Book Title: Murtipooja ka Prachin Itihas
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 552
________________ ऐतिहासिक प्रमाण | ४१८ इस नाभानरेश व परितों के फैसले से पाठकवर्ग और विशेषकर हमारे स्थानकवासी भाई ठोक तौर पर समझ गये होंगे कि जैनशास्त्रों व अन्यधर्म के ग्रन्थों के आधार पर दिया हुआ फैसला साफ-साफ पुकार रहा है कि जैन मुनियों के मुखवस्त्र का सनातन से हाथ में और बोलते समय मुँह आगे रखना ही विधान है । यदि फिर भी किसी भाई का आग्रह हो तो जैनियों की [ स्थानकवासी ] की चारों और पोल खुलने लगी और समझदार भव भीरू स्थानकवासी साध एक के पीछे एक मुहपती का मिथ्या डोरा तोड़ कर मूर्तिपूजा के उपासक बनने लगे । इस हालत में स्थानकवासियों के पास दूसरा कोई उपाय न रहा जिस से रहे हुए भबोध लोगों को कुछ भी आश्वासन देकर उन के चल चित को स्थिर कर सके । फिर भी यह करना इन लोगों के लिए जरूरी था अतएव हाल ही में इन लोगों ने 'पीतांवर पराजय' नामक एक छोटा सा ट्रस्ट छपवाया जिस में विल्कल कल्पित और असभ्य शब्दों में आप अपनी जय और जैन मुनियों का पराजय होने का मिथ्या प्रयत्न किया है पर अब जनता एवं विशेष स्थानकवासी समाज इतना अज्ञानान्धकार में नहीं है कि नामानरेश की सभा के पण्डितों के हस्ताक्षर से दिया हुआ फैसला और खास नामानरेश के साथ पत्र व्यवहार द्वारा महाराज नामानरेश ने अपनी सभा के पण्डितों द्वारा दिया हुआ न्यायपूर्वक फैसला को छपाने की इजाजत दें। उस फैसला को असत्य समझे और स्थानकवासी कई मत्तग्रही लोगों को कल्पित एवं बिलकुल झूठी बातें को सत्य समझ ले ? यदि स्थानकवासी भाई जैनमुनियों को पराजय और अपनी जय होना घोषित करते हैं तो उनको चाहिये कि नाभानरेश की सभा के किसी पण्डित का दिया हुआ फैसला कि एक लाइन तक भी जनता के सामने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576