Book Title: Murtipooja ka Prachin Itihas
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 542
________________ ऐतिहासिक प्रमाण। विरोध करते हैं। जाने दीजिए साधुओं को आज भी स्थानकवासी कान्फरेन्स की जनरल सभा में भगवान ऋषभदेव से भगवान महावीर के जितने कल्पित चित्र जो उनके मुंहपर डोरावाली मुँहपत्ती के बनाये गये और पुस्तकों में दिये गये हैं उन्हें रखकर उनको मानने के मत लीजिये आपको कितने मत मिलते हैं। मेरे खयाल से विरोध में ९८ मत और शायद हो दो मत पक्ष में मिलेंगे क्योंकि अब स्थानकवासी समाज इतना अज्ञान और हटपाही नहीं रहा है कि तीर्थकरों को इतने अज्ञान और उपयोग शून्य मानने को तैयार हो । कारण मुहपत्ती में डोराडाल दिनभर मुंहपर बान्धी है उन का खास ध्येय यही था कि उपयोग न रहने से खुल्ले मुह न बोला जाय। तो क्या यह उपयोग शून्यता तीर्थंकरों के लिए भी कही जा सकती है या स्थानकवासियों के तीर्थकर ही कोई अलग हो और वे उपयोग शन्य हों, इसी कारण वे मुहपत्ती में डोरा डाल दिनभर बान्धी रखते हों तो बात ही दूसरी है वरन् जैन तीर्थकर, गणधर, साधु-साधी, भावक और श्राविकाओं ने न तो आज पर्यन्त डोरा डाल दिनभर मुंहपत्ती मुहपर बाँधी थी और न भविष्य में बांधेगे। इतना ही क्यों, पर डोरा डाल मुंहार दिनभर मुंहपत्ती बाँधने वालों को उत्सूत्र प्ररूपक निन्हव और कुलिंगी समझते हैं। __सज्जनो! यह बात तो एक साधारण मनुष्य भी समम सकता है कि किसी भी धर्म की प्रचलित क्रिया में जब थोड़ा ही फेरफार होता है तो उसकी चर्चा भी उसी समय प्रचलित हो जाती है । जैसे, जैनधर्म में भगवान महावीर के समय जमाली व गोशाला भगवान् से खिलाफ हुए तो उनकी चर्चा भी उसो समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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