Book Title: Murtipooja ka Prachin Itihas
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 548
________________ नामा नरेश का फैसला ४१४ परिश्रम किया है और आप उनके परम रहस्य और गूढार्थ को प्राप्त हुए हैं। सत्य वोही होती है जो शास्त्रानुसार हो और जिसमें उसके कायदों से स्वमत और परमतानुयायिओं की शंका न हो। शास्त्र के विरुद्ध अंधपरंपरा का स्वीकार करना केवल हठ धर्म है। पूर्व विचारानुसार जब आप का शास्त्र और धर्म एक है उसके कर्ता आचार्य भी एक हैं फिर आश्चर्य की बात है कि कहा जाता है कि हमारे आचार्यों का यह मत नहीं है और ना वो इन प्रन्थों के कर्ता हैं। आप देखते हैं कि हमारे भगवान् कलकी अवतार की बाबत जहां आप देखोगे एक ही वृत्त पावेगा, ऐसे ही आप के भी जरूरी है। श्राप के प्रतिवादीके हठके कारण और उनके कथनानुसार हमें शिवपुराण के अवलोकन की इच्छा हुई। बस इस विषय में उसके देखने की कोई आवश्यकता नहीं थो। ईश्वरेच्छा से उसके लेख से भी यही बात प्रगट हुई कि वस्त्र वाले हाथ को सदा मुख पर फैकता है इस से भी प्रतीत होता है कि सर्व काल मुख वस्त्र के मुख पर बांधे रखने की आवश्यकता नहीं है किन्तु वार्तालाप के समय पर वस्त्र का मुख पर होना जरूरी है। आप के शास्त्रार्थ से एक हमें बड़ा भारी लाभ हुवा है कि हमें मालूम हो गया कि जैन मत में भी सूतक पातक ग्रहण किया है और जैनी साधुओं को उन के घरों के आहारादि के लेने की विधि नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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