Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री श्वेताम्बर जैन महासभा उत्तर प्रदेशकी ओरसे इतिहासरत्न श्री अगंरचन्दजी नाहटाके कर- . कमलोंमें सादर समर्पित पद्यबद्ध अभिनन्दन-पत्रकी भावभरी पंक्तियाँ पठितव्य है
__श्री श्वे. जैन महासभा, उत्तर प्रदेश, की ओर से इतिहासरत्न श्री अगरचन्दजी नाहटाके करकमलोंमें सादर समर्पित
अभिनन्दन-पत्र जिनका विद्यातरु सदा, फलित रहा सर्वत्र ।।
उनके करमें भेंट है, यह अभिनन्दन-पत्र ॥ १॥ तुम अगरचन्द अभिधावाले पर निश्चय चन्द्र निराले हो। वह नभका चन्द्र कलंकित है, तुम विमल कीर्तिको धारे हो ।
शुभपथसे किंचित् हटे नहीं, इसलिये नाहटा गोत्र मिला ।
है किन्तु महा आश्चर्य कि बीकानेरमें कैसे कमल खिला ।। "गुदड़ी में लाल छिपे रहते" यह तो हम हैं सुनते आये। "रेतेमें रत्न छिपे रहते" यह जान आज ही हैं पाये ॥
क्या कहें सरस्वति पुत्र ! तुम्हारा आलम एक निराला है ।
मनमध्य ज्ञान भगवान बसे हाथोंमें ज्ञानको माला है। इस ज्ञानयोगके अमृतमें अमरत्व ढूढने वाले हो। तुम अगरचन्दसे अमर चन्द्रमा जल्दी बनने वाले हो।
संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश आदिके कितने ग्रंथ खोज डाले।
इतिहास-हारकी लड़ियोंमें हाँ, कितने रत्न जोड़ डाले ।। देवी शारदा महामुदिता, अमृतवर्षा तुमपर करती। अवसर्पिणी काल है, किन्तु ज्ञानकी निर्झरिणी सुखदा झरती ॥
है यथा सुगंधित अगर द्रव्य, है यथा चन्द्रमा सुधा भरा।
तव कीर्ति-सुगन्ध प्रसारित हो अरु रहे ज्ञान घट सदा भरा ।। श्री शान्ति प्रभूकी छायामें हस्तिनापुरमें जो आये हो।। भागीरथवत् निज ज्ञान सुरसरी इस प्रदेशमें लाये हो ॥
बालाश्रम रूपमान सरसे भारतमें यह सुरसरी बहे।
गुरु 'विजयानन्द'की जय-जय हो, श्री अगरचन्दकी कीर्ति रहे ।। इस शिलान्यासको यादगार इक शिलालेख-सी बन जाये। जैनोंकी युनीवर्सिटी बने, 'वल्लभ', 'समुद्र'के मन आये ।। रचयिता
आपकी विद्वत्ताके प्रति प्रणत रामकुमार M. A., B. 1.
ज्ञानचन्द मोधा (सभापति) हस्तिनापुर
विनयकुमार जैन (मन्त्री) दिनांक ३१-७-६३
श्री श्वे० जैन० महा०, उत्तर प्रदेश इस गद्यबद्ध सम्मान-पत्रको भी प्रस्तुत किया जाता है। यह सम्मान-पत्र राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुरकी ओरसे हमारे चरित:नायक श्री नाहटाजीको समर्पित किया गया था :
जीवन परिचय : ४१
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