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नयरहस्ये नैगममयः "समानपरिणामरूपसामान्यान्युपगमेऽपि प्रतिविशेषं तदन्यत्वाद्विशेषादविशेषः" इति चेत् ? न, स्वभावभेदेन तद्विशेषात् ।
अत एव-सामानत्वं समान्यगर्भम् , तच्च तदग्रहे दुर्ग्रहमिति परास्तम् । स्वीकार वैशेषिकों का युक्तिविहीन है, इस तरह का समर्थन "न्यायालोक” में “उपाध्यायजी" ने किया है, अत: विशेष जिज्ञासुओं को “न्यायालोक” का परिशीलन करना चाहिए ।
[ समान परिणामरूप सामान्य पक्ष में दोष की शंका और समाधान ] (समानपरिणाम)=यहाँ वैशेषिकों की यह शंका है कि-'अतिरिक्त सामान्य को प्रत्येक व्यक्ति में अखिलत्वेन वृत्ति मानने पर या प्रत्येक व्यक्ति में पर्याप्तिसम्बन्ध से वत्ति मानने पर अनेकत्वापत्तिरूप दोष का प्रसङ्ग होता है, वह दोष तो, समानपरिणामरूप सामान्य को मानने पर भी होता है, अवयवसन्निवेशविशेषरूप समानपरिणाम भी व्यक्ति भेद से भिन्न-भिन्न ही होते हैं । अतः समानपरिणामरूप सामान्य में भी अनेकत्वापत्ति का प्रसंग होगा ही। यदि समानपरिणामरूप सामान्य में अनेकत्व इष्ट मानकर "जैन” . स्वीकार कर ले, तो विशेष की अपेक्षा से सामान्य में कुछ भेद नहीं रह जायगा, क्योंकि जैसे-विशेष प्रतिव्यक्ति भिन्न-भिन्न माने जाते हैं, वैसे सामान्य को भी प्रतिव्यक्ति भिन्नभिन्न स्वीकार कर लिया गया । तब तो, विशेष से जैसे अनुवृत्तिबुद्धि नहीं होती है वैसे ही सामान्य से भी अनुवृत्ति बुद्धि नहीं होगी क्योंकि अनुवृत्तिबुद्धि का प्रयोजक जैनसिद्धान्त में कोई नहीं रहेगा। ___ समाधानः-"जैन सिद्धान्त" में समानपरिणामरूप व्यक्ति का ही अनुगत प्रतीतिजनन स्वभाव मान्य है और असमानपरिणामरूप व्यक्ति का ही व्यावृत्तिबुद्धि जनन स्वभाव मान्य है । इसलिए उभयस्वभावात्मकवृत्ति ही अनुगतप्रतीतिजनकतास्वभाव से अनुवृत्तिबद्धि को उत्पन्न करती है और व्यावृत्तिबुद्धि जनकतास्वभाव से व्यावत्तिबद्धि को उत्पन्न करती है । अतः स्वभावभेद से विशेषापेक्षया सामान्य में भेद सिद्ध हो जाता है । इसलिए विशेष की अपेक्षा से सामान्य में कोई विशेषता न रहने का प्रसग रूप दोष नहीं आता है।
[सामान्य की व्याख्या में सामान्य की अपेक्षा-आशंका ] (अत एव) यदि यह आशंका ऊठायी जाय कि समानपरिणामरूप सामान्य को स्वीकार करने पर परिणाम में समानत्व विशेषणरूप से भासता है। वह समानत्व सादृश्यवाचक है इसलिए जिन दो पदार्थों में परस्पर सादृश्य रहता है, उन दोनों पदार्थों में किसी समान धर्म को लेकर के ही सादृश्य का ज्ञान होता है। जैसे-“चन्द्रसमान मुखम्' इस स्थल में चन्द्र का सादृश्य मुख में प्रतीत होता है । यहाँ चन्द्र और मुख में साधारण धर्म आह्लादकत्व है, इसी धर्म को लेकर चन्द्र का सादृश्य मुख में भासता है । चन्द्र के दर्शन से जो आह्लाद-सुखविशेष का अनुभव लोगों को होता है वैसा ही आहलाद