Book Title: Murtipooja ka Prachin Itihas
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 554
________________ स्था० शास्त्रों के प्रमाण । ४२० जानकार नहीं पर बिलकुल अज्ञानी था और आज पर्यन्त इस प्रथा को पालने वाले भी इस बात को नहीं समझते यह ही एक आश्चर्य की बात है । इत्यादि । ___अन्त में मैं मेरे स्थानकवासी भाइयों को नम्रता और प्रेम पूर्वक कहूँगा कि कृपया श्राप जैन, जैनेतर शास्त्रीय एवं ऐतिहासिक प्रमाणों और विशेष जमाने की ओर खयाल कर देखिये जैन मुनियों की पवित्रता और उनके वेश के सामने देव, देवेन्द्र एवं नर, नरेन्द्र सिर झुकाते थे। तब आज आपके इस जैन शास्त्रों के विरुद्ध एवं लोकनिन्दनीय वेश को देस्त्र तटस्थ विद्वानों को किस प्रकार घणा आती है और वे किस प्रकार सहसा बोल उठते हैं कि यह कैसा धर्म है इतना ही क्यों पर कई लोगों ने तो अपने ग्रन्थों में यहां तक भी लिख दिया है कि "The Dhoondia ascetic is a disgusting object He wears a screen of cloth called Muhpattee, tied over his mouth. His body and clothes are filthy in the last degree and covered with vermin." Rasmala 1878. इस लेख का भावार्थ ऐसा है कि-"ढूंढियों के साध घृणा करने योग्य हैं वे अपने मुंह को एक प्रकार के कपड़े से ढंका रखते हैं कि जिसको वे लोग मुंहपती कहते हैं और शरीर तथा कपड़े तो इतने मलीन रखते हैं कि उनमें जूए आदि जीक पैदा हो जाते हैं। "फॉर्बस साहब की रासमाला ई. सन् १८७४" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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