कोई हेतु न माना जायगा तो वह बुद्धि भी सदा सत् हो जायगी । इल से इन बुद्धियों में अनुभवसिद्ध, जो कादाचित्कत्व रहता है उस के अभाव का प्रसंग आ जायगा । अथवा, जिस का हेतु नहीं होता है, वह सदा असत् माना जाता है, जैसे-गगन पुष्प का कोई हेतु नहीं है, इस से गगनपुष्प सदा असत् ही रहता है । इसी तरह अनुवृत्तिनुद्धि और व्यावृत्तिबुद्धि में कोई निमित्त न होगा, तो वह बुद्धि भी गगनपुष्प की तरह सदा असतरूप ही धन जायगी, वह तो स्याहादि को भी इष्ट नहीं है, क्योंकि उस बुद्धि में कादाचित्कत्व का अनुभव स्याद्वादी को भी होता है । वह कादाचित्कत्व तो भाव पदार्था में हेतु की अपेक्षा से ही सम्भवि। है । इसलिए 'अनुवृत्तिबुद्धि और व्यावृत्तित्रुद्धि हेतु के विना ही होती है' ऐसा कहना युक्त नहीं होगा। ___ यदि यहाँ ऐसा कहे कि-'अनुवृत्तित्रुद्धि निमित्त के बिना हा होती है, ऐसा आशय हमारा नहीं है । हेतु से जरूर होती है, परन्तु उसके अनेक हेतु नहीं होते हैं जिससे सामान्य और विशेष की अपेक्षा उसमें हो । किन्तु एक ही हेतु उस में होता है । घटादि वस्तु में जो अनुवृत्तिबुद्धि और व्यावृत्ति बुद्धि होती है उसमें घटादि वस्तुरूप एक ही हेतु है । अत एव अतिरिक्त सामान्य और विशेष मानना आवश्यक नहीं है।'
तो यह संभव नहीं है क्योंकि यदि वटादिवस्तुरूप एक ही हेतु से घटादि में अनुवृत्तिबुद्धि और व्यावृत्तिबुद्धि होती है, ऐसा माना जाय तो अनुवृत्तिबुद्धि की अपेक्षा से व्यावृत्तिबुद्धि विजातीय है, इस तरह का जो अनुभव होता है उसका बाध होगा । क्योंकि कारणसामग्री में विजातीयता होने पर ही कार्य में विजातीयता होती है और सामग्री में विजातीयता तभी होती है यदि सामग्री की कुक्षि में किसी अन्य कारण का प्रवेश होता है । कारण के समूह का ही सामग्री शब्द से व्यवहार किया जाता है। जिन कार्यों का कारण एक होगा उन कार्यों में विजातीयता नहीं होती क्योंकि उनमें सामग्रीवैजात्य नहीं रहता है। इसलिए यदि अनुवृत्ति बुद्धि और व्यावृत्तिबुद्धि इन दोनों में कारण एक हो होगा, तो वजात्य सिद्ध नहीं होगा, जात्य का अनुभव तो होता है, अतः ये दोनों बुद्धियाँ एक कारण से होती हैं, ऐसा मानना युक्तिसंगत नहीं है।