Book Title: Murtipooja ka Prachin Itihas
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 547
________________ ४१३ क्या ती० हैं ० म बाँधते थे? ढुंदियों के महंत सोहनलालजी यहां आये हुए हैं, उनके सन्मुख ही हमें इन ६ (छः) प्रश्नों का उत्तर जैन मत के शास्त्रानुसार उनसे दिलाया जावे । आपके कथनानुसार उक्त महतजी को इस विषय की इत्तला दीगई, आपने इतला पाकर साधु उदयचन्दजी को अपने स्थानापन्न का अधिकार देकर उनके हानि लाभ को अपना स्वीकार करके शास्त्रार्थ करना मान लिया था। - तदनंतर श्री १०८ श्रीमन्महाराजाधिराजजी की आज्ञानुसार हम लोगों को शास्त्रार्थ के मध्यस्थ नियत किया गया । तिस पीछे कई दिन तक हमारे सामने आपका और उदयचंदजी का शास्त्रार्थ होता रहा। शास्त्रार्थ के समय पर जो परिणाम आपने दिखलाये सो शास्त्रविहित थे। आप को उक्ति और युक्तियें भी निःशंकनीय और प्रामाण्य थीं । प्रायः करके श्लाघनीय हैं ।। उक्त शास्त्रार्थ के समय पर और इस डेढ वर्ष के अंतर में भी जो इस विषय को विचारा है उससे यह बात सिद्ध नहीं हुई कि जैन मत के साधुओं को वार्तालाप के सिवाय अहोरात्र अखंड मुख बंधन और सर्व काल मुख पोतिका के मुख पर रखने की विधि है। केवल भ्रांति है। केवल वार्तालाप के समय ही मुख वस्त्र के मुख पर रखने की आवश्यकता है हमारे बुद्धि बल की दृष्टि द्वारा यह बात प्रकाशित होती है कि आपका पक्ष ढूंढियों से बलवान है। ___ यद्यपि "श्रापका और ढूंढियों का मत एक है और शास्त्र भी एक हैं इसमें भी सन्देह नहीं, साधु उदयचंदनी महात्मा और शान्तिमान है परंच आपने जैन मत के शास्त्रों में प्रतीव Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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