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क्या० ती० मुं० मुं० बान्धते थे ? ऐसा न हो तो उन भाइयों को बतलाना चाहिये कि आपको ३२ सूत्रों में दीक्षा और बड़ी दीक्षा देने का विधान किस सत्र में है? जब दीक्षा देने का काम पड़ता है तब तो पूर्वोक्त सूत्र आप प्रमाणिक मानते हो। और तब विधान के विषय में आपकी कल्पित मान्यता की पोल खुल जाती है तब आप कह उठते हैं कि हम इस सूत्र को नहीं मानते हैं । इस लचर दलीलों को सिवाय भोली भाली बेहनों या अपठित भद्रिकों के सिवाय विद्वान कदापि नहीं मान सकते हैं यदि आप का यही आग्रह हो तो लीजिये आपके माने हुए ३२ सूत्रों में मुख्य सूत्र का प्रमाण
"अणुनवितु मेहावी, पड़िच्छन्नमि संबुडे" 'हत्थगं' संपमज्जिता, तत्थ भुजिज्जा संजयं"..
"श्रीदशवकालिक अ० ५ उ० : गाथा ८३ भावार्थ-गौचरी गया हुआ साधु किसी कारण वशात् वहाँ गौचरी करनी चाहे तो गृहस्थ की आज्ञा लेकर छान्दित मकान में 'हत्थर्ग' हस्तगत है मुँखवस्त्रिका । जिससे हस्त पदादि प्रमार्जन कर वही आहार कर लेते हैं । स्वामि अमोलखर्षिजी अपने हिन्दी अनुवाद करते समय हिन्दी भाषा में 'हत्थगं' ? शब्द का अर्थ करना हो छोड़ दिया है जैसे सुरियामदेव के पूजा में पुष्यों का मूल पाठ होने पर भी उसका अर्थ करना छोड़ दिया और यह प्रक्रिय यहां से ही नहीं पर इस कल्पित मत के प्रारम्भ से ही चली आई है।
उपरोक्त प्रमाणों से निःसन्देह सिद्ध है कि जैनश्रमण मुख
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