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नाभा का फैसला ।
४१२ शील नाभा (पंजाब) नरेश की राजधानी नाभा में इधर जैनाचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिजी ( उस समय के मुनि श्री वल्लभ विजयजी महाराज ) उधर स्थानकवासी पूज्य सोहनलालजी म० अपने विद्वान शिष्य मुनि श्री उदयचन्दजी के साथ नाभा में पधार गये । इन दोनों महात्माओं के आपसी प्रश्नोत्तर का कार्य नाभा नरेश की राज सभा के पण्डितों पर रख दिया गया जिसमें जय पराजय कानिर्णय नाभानरेश की मारफत उनकी सभा के विद्वान पण्डित करें। बस ! उन्होंने जो फैसला दिया उसको अक्षरशः यहां उतद्ध कर दिया जाता है।
फैसला शास्त्रार्थ नाभा.
ॐ श्रीगणाधिपतये नमः श्रीमान्मुनिवर वल्लभविजयजी!
पंडित श्रेणि सरकार नाभा इस लेख द्वारा आपको विदित करते हैं । गत संवत्सर में आपने हमारे यहां श्री १०८ मन्महाराजाधिराज नाभानरेशजी के हजूर में ६ (छः) प्रभ निवेदन करके कहा था कि यद्यपि जैन मत और जैन शास्त्र भी सर्वथा एक हैं परब्च कालान्तर से हमारे और दुढियों में परस्पर विवाद चला पाता है बल्कि कई एक जगह पर शास्त्रार्थ भी हुमा परन्तु वह बात निश्चय नहीं हुई कि अमुक पक्ष साधु है। श्रीमहाराज, की न्यायशीलता और दयालुता देशांतरों में विख्यात है इससे हमें आशा है कि हमारे भी परस्पर विवाद का मूल आपके न्याय प्रभाव से दूर हो जावेगा, भगवदिच्छा से इन दोनों में
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