Book Title: Murtipooja ka Prachin Itihas
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 534
________________ ऐतिहासिक प्रमाण भगवान महावीर की सोलहवीं शताब्दी आचार्य वर्धमानसूर ११, पार्श्वनागसूरि १२, देवगुप्तसूरि १३, जिनेश्वरसूरि १४, अभयदेवसूरि १५, द्रौणाचार्य १६, सूरा - चार्य १७, बादी वैतालशान्तिसूरि १८, नमिसाधु १९, नेमि - चन्द्रसूरि २० इत्यादि ये महान् प्रभाविक आचार्य जैनधर्म के कट्टर प्रचारक हुए । यहाँतक न तो मूर्त्ति विषयक खण्डन-मण्डन था और न थी मुखवfत्रका की चर्चा । --- भगवान महावीर की सत्रहवीं शताब्दी आचार्य ४०० अभयदेवसूरि १ ( मलधारी ), ककसूरि, ११ - आचार दिनकर ग्रन्थ और आबू पर विमलशाह के मन्दिरों की प्रतिष्ठा आप श्री ने ही करवाई | Jain Education International १२ - आत्मानुशासन ग्रन्थ के निर्माता । १३ - नौ पद प्रकरण ग्रन्थ के रचयिता । १४ - आपने वि० सं० १०८० में जालौर में रहकर हरिभद्रसूरि कृत अष्टकों पर टीकाएँ बनाई । तथा जिन चैत्यवन्दन नामक ग्रन्थ की रचना की । १५ - नौ अंग- सूत्रों पर टीकाओं के रचयिता । १६ - अभयदेवसूरि की रची टीका के संशोधनकर्ता । १७ ----धारा की राज सभा में विजय पताका फहराने वाले । - राजा भोजको प्रतिबोध और वृहद् शान्ति के कत्ती । १८ १९ - रुद्राट् के काव्यालङ्कार पर टीका रचयिता । २०- उत्तराध्ययन सूत्र की टीका बनाई । २१ - अजमेर के राजा जयसिंह ने आपके उपदेश से अपने राज्य में जीव दया की घोषणा करवाई । मेड़ता के मन्दिरों की प्रतिष्ठा आप ही के करकमलों से हुई । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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