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( ५७ ) नम्बर विषय ४४-पांचपद और चार शरणा में मूर्तिपूजा । ४५-उपासकदशांग सूत्र की नोंध में प्रा० चैत्य । । ४६-प्रानंदश्रावक की प्रतिज्ञा (जिनप्रतिमा) ४७-अंबडश्रावक का अभिप्रह (जिनप्रतिमा) ४८-तुजिया नगरी के श्रावकों द्वारा जिनप्रतिमा की पूजा ८६ ४९-भावक अन्य देव को कदापि नहीं पूजे । ५०--विद्याचारण मुनियों की तीर्थयात्रा। ५१-जंघाचारण मुनियों की तीर्थ यात्रा। ५२-नन्दनवन के जिनमन्दिर । ५३-मेरू की चूलिका पर का जिनमन्दिर । ५५-नन्दीश्वरद्वीप के ५२ जिनमन्दिर । ५६-नन्दीश्वरद्वीपकी पीठिका पर के जिनप्रतिमाओं के नाम । ९६ ५८-रुचक कुंडलोदि के जिनमन्दिर । ६०-चारपति सूत्रों में दीपसागर पमति । ६१-चारण मुनियों के यात्रार्थ गमन की गति । ६२-चैत्य शब्द का वास्तविक अर्थ। ६३-द्रौपदी महासती की की हुई जिनपूजा । ६४-स्थानकवासियों के मूल पाठ में मतभेद । ६५-स्था० साधु हर्षचन्दजी के अभिप्राय । ६६-स्थापनाचार्य की परमावश्यकता । ६७-बत्तीस सूत्रों में जिनप्रतिमा के पाठ । ६७---उपसंहार। ६८-ऐतिहासिक क्षेत्र में मूर्तिपूजा का स्थान ।
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